Coronavirus Pandemic: कोरोना वायरस की महामारी के बीच प्रवासी मजदूरों के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले में महाराष्ट्र सरकार (Maharastra Government) को खास निर्देश दिए गए हैं. इसमें राज्य में फंसे प्रवासी कामगारों (Migrant Worker) की पहचान करने में अधिक सतर्क और एकाग्र प्रयास करने को कहा गया है. निर्देशों में कहा गया है कि प्रवासी श्रमिकों की पहचान और पंजीकरण के लिए पंजीकरण के स्थानों को सार्वजनिक किया जाए. राज्य के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रवासी श्रमिकों को भोजन, आश्रय, यात्रा की सुविधा उपलब्ध न कराने की कोई शिकायत ना मिले.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार को उन श्रमिकों की पहचान करने/पंजीकरण करने के लिए उन स्थानों यानी पुलिस स्टेशनों या किसी अन्य उपयुक्त स्थान का प्रचार और घोषणा करनी चाहिएजिन्हें अभी तक कोई ट्रेन या बस यात्रा प्रदान नहीं की गई है. इसके साथ ही राज्य पर्यवेक्षी समिति, जिला पर्यवेक्षी समिति और उसके अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी प्रवासी मजदूर, जो अपने मूल स्थान पर जाने के इच्छुक हैं, की पहचान की जाए. उन्हें भोजन और आश्रय प्रदान किया जाए और फंसे हुए प्रवासियों के प्रवासियों द्वारा यात्रा या भोजन की सुविधा उपलब्ध नहीं कराने की कोई शिकायत न मिले.
महाराष्ट्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 5 लाख यात्रियों को राज्य द्वारा मुफ्त बसों से भेजा गया और अभी भी 37,000 प्रवासी अपने घर जाने का इंतजार कर रहे हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि हलफनामे में राज्य का दावा किया है कि वह प्रवासी श्रमिकों को भोजन और आश्रय प्रदान कर रहा है और पूरे श्रमिकों की सूची तैयार की गई है लेकिन हस्तक्षेपकर्ताओं और विभिन्न व्यक्तियों द्वारा यह भी रिकॉर्ड पर लाया गया है कि प्रवासी मजदूरों को भोजन की कोई उचित व्यवस्था नहीं है और न ही श्रमिकों के पंजीकरण का कोई सरल तरीका है. यह बात भी सामने आई है कि कार्यान्वयन में राज्य अधिकारियों की ओर से भारी कमी है. राज्य की नीतियां और निर्णय और अधिकांश दावे केवल कागजों पर हैं, जिससे प्रवासी श्रमिकों को बहुत दुख और कठिनाई होती है.
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