कोरोना ने फेफड़ों पर डाला घातक असर, लंग ट्रांसप्लांट की बढ़ रही मांग पर डोनर नही

फेफड़े अन्य ठोस अंगों के विपरीत पर्यावरण के संपर्क में भी होते हैं जिससे उन्हें आसानी से संक्रमित हो जाने का खतरा होता है. लंग ट्रांसप्लांट देश के चुनिंदा अस्पतालों में ही होता है.

कोरोना ने फेफड़ों पर डाला घातक असर, लंग ट्रांसप्लांट की बढ़ रही मांग पर डोनर नही

Lungs Transplant : फेफड़ों का प्रत्यारोपण बेहद जोखिम भरा औऱ लागत भी 40 लाख के करीब

मुंबई:

कोरोना महामारी मरीजों के फेफड़ों पर घातक असर डाल रही है और इस कारण फेफड़ों के प्रत्यारोपण  यानी लंग ट्रांसप्लांट  की मांग बढ़ रही है, लेकिन डोनर नहीं मिल रहे हैं.  विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड सबसे पहले और सबसे ज़्यादा लंग्स यानी फेफड़ों को नुक़सान पहुंचाता है. दूसरी लहर में ये प्रकोप कितना बढ़ा आपने भी देखा, जो मरीज़ बच गए उनमें से कई को लंग्स ट्रांसप्लांट की ज़रूरत है पर डोनर ना के बराबर मौजूद हैं.  इस सर्जरी की क़ीमत 40 लाख के क़रीब है. ये ऐसी स्थिति में होते हैं कि क़रीब 20% मरीज़ ट्रांसप्लांट वाले अस्पताल में शिफ़्टिंग के दौरान ही दम तोड़ देते हैं.

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कोरोना वायरस फेफड़ों को बड़ी तेजी से डैमेज करता है. इससे फाइब्रोसिस का खतरा पैदा होता है, इस बीमारी से जब फेफड़े बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाएं तो लंग्स बदलने यानी प्रत्यारोपण की ज़रूरत पड़ती है. ऐसे मरीज़ों की संख्या बढ़ने लगी है. ट्रांसप्लांट की दरकार वाले मरीज़ों की क़तार लम्बी है पर लंग डोनेट करने वाले न के बराबर मौजूद हैं. कोविड के दौरान ये लगभग नामुमकिन सा दिखता है.

फोर्टिस हॉस्पिटल में सीवीटीएस सर्जरी स्पेशलिस्ट (Consultant CVTS Surgery) डॉ. मनीष हिन्दुजा ने कहा कि 
कोविड की वजह से जिन्हें लंग्स ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ रही है. ऐसे महाराष्ट्र और महाराष्ट्र के बाहर से बहुत सारे लोग हमें लंग्स ट्रांसप्लांट के लिए कॉल कर रहे हैं. फ़िलहाल हमने एक का ही ऑपरेशन किया है, उसको कोविड निमोनिया था, आठ हफ़्ते बाद भी वो ECMO से बाहर नहीं आ पा रहा था. कोविड की वजह से डोनर नहीं है, बीते तीन महीने में महाराष्ट्र में सिंगल डिजिट में लंग्स डोनेट हुए हैं. अंग प्रत्यारोपण में सबसे मुश्किल फेफड़ों का प्रत्यारोपण होता है.

फेफड़े अन्य ठोस ऑर्गन के विपरीत पर्यावरण के संपर्क में भी होते हैं जिससे उन्हें आसानी से संक्रमित हो जाने का खतरा होता है. लंग ट्रांसप्लांट देश के चुनिंदा अस्पतालों में ही होता है. ज्यादात्तर दक्षिणी भारत के राज्यों में.इसकी कीमत करीब 40 से 50 लाख रुपये तक बतायी जाती है. इस जटिल ट्रांसप्लांट ऑपरेशन से रिकवर होने में महीनों लग जाते हैं. लंग्स में रिजेक्शन का खतरा बाकी अंगों की तुलना में दो से तीन गुना ज्यादा होता है.

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बताया जाता है कि दुनिया में अब तक क़रीब 4000 लोगों का ही लंग ट्रांसप्लांट हो सका है, भारत में क़रीब 200. विश्वभर में कोरोनाकाल के दौरान वायरस से संक्रमित क़रीब 50 मरीजों का ही लंग ट्रांसप्लांट हो सका है. ये आँकड़े अलग-अलग रिपोर्ट में पेश हुए हैं, फ़िलहाल इससे जुड़ा कोई सरकारी आँकड़ा नहीं.