नोटबंदी का असर : सूरत के पावरलूम मिलों का काम कैश के अभाव में पूरी तरह ठप

नोटबंदी का असर : सूरत के पावरलूम मिलों का काम कैश के अभाव में पूरी तरह ठप

खास बातें

  • सूरत में देश का पावरलूम का सबसे बड़ा कारोबार
  • इस सेक्‍टर से जुड़े 80 प्रतिशत लोगों का काम कैश से
  • देश भर के 21 लाख पावरलूम्स में से 8 लाख सूरत में
अहमदाबाद:

देश में पावरलूम का सबसे बड़ा कारोबार सूरत में है. गुजरातियों के अलावा अन्य राज्यों के लोगों को यहां रोजगार भी मिल जाता है पावरलूम मिल में मजदूर के तौर पर. मजदूरों में से ज्यादातर ने बैंक में अकाउंट खुलवाये हैं हालांकि उसका बहुत उपयोग नहीं होता क्योंकि उन्हें उनकी तनख्वाह कैश में मिलती है. लेकिन 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों की नोटबंदी होने के बाद अब वे मुश्किल में फंसे हैं.

सूरत में टेक्सटाइल सेक्टर में काम कर रहे 10 लाख लोगों में से करीब 80 प्रतिशत लोगों की हालत यही है. इनमें से ज्यादातर के बैंक अकाउंट हैं लेकिन ज्यादातर रोज़ाना व्यवहार कैश से ही चलता है. पावरलूम के मालिक भी ज्यादातर कैश पेमेंट ही देना पसंद करते हैं. उनका कहना है कि वो कैशलेस मोड में जाना चाहते हैं लेकिन मज़दूरों के लिए मुश्किलें और बढ़ जायेंगी.

पांडेसरा वीवर्स एसोसिएशन के प्रमुख आशीष गुजराती कहते हैं कि कैशलेस ट्रांजेक्‍शन अच्छा विचार है लेकिन ये नीचे के तबके से शुरू होना चाहिए. अनाज किराने वाले से इसकी शुरुआत होनी चाहिए. हम तो मजदूरों के खाते में आरटीजीएस से या चैक से पैसा ट्रांसफर कर देंगे लेकिन उन्हें बैंक से लाइन में लगकर कैश निकालकर ही अपनी रोज़मर्रा की खरीदारी करनी पडेगी.

वजह जो भी हो लेकिन कैश व्यवहार पर चलती इस इंडस्‍ट्री के लिए सरकार का फैसला भारी पड रहा है. पूरे देश में करीब 21 लाख पावरलूम्स हैं, जहां कपड़ा बनता है लेकिन कपड़ों की राजधानी सूरत शहर में ही अकेले इनमें से 8 लाख पावरलूम्स हैं.

इनमें ज्यादातर व्यवहार कैश से होता है. ऐसे में इन लूम्स में काम करते करीब 10 लाख मज़दूरों के लिए मुश्किलों का पहाड़ खड़ा हो गया है. आखिर इस इंडस्‍ट्री में अकेले सूरत में रोज़ाना 75 करोड़ रुपयों का टर्नओवर होता है. ऐसे में मजदूर काम छोड़कर बैंकों में अपनी खर्चा निकालने के लिए लाइनें लगाने को मजबूर हैं औऱ पूरे पावरलूम्स ठप हैं.
 
मालिकों ने अपने पावरलूम्स बंद कर दिए हैं. कुछ ने मजदूरों को देने वाली तनख्वाह के लिए कैश न होने की वजह से तो कुछ ने मजदूरों को बैंक जाने की जरूरत का बहाना करके.

मजदूरों को भी लगता है कि वक्त आ गया है जब कैश की जगह कैशलेस ट्रांजेक्‍शन पर ज्यादा जोर देना चाहिए. लेकिन वो पढ़े-लिखे नहीं हैं ना ही स्मार्टफोन्स का उपयोग करते हैं. ऐसे में इंतजार हो रहा है कि दोबारा से लिक्वीडिटी मार्केट में आए और सूरत की शान कही जानेवाली ये इंडस्‍ट्री में पावरलूम्स दोबारा से चमकने लगें.


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