अखिलेश शर्मा की कलम से : 'भारत जो इंडिया था', पंचशील से पंचामृत तक

बेंगलुरु:

बीजेपी ने विदेश नीति पर कामयाबी के लिए मोदी सरकार की पीठ थपथपाई है और पिछले 10 महीनों में इस मोर्चे पर उठाए गए कदमों को गिनाने के लिए कार्यकारिणी की बैठक में अलग से एक प्रस्ताव पारित किया है।

इस प्रस्ताव की खास बात ये है कि अंग्रेजी में तैयार इस प्रस्ताव में अधिकांश जगह इंडिया की जगह भारत लिखा गया है। इंडिया शब्द का प्रयोग वहीं हुआ है, जो अधिक प्रचलन में है जैसे मेक इन इंडिया, आसियान-इंडिया सम्मेलन, इंडियन ओशन, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी आदि।
 
3889 शब्दों में तैयार किए गए विदेश नीति के इस प्रस्ताव में इंडिया या इंडियन शब्दों का प्रयोग सिर्फ 14 बार है और वो भी तब किया गया, जब प्रचलन की वजह से उसके बिना काम नहीं चल सकता। इनका जिक्र ऊपर किया गया है। जबकि भारत और भारतीयता शब्द का प्रयोग 60 बार किया गया है। यहां तक कि एक-दो बार तो मेक इन इंडिया की जगह मेक इन भारत भी कहा गया है।
 
ये बात इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि संघ परिवार के बड़े हिस्से से ये मांग लगातार उठती रही है कि भारत अकेला ऐसा देश है, जिसके दो नाम हैं। एक भारत तो दूसरा इंडिया। लिहाज़ा इसका नाम सिर्फ भारत ही कर दिया जाए। पर ऐसा करना आसान नहीं है, क्योंकि इंडिया शब्द का इस्तेमाल संविधान की प्रस्तावना में किया गया है। सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि संविधान के मूल ढांचे में छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।

संविधान सभा में इस मुद्दे पर लंबी बहस हुई थी। कई प्रतिनिधि चाहते थे कि इंडिया दैट इज़ भारत के बजाए भारत दैट इज़ इंडिया का प्रयोग किया जाए। जबकि हरगोविंद पंत का मानना था कि सिर्फ भारतवर्ष शब्द का ही प्रयोग हो। आखिर में सर्वसम्मति से भारत को भी जोड़ा गया। ये बात इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बहस के दौरान कई सदस्यों का मानना था कि भारत कहना इसलिए ठीक रहेगा, क्योंकि इसने कई शताब्दियों के विदेशी शासन के बाद स्वतंत्रता हासिल की है और भारत हिंदू आधिपात्य का प्रतीक होगा।
 
दिलचस्प बात ये है कि विदेश नीति पर ये प्रस्ताव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बीजेपी में आए राम माधव ने तैयार किया है, जो अब पार्टी के महासचिव हैं। भारत की विदेश नीति में संघ परिवार की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा के हिसाब से कुछ बुनियादी परिवर्तनों का भी इस प्रस्ताव में विशेष तौर पर जिक्र किया गया है।

दशकों से भारत की विदेश नीति नेहरू के जिस शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पंचशील सिद्धांत की बात करती है, उसे अब पंचामृत का रूप दिया गया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि पंचामृत अब भारतीय विदेश नीति के नए आधार स्तंभ होंगे। पंचामृत यानी सम्मान, संवाद, समृद्धि, सुरक्षा और संस्कृति एवं सभ्यता। पंचामृत का अर्थ है पांच अमृत। दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से मिलकर तैयार होता है पंचामृत जो मंदिरों पर विशेष अवसरों पर चढ़ाया जाता है और इसका प्रसाद वितरित किया जाता है।

विदेश नीति पर आए इस प्रस्ताव में भारत को ध्रुव तारा बताया गया है। प्रस्ताव कहता है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत प्रजातांत्रिक दुनिया का ध्रुव तारा बन गया है। ध्रुव तारे की भी भारतीय पौराणिक परंपरा में एक अलग कहानी है। माना जाता है कि उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वरदान दिया था। उत्तर दिशा स्थित ध्रुव तारा सबका मार्गदर्शन करता है।
 
प्रस्ताव में अप्रवासी भारतीयों का भी खासतौर से जिक्र किया गया है। उन्हें भारतवासी कहकर संबोधित किया गया है। वहीं मॉरीशस आदि जैसे देशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के बारे में कहा गया है कि वो भारतीयता मूल के लोग हैं।

प्रस्ताव में 21 जून को अंतराराष्ट्रीय योग दिवस घोषित कराने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का अभिनंदन किया गया है। कहा गया है कि कैसे सिर्फ 75 दिनों के भीतर 177 देशों ने मोदी के इस प्रस्ताव का समर्थन किया। उनकी इस बात के लिए भी सराहना की गई है कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र आम सभा को हिंदी में संबोधित किया और अटल बिहारी वाजपेयी के बाद ऐसा करने वाले वो दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री हैं।

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भारतीय सभ्यता के मंत्र वसुधैव कुटुंबकम् का भी प्रस्ताव में जिक्र किया गया है। कहा गया है कि किस तरह सारी दुनिया को एक परिवार मानने वाले इस मंत्र की सोच के साथ भारत ने पिछले दस महीनों में दुनिया भर के कई देशों के साथ रिश्ते आगे बढ़ाए हैं। इस दौरान भारत ने 94 देशों के साथ संपर्क स्थापित किया है।