सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आतंकवादी संगठन ISIS में शामिल होने गई महिला और उसकी बेटी का अफगानिस्तान से प्रत्यर्पण कराने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि आठ हफ्तों के भीतर पीड़ित पिता के प्रतिनिधित्व पर विचार करे.
इसके साथ ही कोर्ट ने उस पिता को भी आजादी दी कि अगर केंद्र के फैसले से संतुष्ट ना हों तो हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए ये निर्देश दिया है.
कोर्ट ने वीजे सेबेस्टियन द्वारा दायर एक याचिका में ये निर्देश पारित किया है. उन्होंने बेटी सोनिया सेबेस्टियन (अब इस्लाम में धर्मांतरण के बाद आइशा ) के प्रत्यर्पण की मांग की है, जो 2016 में आतंकवादी संगठन ISIS में शामिल होने के लिए अपने पति के साथ अफगानिस्तान चली गई थी. उसके साथ उसकी नाबालिग बेटी सारा भी है.
सोनिया कथित तौर पर तालिबान के सत्ता में आने से पहले अफगानिस्तान की एक जेल में बंद थी. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा करने से पहले जुलाई 2021 में याचिका दायर की गई थी.
हालांकि तालिबान के सत्ता में आने के बाद जेलों को ध्वस्त कर दिया गया है, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि सोनिया और उसकी बेटी हिरासत में नहीं हैं, क्योंकि सीमावर्ती इलाकों में कैदियों को हिरासत में लेने की खबरें हैं.
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2019 में सोनिया के पति को अफगान बलों ने मार डाला था, उसके बाद सोनिया ने बेटी समेत अफगान बलों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. सोनिया सेबेस्टियन के खिलाफ आतंकी संगठन ISIS में शामिल होने के लिए भारत में UAPA के तहत एक आपराधिक मामला भी चल रहा है.याचिकाकर्ता ने कहा है कि केंद्र सरकार उसे भारत प्रत्यर्पित करने के लिए सक्रिय कदम नहीं उठा रही है.
याचिका में दलील दी गई है कि बंदियों को वापस लाने के लिए केंद्र सरकार की निष्क्रियता अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत अपने दायित्वों का उल्लंघन है, जिसमें मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 ( UHDe) और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध, 1966 शामिल हैं.
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याचिकाकर्ता की बेटी सहित 4 भारतीय महिलाओं के एक इंटरव्यू का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि यह देखा जा सकता है कि याचिकाकर्ता की बेटी ISIS में शामिल होने के अपने फैसले पर पछता रही है और भारत वापस जाना चाहती है.- वो एक भारतीय अदालत के समक्ष निष्पक्ष ट्रायल का सामना करना चाहती है.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि प्रतिवादियों द्वारा बंदियों के प्रत्यावर्तन या प्रत्यर्पण की सुविधा के लिए कदम नहीं उठाना अवैध और असंवैधानिक है क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. भारत ने वर्ष 2016 में अफगानिस्तान के साथ एक प्रत्यर्पण संधि में प्रवेश किया था. 24 नवंबर 2019 को काबुल में संधि के अनुसमर्थन के साधनों का आदान-प्रदान किया गया था.
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