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This Article is From Jan 27, 2015

सूचना प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन से समाजवादी और सेक्यूलर शब्द ग़ायब होने से विवाद

सूचना प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन से समाजवादी और सेक्यूलर शब्द ग़ायब होने से विवाद
गणतंत्र दिवस पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा दिया गया विज्ञापन
नई दिल्ली:

गणतंत्र दिवस पर दिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन पर विवाद खड़ा हो गया है। इसमें संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और सेक्यूलर शब्द ग़ायब हैं। इस विज्ञापन को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना दी गई है, लेकिन 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए जोड़े गए समाजवाद और सेक्यूलर शब्द नदारद हैं, क्योंकि विज्ञापन में पुरानी प्रस्तावना ही दी गई है।

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इस पर एतराज़ किया है। उन्होंने ट्वीट किया कि संविधान की प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेक्यूलर शब्द हटा दिए गए। क्या इनकी जगह कम्यूनल और कार्पोरेट शब्दों को डाला जाएगा?

हालांकि बीजेपी का कहना है कि ये जानबूझकर नहीं हुआ। पार्टी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हाराव के मुताबिक ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया और इस बारे में सूचना प्रसारण मंत्रालय स्थिति स्पष्ट करेगा।

बाद में सूचना प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने सरकार का पक्ष रखा। राठौड़ के मुताबिक विज्ञापन में सेक्यूलर और सोशलिस्ट शब्द नहीं दिख रहे हैं। ये दोनों शब्द 1976 में किए गए संशोधन के बाद आए हैं, पर इसका मतलब ये कहना कतई नहीं है कि उससे पहले की सरकार सेक्यूलर नहीं थी।

राठौड़ का कहना है कि विज्ञापन में वही तस्वीर इस्तेमाल की गई है, जो पहले गणतंत्र दिवस के समय थी। राठौड़ ने ये भी कहा कि संविधान की प्रस्तावना की यही तस्वीर पिछले साल अप्रैल भी सरकार के विज्ञापन में इस्तेमाल की गई थी और तब से अब तक सिर्फ सरकार ही बदली है। राठौड़ का कहना है कि दोनों विज्ञापनों में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन जिस तरह से इसे गलत बताया जा रहा है वह ठीक नहीं है।

सरकारी विज्ञापनों में इस तरह की गलतियां आम बात है। यूपीए सरकार के वक्त एक विज्ञापन में पाकिस्तानी सेना के प्रमुख की तस्वीर छापे जाने पर तीखा विवाद हो चुका है।

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