फाइल फोटो
नई दिल्ली:
90 साल के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में पोशाक को बदलने पर विचार चल रहा है। इस बारे में जल्दी ही फैसला होगा कि संघ की शाखाओं में उपस्थिति के लिए स्वयंसेवकों को खाकी हॉफपैंट के बजाए किसी दूसरे रंग की पतलून पहनने की इजाजत दी जाए या नहीं। संघ के सूत्रों के अनुसार, 11 से 13 मार्च राजस्थान के नागौर में होने वाली आरएसएस की सर्वोच्च निर्णायक संस्था, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में इस बारे में अंतिम निर्णय हो सकता है।
भागवत ने किया था प्रस्ताव का समर्थन
गौरतलब है कि पांच साल पहले संघ के सामने प्रस्ताव आया था कि स्वयंसेवकों को खाकी हॉफ पैंट के बजाए काले, नीले या धूसर रंग का फ़ुल पैंट पहनने की अनुमति हो ताकि बदले वक्त के साथ वे भी तालमेल बैठाते नजर आएं। वर्ष 2009 में संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल में इस प्रस्ताव पर विचार हुआ था। ये आरएसएस की दूसरी सबसे बड़ी निर्णायक संस्था है। मगर तब इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था। हालांकि तत्कालीन संघ महासचिव और मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तब इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
...तो नया कुआं खोदा जा सकता है
सूत्रों के मुताबिक, भागवत ने अपने समापन भाषण में कहा था कि 'घर में पानी पीने के लिए बुज़ुर्गों के खोदे कुएं का पानी अगर गंदा हो जाए तो जरूरी नहीं है कि उसी का पानी पीते रहें। नया कुआं खोदा जा सकता है।' माना गया कि भागवत बदलते वक्त के साथ संघ के तौर-तरीके में बदलाव की वकालत कर रहे थे।
पहले भी हो चुका है संघ की ड्रेस में बदलाव
ऐसा नहीं कि संघ की पोशाक में पहले बदलाव नहीं हुआ है। इससे पहले स्वयंसेवक खाकी हॉफ पैंट के साथ इसी रंग की कमीज ही पहनते थे। मगर बाद में कमीज का रंग बदल कर सफेद कर दिया गया। पहले स्वयंसेवक बूट पहना करते थे मगर बाद में इनमें बदलाव कर सामान्य जूते कर दिया गया। इसी तरह चमड़े के बेल्ट की जगह प्लास्टिक के बेल्ट का इस्तेमाल किया गया। कुछ जैन मुनियों ने ऐसा करने की अपील की थी। उनकी दलील थी कि बेल्ट के चमड़े के लिए पशुओं का वध किया जाता है। बदलते समय के हिसाब से खुद को बदलने और युवाओं को साथ जोड़ने के लिए संघ की पोशाक में तब्दीली की बात कही जा रही है।
युवाओं को साथ लेने के लिए संघ ऑनलाइन शाखाएं भी चला रहा है और उसका दावा है कि स्वयंसेवकों और शाखाओं की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है।
भागवत ने किया था प्रस्ताव का समर्थन
गौरतलब है कि पांच साल पहले संघ के सामने प्रस्ताव आया था कि स्वयंसेवकों को खाकी हॉफ पैंट के बजाए काले, नीले या धूसर रंग का फ़ुल पैंट पहनने की अनुमति हो ताकि बदले वक्त के साथ वे भी तालमेल बैठाते नजर आएं। वर्ष 2009 में संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल में इस प्रस्ताव पर विचार हुआ था। ये आरएसएस की दूसरी सबसे बड़ी निर्णायक संस्था है। मगर तब इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था। हालांकि तत्कालीन संघ महासचिव और मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तब इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
...तो नया कुआं खोदा जा सकता है
सूत्रों के मुताबिक, भागवत ने अपने समापन भाषण में कहा था कि 'घर में पानी पीने के लिए बुज़ुर्गों के खोदे कुएं का पानी अगर गंदा हो जाए तो जरूरी नहीं है कि उसी का पानी पीते रहें। नया कुआं खोदा जा सकता है।' माना गया कि भागवत बदलते वक्त के साथ संघ के तौर-तरीके में बदलाव की वकालत कर रहे थे।
पहले भी हो चुका है संघ की ड्रेस में बदलाव
ऐसा नहीं कि संघ की पोशाक में पहले बदलाव नहीं हुआ है। इससे पहले स्वयंसेवक खाकी हॉफ पैंट के साथ इसी रंग की कमीज ही पहनते थे। मगर बाद में कमीज का रंग बदल कर सफेद कर दिया गया। पहले स्वयंसेवक बूट पहना करते थे मगर बाद में इनमें बदलाव कर सामान्य जूते कर दिया गया। इसी तरह चमड़े के बेल्ट की जगह प्लास्टिक के बेल्ट का इस्तेमाल किया गया। कुछ जैन मुनियों ने ऐसा करने की अपील की थी। उनकी दलील थी कि बेल्ट के चमड़े के लिए पशुओं का वध किया जाता है। बदलते समय के हिसाब से खुद को बदलने और युवाओं को साथ जोड़ने के लिए संघ की पोशाक में तब्दीली की बात कही जा रही है।
युवाओं को साथ लेने के लिए संघ ऑनलाइन शाखाएं भी चला रहा है और उसका दावा है कि स्वयंसेवकों और शाखाओं की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है।