वाराणसी के शहर दक्षिणी क्षेत्र में विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बावजूद बीजेपी को कड़ी चुनौती

समाजवादी पार्टी उठा रही विकास के नाम पर विस्थापन का मुद्दा, कांग्रेस ने प्राचीन धरोहर के संरक्षण को मुद्दा बनाया

वाराणसी के शहर दक्षिणी क्षेत्र में विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बावजूद बीजेपी को कड़ी चुनौती

प्रतीकात्मक फोटो.

वाराणसी:

वाराणसी की शहर दक्षिणी सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है. यही बनारस का पुराना इलाका है. गंगा घाट, बाबा विश्वनाथ का मंदिर और बनारस की प्रसिद्ध गलियां इसी इलाके में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट विश्वनाथ कॉरिडोर भी यहीं बनकर तैयार हुआ है. लिहाजा यहां से बीजेपी को चुनौती मिलने की किसी को उम्मीद नहीं है लेकिन इस बार यहां बीजेपी को चुनौती मिल रही है.

काशी धार्मिक और प्राचीन शहर है जिसके बारे में कहते हैं कि ये शिव के त्रिशूल पर टिकी है. वाराणसी दक्षिण की इस सीट पर 1989 से बीजेपी का क़ब्जा है. यहां सात बार श्यामदेव राय चौधरी  विधायक रहे. साल 2017 में बीजेपी के ही नीलकंठ तिवारी ने जीत दर्ज की और प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बने. उनको इस बार भी जीत का भरोसा प्रधानमंत्री के नाम से ही है.

बीजेपी उम्मीदवार नीलकंठ तिवारी ने एनडीटीवी से कहा कि ''काशी का प्रत्येक व्यक्ति भारतीय जनता पार्टी के साथ रहा है. काशी का एक-एक व्यक्ति प्रधानमंत्री, जो हमारे सांसद हैं, के प्रति आत्म भाव रखता है. उनके प्रति आत्मिक लगाव रखता है और प्रधानमंत्री जी के वैश्विक स्वरूप को, उनके एकएक स्वरूप को दैवीय आदेश मानकर काम करता है. जो उनका संदेश है उस संदेश को लेकर आगे बढ़े काशी में दक्षिणी सहित जितनी भी विधानसभा सीटें हैं, उनमें जीत का मार्जिन दोगुना होने वाला है..''

''हर हर मोदी घर घर मोदी'' के नारे के जवाब में समाजवादी पार्टी ने एक नया नारा गढा है. सपा इस बार प्रचार में जोर लगा रही है. बताया जा रहा है कि विश्वनाथ कॉरिडोर से विस्थापित हुए नाराज लोगों का एक बड़ा वर्ग सपा के साथ जुड़ गया है जो कभी बीजेपी का कोर वोटर था.

सपा प्रत्याशी किशन दीक्षित ने कहा कि ''दक्षिणी विधानसभा के हमारे जो लोकल मुद्दे हैं. जनता बहुत परेशान है. गंगा के स्वरूप के साथ खिलवाड़ किया. ललिता घाट जिस तरह बना दिया उससे अर्धचंद्राकार जरूर विकृत हुआ. उसे खराब किया गया. और साथ ही साथ कॉरिडोर का जो निर्माण हुआ विकास के नाम पर, हम उसका समर्थन करते हैं, लेकिन मंदिरों की जो तोड़फोड़ हुई हम उसका विरोध करते हैं. आने वाले समय में बनारस दक्षिणी की जनता यही जवाब देने जा रही है.''

पूर्व में वैसे इस सीट पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही है, 40,000 से 70,00 तक वोट उसे मिलते रहे हैं. इस बार कांग्रेस ने एक नए प्रत्याशी को खड़ा किया है जिसकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है. वह इसे ही अपनी ताकत बता रही है.

कांग्रेस प्रत्याशी मुदिता कपूर ने कहा कि ''मैं बहुत सरल तरीके से, गैर राजनीतिक तरीके से अपनी बात लोगों के बीच पहुंचा पाती हूं क्योंकि मैं खुद एक राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं. जनता मुझसे कनेक्ट कर पाती है. इस बातचीत से तो मुझे बहुत लाभ मिलता है. मैं आर्किटेक्ट हूं. अभी शहर दक्षिणी में जो मुख्य समस्याएं हैं वह इन्फ्रास्ट्रक्चर रिलेटेड हैं, वह विकास से रिलेटेड हैं. मैं धरोहर संरक्षण का काम करती हूं और शहर दक्षिणी में धरोहर को संरक्षित करते हुए विकास करूंगी. मैं उसके लिए पूरी तरह उपयुक्त हूं और मैं समझती हूं कि जनता भी इसे समझ रही है.''

शहर दक्षिणी में तकरीबन सवा लाख के करीब मुसलमान वोट हैं. इसके बाद व्यापारी वर्ग आता है जिनमें खत्री , बनिया और मारवाड़ी के वोटों की संख्या तकरीबन 80000 के आसपास है. ब्राम्हण 30,000, मल्लाह 18000, यादव तकरीबन 17000, दलित 10 हजार और भूमिहार 15 हज़ार के आसपास हैं.

इस बार भाजपा का कोर वोटर ब्राह्मण ही विश्वनाथ कॉरिडोर की वजह से नाराज नजर आ रहा है. स्थानीय नागरिक छन्ना सरदार ने कहा कि ''हमारी दुकान दो नंबर गेट पर थी. उसको जबरन गिरा दिया गया. एक पैसा नहीं मिला, सामान दब गया. लड़कियां हैं, वे पढ़ाई लिखाई कैसे करें? कोई काम-धंधा न रोजगार, क्या करें बताइए?'' स्थानीय नागरिक विजय नारायण सिंह ने कहा कि ''यहां पर हमारे देवता को बिना उनकी अनुमति के उनकी जमीन से हटा दिया गया. 56 विनायक मे 6 विनायक खत्म हो गए.  वह धर्म की बात करेंगे और धर्म को पर्यटन में बदलेंगे. ऐसा धर्म मुझे नहीं चाहिए.''

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यह नाराजगी अगर दूर नहीं हुई तो बीजेपी की आसान लगती राह मुश्किल भरी भी हो सकती है. हालांकि प्रधानमंत्री खुद यहां तीन दिन रहकर प्रचार करेंगे. वाराणसी की शहर दक्षिणी सीट बीजेपी का गढ़ भी है और बनारस का दिल भी. यहां बने विश्वनाथ कॉरिडोर और दूसरे विकास कार्यों को लेकर बीजेपी प्रदेश में एक अलग तरह की छवि बना रही है लेकिन इन्हीं मुद्दों को लेकर विपक्ष बीजेपी के जीत के गणित को उलझाने की कोशिश में जुटा है. ऐसे में प्रधानमंत्री के तीन दिन के प्रवास के बाद विपक्ष अपने मंसूबों में कितना कामयाब हो पाएगा यह 10 मार्च के बाद पता चलेगा.