यह ख़बर 31 जुलाई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

चिदंबरम फिर से बने वित्तमंत्री, शिंदे नए गृहमंत्री

खास बातें

  • वित्तमंत्रालय की कमान एक बार फिर चिदंबरम को सौंपी गई है, वहीं ऊर्जा मंत्रालय संभाल रहे सुशील कुमार शिंदे को नया गृहमंत्री बनाया गया है। वीरप्पा मोइली को ऊर्जा मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है।
नई दिल्ली:

प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री ने केंद्रीय कैबिनेट में दो अहम फेरबदल किए हैं। प्रणब के जाने के बाद खाली हुए वित्तमंत्रालय की कमान एक बार फिर पी चिदंबरम को सौंपी गई है, वहीं अभी तक ऊर्जा मंत्रालय संभाल रहे सुशील कुमार शिंदे को देश का नया गृहमंत्री बनाया गया है। वीरप्पा मोइली को ऊर्जा मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है।

प्रणब मुखर्जी के बाद सरकार के सामने एक बड़ी चिंता सदन का नेता बनाने को लेकर भी थी, मुखर्जी के बाद अब शिंदे सदन के नेता होंगे। राष्ट्रपति भवन की एक विज्ञप्ति में कहा गया कि कंपनी मामलों के मंत्री वीरप्पा मोइली को बिजली मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। 66 साल के चिदंबरम की साढ़े तीन साल से अधिक समय के बाद वित्तमंत्रालय में वापसी हुई है।

मुंबई में आतंकी हमलों के मद्देनजर दिसंबर, 2008 में देश की सुरक्षा को मजबूत बनाने के दायित्व के साथ चिदंबरम को वित्तमंत्रालय से गृह मंत्रालय भेजा गया था।

अब वह वित्तमंत्रालय ऐसे समय संभाल रहे हैं, जब देश की अर्थव्यवस्था मंदी का सामना कर रही है और टैक्स से संबंधित कुछ फैसलों के कारण विदेशी निवेशक भारत में निवेश करने से कतरा रहे हैं। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना और निवेशकों का भारत में भरोसा बहाल करना नए वित्तमंत्री के रूप में चिदंबरम की बड़ी चुनौतियां होंगी।

ऐसी संभावना है कि 7 सितंबर को संसद का मॉनसून सत्र संपन्न होने के बाद प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद में बड़ा फेरबदल करेंगे, जिसमें यूपीए के प्रमुख घटक दल डीएमके का प्रतिनिधित्व फिर से हो सकता है। इसके अलावा मुखर्जी के खिलाफ बीजेपी के समर्थन से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने वाले पीए संगमा का प्रचार करने के चलते उनकी बेटी और ग्रामीण विकास राज्य मंत्री अगाथा संगमा के बारे में भी कुछ निर्णय किया जा सकता है।

कांग्रेस ने इस फेरबदल पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि प्रणब मुखर्जी के शीर्ष संवैधानिक पद पर आसीन होने से रिक्त हुए पद की भरपाई के लिए यह फेरबदल स्वाभाविक था। पार्टी के महासचिव जनार्दन द्विवेद्वी ने कहा, मुखर्जी के राष्ट्रपति बन जाने के बाद प्रधानमंत्री को अपने इस विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए यह आवश्यक फेरबदल करना ही था।

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(इनपुट  भाषा से भी)