भारत में रेमीडेसिवियर दवा को करोना संक्रमित मरीजों के इलाज की मंजूरी दे दी गई है. लेकिन यह बड़े प्राइवेट अस्पतालों को छोड़कर बाकी जगह उपलब्ध नहीं है. ऐसे में अगर किसी मरीज को रेमीडेसिवियर दवा खरीदना हो तो ब्लैक मार्केट में अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) से कई गुना अधिक पैसा देकर ही खरीद सकता है. दिल्ली में रेमीडेसिवियर दवा को खोजना आसान नहीं है. रेमिडेसिवियर भारत में केवल 20 हजार डोज ही उपलब्ध हैं. इनमें से ज्यादातर दवा प्राइवेट अस्पतालों ने स्टाक कर रखी है.
मरीजों पर आखिरी उम्मीद के तौर पर रेमीडेसिवियर दवा का इस्तेमाल किया जाता है. बड़े प्राइवेट अस्पतालों को छोड़कर ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में यह दवा उपलब्ध नहीं है. ऐसे में जब डाक्टर ये दवा लिखते हैं तो इसे खरीदने के लिए मरीज भटकते हैं.
दिल्ली के आरएमएल अस्पताल जैसे बड़े सरकारी अस्पताल में भी यह दवा उपलब्ध नहीं है. जबकि डाक्टर इसे मरीज को बचाने की कोशिश में उसके परिजनों से यह दवा मंगाते हैं. बाजार में दवा उपलब्ध नो होने से लोगों को खासी दिक्कत हो रही है.
हमने जब ब्लैक मार्केट में रेमीडेसिवियर लेने की कोशिश की तो सारा माजरा सामने आ गया. रेमीडेसिवियर की कीमत 5400 रुपये है लेकिन यह 15000 से 160000 तक में बिक रही है. खुद कैमिस्ट एसोसिएशन भी मान रहा है कि कुछ जगहों से रेमीडेसिवियर की काला बाजारी की शिकायतें मिली हैं.
आल इंडिया कैमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश गुप्ता ने कहा कि ''देखिए ब्लैक मार्केटिंग तो इस दवा की हो रही है. यहां प्राइवेट अस्पतालों के पास ही है ये दवा. जब सरकारी अस्पतालों में ये लिखी जाती है और लोग खरीदने जाते हैं तो उन्हें ज्यादा दाम देने पड़ते हैं.''
रेमीडेसिवियर को बनाने की फिलहाल तीन कंपनियों को ही इजाजत मिली है, लेकिन फिलहाल दवा हेटरो फार्मा की कोवीफॉर ही उपलब्ध है. ये दवा खुले बाजार में नहीं मिलती है. अस्पतालों के जरिए या ऑनलाइन डाक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर कंपनी ही इस दवा को मुहैयचा कराती है. दिल्ली में गंगाराम अस्पताल के डॉक्टर विवेक गोगोई बताते हैं कि कोविड मरीजों के ठीक होने में ये दवा कितनी असरदार है, ये फिलहाल कहना मुश्किल है. लेकिन आक्सीजन पर चल रहे मरीजों को हम यह दवा देने की कोशिश करते हैं.
गंगाराम अस्पताल के कोविड कोर्डिनेटर डॉ विवेक गोगोई ने कहा कि ''मॉडरेट सिक मरीज को हम दूसरी दवा के साथ इसे देते हैं. ये एंटी फ्लू दवा है जो अक्सर देने को रिकमंड हम करते हैं.''
जानकार बताते हैं कि इस दवा के ज्यादातर स्टॉक को अमेरिका ने खरीद लिया है. भारत में तीन कंपनियों को अब इसके उत्पादन की इजाजत मिली है. लेकिन 21 जून को भारत सरकार की मंजूरी के बावजूद जब दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों में ये दवा उपलब्ध नहीं है तो दूरदराज शहरों के हालात समझे जा सकते हैं.
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