नोटबंदी के बाद देश में नोट छपाई प्रणाली का आधुनिकीकरण किया जा रहा है.
नई दिल्ली:
अचानक लिए गए नोटबंदी के फैसले के बाद देश में नोट छापने की प्रणाली में बड़ा सुधार किया गया है. पिछले साल नोटबंदी के फैसले के बाद देश में मौजूद छापेखानों की काम करने की अधिकतम सीमा का पता चल गया है. इसे देखते हुए सरकार ने देश में मुद्रा छापने वाले प्रेस और पेपर मिल के विस्तार, स्वदेशीकरण और आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया है.
एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार नोटबंदी से नोट छापने की वास्तविक क्षमता का पता चल गया. नई मुद्रा की आपूर्ति में कमी के चलते महीनों तक लोगों को बैंकों और एटीएम बूथों के बाहर लंबी-लंबी कतारों में दिन-दिन भर खड़े रहना पड़ा. मुद्रा छापने के प्रेस में इस्तेमाल हो रही पुरानी प्रौद्योगिकी और पेपर मिल की सीमित क्षमता के चलते नोटबंदी के बाद मुद्रा की छपाई मांग की तुलना में कहीं पीछे रह गई.
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पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि नोटबंदी के बाद पैदा हुए हालात को देखते हुए सरकार अब देश की मुद्रा छपाई प्रणाली को सुदृढ़ करने में लगी हुई है. नासिक और देवास के मुद्रा छापेखानों में जहां 2018 के आखिर तक छपाई की नई मशीनें लगाई जाएंगी, वहीं मुद्रा छपाई में देश आत्मनिर्भरता हासिल करने और स्वदेशीकरण करने के उद्देश्य से दो नई पेपर मिलें भी लगाई जाएंगी.
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एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "हम नई छपाई प्रणालियां स्थापित करने जा रहे हैं. हम नासिक और देवास के मुद्रा छापेखानों की क्षमता में वृद्धि करने जा रहे हैं. इसमें दो वर्ष लगेंगे और यह 2018 तक पूरा होगा."
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अधिकारी ने कहा, "इस पर काम शुरू हो चुका है. मुद्रा छपाई प्रणाली में सुधार के लिए वैश्विक स्तर पर निविदा प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. नई मुद्रा छपाई प्रणालियों के अंतर्गत उन्नत प्रौद्योगिकी के तहत नई मुद्राएं छापी जाएंगी, जिसमें एक बार में 1,000 से 2,000 अतिरिक्त शीट पर छपाई की जा सकेगी. मौजूदा मशीनों की क्षमता 8,000 शीट प्रति घंटा है."
भारत में नोट छापने के लिए चार मुद्रा प्रेस हैं. कर्नाटक के मैसूर में और पश्चिम बंगाल के सालबोनी में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दो प्रेस हैं, जबकि महाराष्ट्र के नासिक और मध्य प्रदेश के देवास में सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्प ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसएमपीसीआईएल) के दो मुद्रा प्रेस हैं.
VIDEO : असर नोटबंदी का
सरकारी स्वामित्व वाली एसएमपीसीआईएल की स्थापना 2006 में की गई थी, जो नोटों की छपाई, सिक्कों की ढलाई और गैर-न्यायिक स्टांप पेपर की छपाई का काम करता है. नासिक और देवास के छापेखानों की क्षमता 60 करोड़ नोट प्रति महीने है. वहीं मैसूर और सालबोनी स्थित छापेखानों की क्षमता 16 अरब नोट प्रति वर्ष है.
(इनपुट आईएएनएस से)
एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार नोटबंदी से नोट छापने की वास्तविक क्षमता का पता चल गया. नई मुद्रा की आपूर्ति में कमी के चलते महीनों तक लोगों को बैंकों और एटीएम बूथों के बाहर लंबी-लंबी कतारों में दिन-दिन भर खड़े रहना पड़ा. मुद्रा छापने के प्रेस में इस्तेमाल हो रही पुरानी प्रौद्योगिकी और पेपर मिल की सीमित क्षमता के चलते नोटबंदी के बाद मुद्रा की छपाई मांग की तुलना में कहीं पीछे रह गई.
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पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि नोटबंदी के बाद पैदा हुए हालात को देखते हुए सरकार अब देश की मुद्रा छपाई प्रणाली को सुदृढ़ करने में लगी हुई है. नासिक और देवास के मुद्रा छापेखानों में जहां 2018 के आखिर तक छपाई की नई मशीनें लगाई जाएंगी, वहीं मुद्रा छपाई में देश आत्मनिर्भरता हासिल करने और स्वदेशीकरण करने के उद्देश्य से दो नई पेपर मिलें भी लगाई जाएंगी.
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एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "हम नई छपाई प्रणालियां स्थापित करने जा रहे हैं. हम नासिक और देवास के मुद्रा छापेखानों की क्षमता में वृद्धि करने जा रहे हैं. इसमें दो वर्ष लगेंगे और यह 2018 तक पूरा होगा."
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अधिकारी ने कहा, "इस पर काम शुरू हो चुका है. मुद्रा छपाई प्रणाली में सुधार के लिए वैश्विक स्तर पर निविदा प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. नई मुद्रा छपाई प्रणालियों के अंतर्गत उन्नत प्रौद्योगिकी के तहत नई मुद्राएं छापी जाएंगी, जिसमें एक बार में 1,000 से 2,000 अतिरिक्त शीट पर छपाई की जा सकेगी. मौजूदा मशीनों की क्षमता 8,000 शीट प्रति घंटा है."
भारत में नोट छापने के लिए चार मुद्रा प्रेस हैं. कर्नाटक के मैसूर में और पश्चिम बंगाल के सालबोनी में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दो प्रेस हैं, जबकि महाराष्ट्र के नासिक और मध्य प्रदेश के देवास में सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्प ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसएमपीसीआईएल) के दो मुद्रा प्रेस हैं.
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सरकारी स्वामित्व वाली एसएमपीसीआईएल की स्थापना 2006 में की गई थी, जो नोटों की छपाई, सिक्कों की ढलाई और गैर-न्यायिक स्टांप पेपर की छपाई का काम करता है. नासिक और देवास के छापेखानों की क्षमता 60 करोड़ नोट प्रति महीने है. वहीं मैसूर और सालबोनी स्थित छापेखानों की क्षमता 16 अरब नोट प्रति वर्ष है.
(इनपुट आईएएनएस से)
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