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This Article is From Nov 18, 2021

CBI और ED प्रमुखों का कार्यकाल बढ़ाने के अध्‍यादेश के विरोध में कांग्रेस भी पहुंची सुप्रीम कोर्ट

रणदीप सिंह सुरजेवाला (Randeep Singh Surjewala)ने इस संबंध में याचिका दाखिल करते हुए अध्यादेशों को रद्द करने की मांग की है.

CBI और ED प्रमुखों का कार्यकाल बढ़ाने के अध्‍यादेश के विरोध में कांग्रेस भी पहुंची सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्‍ली:

केंद्रीय जांच ब्‍यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) निदेशकों के कार्यकाल को बढ़ाने के अध्यादेश (Tenure of CBI & ED Directors) के खिलाफ कांग्रेस (Congress) भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गई है.  रणदीप सिंह सुरजेवाला (Randeep Singh Surjewala)ने इस संबंध में याचिका दाखिल करते हुए अध्यादेशों को रद्द करने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में ये तीसरी याचिका है इससे पहले, बुधवार को TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने भी याचिका दाखिल की थी इसमें सीबीआई और ईडी के निदेशकों के कार्यकाल को 5 साल तक बढ़ाने की अनुमति देने वाले अध्यादेशों को चुनौती दी गई है. याचिका में दावा किया गया है कि अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ हैं.

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इन दोनों के अलावा वकील एम एल शर्मा ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. उन्‍होंने  कहा है कि केंद्र का अध्यादेश असंवैधानिक, मनमाना और संविधान के साथ धोखाधड़ी है. सदन में बहुमत के बिना सरकार को कोई अध्यादेश जारी करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. 

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महुआ की याचिका में याचिका में कहा गया है कि इनमें सार्वजनिक हित' के अस्पष्ट संदर्भ के अलावा कोई मानदंड प्रदान नहीं किया गया है. वास्तव में, ये सरकार की व्यक्तिपरक संतुष्टि पर आधारित है, इसका प्रत्यक्ष और स्पष्ट प्रभाव जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता को नष्ट करने का है.ये अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ जाते हैं जो प्रवर्तन निदेशक और निदेशक, सीबीआई के कार्यकाल को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए बहुत आवश्यक स्थिरता प्रदान करते हैं.ये कदम वास्तव में जांच एजेंसियों पर कार्यपालिका के नियंत्रण की पुष्टि करता है, उनके स्वतंत्र कामकाज के लिए सीधे विरोधी है.लागू अध्यादेश और अधिसूचना सरकार द्वारा शक्ति के स्पष्ट दुरुपयोग और इस अदालत  के आदेश का प्रमुख उल्लंघन  है .संसद सत्र शुरू होने से कुछ दिन पहले अध्यादेश जारी किया गया.ED के मौजूदा निदेशक की सेवानिवृत्ति से तीन दिन पहले अध्यादेश जारी करने की यह हड़बड़ी दिखाई गई, यह सत्ता के स्पष्ट दुरुपयोग के बराबर है.ये अदालत द्वारा निर्धारित सिद्धांतों का सीधे उल्लंघन हैं.

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