यह ख़बर 08 अगस्त, 2012 को प्रकाशित हुई थी

सोनिया, कांग्रेस के भड़कने पर आडवाणी ने मानी गलती, वापस लिया बयान

खास बातें

  • लालकृष्ण आडवाणी द्वारा यूपीए-2 सरकार की वैधता पर सवाल उठाने को लेकर की गई टिप्पणी से लोकसभा में खासा हंगामा हुआ और सोनिया तथा कांग्रेस के कड़े विरोध के चलते उन्हें अपने शब्द वापस लेने पड़े।
नई दिल्ली:

बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा यूपीए-2 सरकार की वैधता पर सवाल उठाए जाने से लोकसभा में खासा हंगामा हुआ और कांग्रेस के कड़े  विरोध के चलते उन्हें अपने शब्द वापस लेने पड़े। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी सदस्यों आडवाणी की टिप्पणी के लिए उनकी कड़ी आलोचना की।

बाद में आडवाणी ने कहा कि वह 2008 के विश्वास मत की बात कर रहे थे, जिसमें सरकार बचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे। आडवाणी ने असम में हिंसा पर कार्यस्थगन प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि यूपीए-2 नाजायज है। ऐसा भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ। वोट हासिल करने के लिए करोड़ों रुपये कभी नहीं खर्च किए गए। इस पर सत्ता पक्ष के सदस्यों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

इसके बाद हंगामा तेज हो गया और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी बीच में उठकर कुछ कहते हुए सुना गया। बाद में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने आडवाणी से अपने शब्द वापस लेने की मांग की। जोरदार हंगामे के बीच लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार सदस्यों से शांत रहने की अपील की और उन्होंने आडवाणी से अपने शब्द वापस लेने का आग्रह किया। सोनिया गांधी ने भी आडवाणी से अपना बयान वापस लेने को कहा, जिसके बाद आडवाणी ने अपने शब्द वापस लेने की घोषणा की।

स्थिति को सामान्य बनाने के लिए अध्यक्ष मीरा कुमार ने आडवाणी से अपनी टिप्पणी को वापस लेने को कहा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। ऐसा करते हुए उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि उनकी टिप्पणी यूपीए-2 सरकार के बारे में नहीं, बल्कि यूपीए-1 सरकार के समय विश्वासमत के दौरान हुए घटनाक्रम के संदर्भ में थी।

आडवाणी ने प्रश्नकाल के बाद लगभग 12 बजे असम की हाल की जातीय हिंसा की घटनाओं पर कार्यस्थगन प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए उक्त टिप्पणी की थी। सदन के नए नेता सुशील कुमार शिंदे ने आडवाणी की टिप्पणी पर सख्त आपत्ति जताते हुए कहा कि वह एक वरिष्ठ नेता हैं और हम उनका सम्मान करते हैं, लेकिन उन्होंने अपनी टिप्पणी के द्वारा पूरे चुनाव को अवैध करार दे दिया है, जो हम सब के लिए अपमान की बात है। उन्हें अपने शब्दों को वापस लेना चाहिए।

संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुए कहा कि जिस विषय पर कार्यस्थगन प्रस्ताव दिया जाता है, केवल उसी पर बात रखे जाने की अनुमति रहती है, लेकिन आडवाणी दूसरे विषय को उठा रहे हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष के सदस्यों की ओर से काफी देर से जारी हंगामे के बीच अध्यक्ष मीरा कुमार ने सदन की कार्यवाही 1 बजे भोजनावकाश के लिए स्थगित कर दी।

संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन लोकसभा में असम हिंसा के मुद्दे पर और राज्यसभा में विपक्ष और सरकार को बाहर से समर्थन दे रही बसपा के सदस्यों के विभिन्न मुद्दों पर हंगामे के कारण कार्यवाही 12 बारह बजे तक स्थगित कर दी गई।

इससे पहले, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि सरकार संसद के नियमों और परंपराओं के अनुसार किसी भी विषय पर बहस कराने के लिए तैयार है और साथ ही उम्मीद जताई कि विपक्ष दोनों सदनों में सरकारी कामकाज को पूरा करने में हरसंभव सहयोग देगा। संसद की इमारत के भीतर प्रवेश करने से पहले संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा, हमारी सरकार किसी भी मुद्दे पर संसद के नियमों और परंपराओं के अनुरूप बहस कराने के लिए तैयार है।

असम में जातीय हिंसा के मामले को लेकर बीजेपी की ओर से कार्यस्थगन प्रस्ताव लाए के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा, हम संसद को बहस का मंच मानते हैं। उन्होंने कहा कि असम की हिंसा के बारे में उनके बयान का फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि संसद में क्या कुछ होता है। सिंह ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सभी दल मॉनसून सत्र के दौरान दोनों सदनों के कामकाज को सहज ढंग से चलाने में सरकार का सहयोग करेंगे।

इस सत्र के दौरान सरकार संसद में करीब 31 बिल पेश करेगी, हालांकि लोकपाल बिल अभी लिस्ट में नहीं है। सरकार के रणनीतिकारों की मानें तो सेलेक्ट कमेटी से बिल के आने के बाद उसे राज्यसभा में पेश किया जा सकता है।

इसके अलावा स्पेक्ट्रम, कोयला ब्लॉक आवंटन और एयरसेल-मैक्सिस सौदे जैसे कथित घोटालों पर भी विपक्ष सरकार को घेरने का प्रयास करेगा। तमिलनाडु एक्सप्रेस ट्रेन में लगी आग सहित पिछले कुछ दिनों में बढ़ती रेल दुर्घटनाओं के मामलों को उठाकर सरकार की दुखती रग को दबाने का भी प्रयास होगा। रेल मंत्रालय ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले तृणमूल कांग्रेस के पास है, जो कांग्रेस का सहयोगी दल है।

इस साल देश के अधिकतर हिस्से में मॉनसून की कमी का विषय भी संसद में जोर-शोर से उठेगा। विपक्ष का आरोप है कि बारिश नहीं होने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई है, लेकिन सरकार की उससे निपटने की कोई तैयारी नहीं है।

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा, देश बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। विश्व में भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग घटाए जाने, रुपये का अवमूल्यन होने और इनकी वजह से उत्पन्न समस्याओं पर हम संसद में गंभीर चर्चा और सरकार के ईमानदार जवाब की मांग करेंगे।

सुषमा स्वराज ने कहा कि इसके अलावा खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दिए जाने की सरकार की मंशा के बारे में उनकी पार्टी स्पष्टीकरण चाहेगी। सरकार से उन्होंने मांग की कि इस मुद्दे पर या तो वह चर्चा कराए अथवा सदन में आश्वासन दे कि खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति नहीं दी जाएगी।

प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बन जाने से लोकसभा में अब उनकी जगह सुशील कुमार शिंदे सदन के नेता के रूप में दिखेंगे। सीपीएम के गुरुदास दासगुप्ता ने कहा, संसद के इस सत्र में हमारी पहली प्राथमिकता अर्थव्यवस्था की संकट पर चर्चा कराना होगी, क्योंकि सरकार इस सचाई पर पर्दा डालने को प्रयासरत है। एफडीआई मामले में सरकार पर साफ रुख नहीं अपनाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा, संसद सरकार की कोई 'नाचती गुड़िया' नहीं है। उसे विपक्ष की मांगों को गंभीरता से लेना चाहिए।

यूपीए के घटक दल तृणमूल कांग्रेस ने भी सरकार को चेतावनी दी कि वह एफडीआई और पेंशन विधेयक जैसी जन-विरोधी नीतियों को आगे बढ़ाने से बाज आए। 7 सितंबर तक चलने वाले मॉनसून सत्र में पुणे विस्फोट, असम के जातीय दंगे, रेल दुर्घटनाओं, बिजली ग्रिड के ठप होने, अमरनाथ यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के निधन और मारुति संयत्र में हिंसा जैसे विषयों पर भी विपक्ष सरकार को जोरदार ढंग से घेरने का प्रयास करेगा।

संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने बताया कि मॉनसून सत्र में 31 विधेयक विचार के लिए रखे जाएंगे, लेकिन लोकपाल विधेयक पर अभी अनिश्चितता बनी हुई है। इस सत्र के लिए सूचीबद्ध मुख्य विधेयकों में महिला आरक्षण विधेयक, वायदा अनुबंधन विधेयक और व्हिसल ब्लोयर विधेयक शामिल हैं।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

पिछले 42 साल से लंबित बहुचर्चित लोकपाल विधेयक के इस सत्र में पारित होने की संभावना नहीं है। बंसल ने कहा कि इस विधेयक की अभी प्रवर समिति में समीक्षा पूरी नहीं हो पाने के कारण इसे इस सत्र के लिए अभी सूचीबद्ध नहीं किया गया है। इस विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन राज्यसभा से इसका पारित होना अभी बाकी है।