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This Article is From May 10, 2021

कोरोना को लेकर बदइंतजामी और चुनावों में उसके असर से RSS, बीजेपी में मची खलबली: सूत्र

एक नेता ने एनडीटीवी से कहा, "जब आप किसी को खो देते हैं तो उसका दु:ख और गुस्सा लंबे समय तक रहता है और वह किसी भी रूप में सामने आ सकता है."

कोरोना को लेकर बदइंतजामी और चुनावों में उसके असर से RSS, बीजेपी में मची खलबली: सूत्र
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

कोरोनावायरस (Coronavirus) की दूसरी लहर से मची तबाही को लेकर लोगों में गुस्सा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर इसके असर ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शीर्ष पदाधिकारियों में गहरी बेचैनी पैदा कर दी है. सूत्रों ने यह बात कही. प्रधानमंत्री मोदी की सात सालों की सत्ता में जन धारणा और चुनाव नतीजों ने शक्तिशाली "संघ परिवार" को कभी इतना परेशान नहीं किया.  

सूत्रों का कहना है कि भाजपा और आरएसएस इस धारणा से चिंतित हैं कि कोरोना को लेकर कुप्रबंधन से हर वो वर्ग परेशान है, जो पार्टी का कोर सपोर्टर है. मध्यम वर्ग महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है और अब वायरस गांवों का रुख कर रहा है, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में.

एक नेता ने एनडीटीवी से कहा, "जब आप किसी को खो देते हैं तो उसका दु:ख और गुस्सा लंबे समय तक रहता है और वह किसी भी रूप में सामने आ सकता है." उन्होंने कहा कि महामारी को लेकर बीजेपी पर चुनाव में क्या असर होगा इसको लेकर शीर्ष नेतृत्व में बड़ी चिंता है.

नेता ने माना कि कोरोना संकट ने लचर स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और महामारी को लेकर सरकार की तैयारी में कमी को उजागर किया है.

अगले लोकसभा चुनाव में तीन साल का समय है. लोकसभा चुनाव 2024 में होने हैं. हालांकि, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव है. यदि उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के नतीजे को संकेत के तौर पर देखा जाये तो बीजेपी के लिए यह चिंता करने का कारण है.

READ ALSO: PM मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में BJP को करारा झटका, 20% सीटें ही जीत पाई

असंतोष सतह पर नजर भी आने लगा है. केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर अपने संसदीय क्षेत्र बरेली में मेडिकल उपकरणों की "कालाबाजारी", ऑक्सीजन की किल्लत और कोरोना मरीजों को अस्पताल में दाखिल करने में हो रही देरी का मुद्दा उठाया है. उनकी यह चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.

नेताओं का कहना है कि डैमेज कंट्रोल के लिए सरकार में अमूलचूल बदलाव की आवश्यकता होगी. उनका सुझाव है कि कुछ मंत्रियों को जाना चाहिए और उनकी जगह कैबिनेट में नए चेहरों को लाया जाना चाहिए.

उनका मानना है कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, लेकिन यह तर्क काफी नहीं है क्योंकि पिछले साल से कोरोना के खिलाफ लड़ाई की अगुवाई केंद्र कर रही है. सूत्रों ने कहा, "केंद्रीय नेतृत्व को लेकर लोगों में निराशा है और मौजूदा स्थिति के लिए वे केंद्र की ओर से पर्याप्त कदम नहीं उठाए जाने को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं."

वरिष्ठ नेताओं को डर है कि जब देश में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे थे उस समय पश्चिम बंगाल में पीएम मोदी के चुनाव अभियान से "गलत संदेश" गया है. बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने पश्चिम बंगाल में बिना मास्क और जरूरी सावधानी बरते बड़ी रैलियों और रोड शो में हिस्सा लिया. 

ये नेता सरकार के भीतर संचार की कमी को भी जिम्मेदार ठहराते हैं. एक नेता ने कहा, "प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के विजय राघवन ने हमें तीसरी लहर के बारे में चेतावनी थी, लेकिन उन्होंने दूसरी लहर के बारे में कभी बात नहीं की."

एक अवधारणा बनी है कि बीजेपी की मशीनरी और उसके नेता जमीनी स्तर पर गायब है. पिछले साल की तरह इस बार लोगों को मदद नहीं मिल रही है जैसे पिछले पिछले साल पार्टी संगठन ने लॉकडाउन के दौरान खाने के पैकेट और अन्य राहत सामग्री का इंतजाम किया था. 

नेताओं के कथनों से वैक्सीनेशन अभियान में भी सरकार का कुप्रबंधन स्पष्ट होता है. नेताओं ने कहा कि जब समय था तब वैक्सीन उत्पादन क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए थी. 

सरकार में बैठे लोगों ने कोविड को लेकर केंद्र के कदम का दृढ़ता से बचाव किया है. उनका कहना है कि दूसरी लहर की भयावहता के बारे में बिल्कुल भी चेतावनी नहीं होना तैयारी में कमी का मुख्य कारण है. एक मंत्री ने कहा, "वास्तव में सरकार दूसरी लहर के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन अब कमर कस ली गई है."

कोरोनावायरस (Coronavirus) की दूसरी लहर से मची तबाही को लेकर लोगों में गुस्सा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर इसके असर ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शीर्ष पदाधिकारियों में गहरी बेचैनी पैदा कर दी है. सूत्रों ने यह बात कही. प्रधानमंत्री मोदी की सात सालों की सत्ता में जन धारणा और चुनाव नतीजों ने शक्तिशाली "संघ परिवार" को कभी इतना परेशान नहीं किया.  

सूत्रों का कहना है कि भाजपा और आरएसएस इस धारणा से चिंतित हैं कि कोरोना को लेकर कुप्रबंधन से हर वो वर्ग परेशान है, जो पार्टी का कोर सपोर्टर है. मध्यम वर्ग महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है और अब वायरस गांवों का रुख कर रहा है, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में.

एक नेता ने एनडीटीवी से कहा, "जब आप किसी को खो देते हैं तो उसका दु:ख और गुस्सा लंबे समय तक रहता है और वह किसी भी रूप में सामने आ सकता है." उन्होंने कहा कि महामारी को लेकर बीजेपी पर चुनाव में क्या असर होगा इसको लेकर शीर्ष नेतृत्व में बड़ी चिंता है.

नेता ने माना कि कोरोना संकट ने लचर स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और महामारी को लेकर सरकार की तैयारी में कमी को उजागर किया है.

अगले लोकसभा चुनाव में तीन साल का समय है. लोकसभा चुनाव 2024 में होने हैं. हालांकि, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव है. यदि उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के नतीजे को संकेत के तौर पर देखा जाये तो बीजेपी के लिए यह चिंता करने का कारण है.

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असंतोष सतह पर नजर भी आने लगा है. केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर अपने संसदीय क्षेत्र बरेली में मेडिकल उपकरणों की "कालाबाजारी", ऑक्सीजन की किल्लत और कोरोना मरीजों को अस्पताल में दाखिल करने में हो रही देरी का मुद्दा उठाया है. उनकी यह चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.

नेताओं का कहना है कि डैमेज कंट्रोल के लिए सरकार में अमूलचूल बदलाव की आवश्यकता होगी. उनका सुझाव है कि कुछ मंत्रियों को जाना चाहिए और उनकी जगह कैबिनेट में नए चेहरों को लाया जाना चाहिए.

उनका मानना है कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, लेकिन यह तर्क काफी नहीं है क्योंकि पिछले साल से कोरोना के खिलाफ लड़ाई की अगुवाई केंद्र कर रही है. सूत्रों ने कहा, "केंद्रीय नेतृत्व को लेकर लोगों में निराशा है और मौजूदा स्थिति के लिए वे केंद्र की ओर से पर्याप्त कदम नहीं उठाए जाने को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं."

वरिष्ठ नेताओं को डर है कि जब देश में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे थे उस समय पश्चिम बंगाल में पीएम मोदी के चुनाव अभियान से "गलत संदेश" गया है. बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने पश्चिम बंगाल में बिना मास्क और जरूरी सावधानी बरते बड़ी रैलियों और रोड शो में हिस्सा लिया. 

ये नेता सरकार के भीतर संचार की कमी को भी जिम्मेदार ठहराते हैं. एक नेता ने कहा, "प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के विजय राघवन ने हमें तीसरी लहर के बारे में चेतावनी थी, लेकिन उन्होंने दूसरी लहर के बारे में कभी बात नहीं की."

एक अवधारणा बनी है कि बीजेपी की मशीनरी और उसके नेता जमीनी स्तर पर गायब है. पिछले साल की तरह इस बार लोगों को मदद नहीं मिल रही है जैसे पिछले पिछले साल पार्टी संगठन ने लॉकडाउन के दौरान खाने के पैकेट और अन्य राहत सामग्री का इंतजाम किया था. 

नेताओं के कथनों से वैक्सीनेशन अभियान में भी सरकार का कुप्रबंधन स्पष्ट होता है. नेताओं ने कहा कि जब समय था तब वैक्सीन उत्पादन क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए थी. 

सरकार में बैठे लोगों ने कोविड को लेकर केंद्र के कदम का दृढ़ता से बचाव किया है. उनका कहना है कि दूसरी लहर की भयावहता के बारे में बिल्कुल भी चेतावनी नहीं होना तैयारी में कमी का मुख्य कारण है. एक मंत्री ने कहा, "वास्तव में सरकार दूसरी लहर के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन अब कमर कस ली गई है."

उन्होंने कहा, "ऑक्सीजन आपूर्ति को मजबूत किया जा रहा है. टीकाकरण अभियान को सरल किया जाएगा. हमारा वैक्सीन बास्केट बढ़ा है तथा आने वाले महीनों में हमें और वैक्सीन मिलेंगी." उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री व्यक्तिगत तौर पर प्रयासों की निगरानी कर रहे हैं. 

नेताओं ने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बंगाल प्रचार अभियान को छोटा कर लिया जैसे ही उनके ध्यान में यह बात लाई गई" और संतों को कुंभ मेला को जल्दी खत्म करने के लिए राजी किया गया. गंगा नंदी के तट पर होने वाले इस धार्मिक आयोजन से कोरोना के सुपर स्प्रेडिंग का खतरा था. उन्होंने कहा, "यह माना जा रहा है कि लोग गुस्से और दर्द में हैं. हालांकि, सरकार हरसंभव मदद की कोशिश कर रही है."

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