सांकेतिक तस्वीर
अहमदाबाद:
अहमदाबाद और मुंबई के बीच फिलहाल सबसे तेज़ शताब्दी एक्सप्रेस दौड़ती है। इसी कॉरिडोर में बीते तीन साल से सबसे तेज़ बुलेट ट्रेन का सपना भी दौड़ाया जा रहा है।
लगातार तीन सालों से सरकारें ये घोषणा करती रही हैं कि अहमदाबाद और मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन दौड़ाई जाएगी। इससे भारत में सही मायनों में हाई स्पीड ट्रेनों का दौर शुरू होगा। सपनों की ये ट्रेन मंज़िल तक जब पहुंचेगी तब पहुंचेगी, लेकिन आईआईएम अहमदाबाद का एक अध्ययन बता रहा है कि ये बेहद ख़र्चीली होगी।
जापान सॉफ्ट लोन के रूप में देगा 80 फीसदी पैसा
पूरे प्रोजेक्ट का खर्च करीब 1 लाख करोड़ रुपये है। इसके लिए 80 प्रतिशत पैसा यानी 80,000 करोड़ जापान सॉफ्ट लोन के तौर पर देने वाला है। यानी 15 साल तक सिर्फ 0.1 प्रतिशत ब्याज पर देगा। उसके बाद वो बाजार भाव पर ब्याज लेगा, इस उम्मीद के साथ कि तब तक बुलेट ट्रेन अपनी पूरी तैयारी पर दौड़ती होगी। क्योंकि इसे बनने में करीब 8 से 10 साल लगेंगे और उसके बाद 5 साल उसे लोगों के बीच अपनी रफ्तार पकड़ने में लगेंगे।
फिर इसके पैसे चुकाने के लिए और इस प्रोजेक्ट को अपने पांवों पर खड़े होने के लिए इस अध्ययन के मुताबिक इसके लिए 11 करोड़ रुपये रोज़ कमाने होंगे। इसके लिए टिकट भी 500 किलोमीटर के लिए 2500 रुपये का टिकट रखना होगा और मुसाफ़िरों की तादाद भी काफी बड़ी रखनी होगी।
'100 बुलेट ट्रेन रोज, हर ट्रेन में 1100 लोग करें सफर'
इस अध्ययन को करने वाले आईआईएम अहमदाबाद के अध्यापक जी. रघुराम का कहना है कि रोज़ाना अगर 100 बुलेट ट्रेनें दौड़ाई जाएं और हर एक ट्रेन में 1100 के करीब लोग सफर करें तब जाकर ये पैसा कमाया जा सकेगा।
एक मुश्किल है कि ये अनुमान तब है जब डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर न हो। अगर कमज़ोर हुआ तो टिकट और भी महंगे करने होंगे। इसे लेकर कांग्रेस अब मोदी सरकार पर हमला करने लगी है। कांग्रेस ये प्रचार करने लगी है कि ये फिज़ूलखर्ची हो रही है। इतने पैसों में कई औऱ काम हो सकते हैं, जिनका नतीजा अच्छा आने की पूरी उमीद की जा सकती है। लेकिन विरोध में कांग्रेस ये भूल गई कि बुलेट ट्रेन का पहला प्रस्ताव उसकी सरकार के वक्त ही आया था।
दुनिया के 15 देशों में चल रही हैं हाईस्पीड ट्रेनें
जानकारों का कहना है कि भले ही प्रोजेक्ट खर्चीला हो, लेकिन इसका होना देश के लिए जरूरी है। आज दुनियाभर में केवल 15 देश हैं जहां इस तरह की हाईस्पीड ट्रेनें चलती हैं। अगर भारत को उनकी कतार में खड़ा रहना है तो इस तरह की हाई एन्ड टेक्नोलॉजी पाना बहुत अहम है।
एक कोशिश ये भी हो रही है कि थाणे के पास मुंबई पहुंचने से पहले ट्रेन समंदर के नीचे भी चलेगी। अगर ऐसा संभव हुआ तो ये भी लोगों के लिए एक अनूठा अनुभव होगा। दलील जब देश की इज्ज़त की हो जाए तो बाकी दलीलें बेमानी हो जाती हैं।
लगातार तीन सालों से सरकारें ये घोषणा करती रही हैं कि अहमदाबाद और मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन दौड़ाई जाएगी। इससे भारत में सही मायनों में हाई स्पीड ट्रेनों का दौर शुरू होगा। सपनों की ये ट्रेन मंज़िल तक जब पहुंचेगी तब पहुंचेगी, लेकिन आईआईएम अहमदाबाद का एक अध्ययन बता रहा है कि ये बेहद ख़र्चीली होगी।
जापान सॉफ्ट लोन के रूप में देगा 80 फीसदी पैसा
पूरे प्रोजेक्ट का खर्च करीब 1 लाख करोड़ रुपये है। इसके लिए 80 प्रतिशत पैसा यानी 80,000 करोड़ जापान सॉफ्ट लोन के तौर पर देने वाला है। यानी 15 साल तक सिर्फ 0.1 प्रतिशत ब्याज पर देगा। उसके बाद वो बाजार भाव पर ब्याज लेगा, इस उम्मीद के साथ कि तब तक बुलेट ट्रेन अपनी पूरी तैयारी पर दौड़ती होगी। क्योंकि इसे बनने में करीब 8 से 10 साल लगेंगे और उसके बाद 5 साल उसे लोगों के बीच अपनी रफ्तार पकड़ने में लगेंगे।
फिर इसके पैसे चुकाने के लिए और इस प्रोजेक्ट को अपने पांवों पर खड़े होने के लिए इस अध्ययन के मुताबिक इसके लिए 11 करोड़ रुपये रोज़ कमाने होंगे। इसके लिए टिकट भी 500 किलोमीटर के लिए 2500 रुपये का टिकट रखना होगा और मुसाफ़िरों की तादाद भी काफी बड़ी रखनी होगी।
'100 बुलेट ट्रेन रोज, हर ट्रेन में 1100 लोग करें सफर'
इस अध्ययन को करने वाले आईआईएम अहमदाबाद के अध्यापक जी. रघुराम का कहना है कि रोज़ाना अगर 100 बुलेट ट्रेनें दौड़ाई जाएं और हर एक ट्रेन में 1100 के करीब लोग सफर करें तब जाकर ये पैसा कमाया जा सकेगा।
एक मुश्किल है कि ये अनुमान तब है जब डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर न हो। अगर कमज़ोर हुआ तो टिकट और भी महंगे करने होंगे। इसे लेकर कांग्रेस अब मोदी सरकार पर हमला करने लगी है। कांग्रेस ये प्रचार करने लगी है कि ये फिज़ूलखर्ची हो रही है। इतने पैसों में कई औऱ काम हो सकते हैं, जिनका नतीजा अच्छा आने की पूरी उमीद की जा सकती है। लेकिन विरोध में कांग्रेस ये भूल गई कि बुलेट ट्रेन का पहला प्रस्ताव उसकी सरकार के वक्त ही आया था।
दुनिया के 15 देशों में चल रही हैं हाईस्पीड ट्रेनें
जानकारों का कहना है कि भले ही प्रोजेक्ट खर्चीला हो, लेकिन इसका होना देश के लिए जरूरी है। आज दुनियाभर में केवल 15 देश हैं जहां इस तरह की हाईस्पीड ट्रेनें चलती हैं। अगर भारत को उनकी कतार में खड़ा रहना है तो इस तरह की हाई एन्ड टेक्नोलॉजी पाना बहुत अहम है।
एक कोशिश ये भी हो रही है कि थाणे के पास मुंबई पहुंचने से पहले ट्रेन समंदर के नीचे भी चलेगी। अगर ऐसा संभव हुआ तो ये भी लोगों के लिए एक अनूठा अनुभव होगा। दलील जब देश की इज्ज़त की हो जाए तो बाकी दलीलें बेमानी हो जाती हैं।
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