1971 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह ने अदम्य बहादुरी और साहस का परिचय दिया था.
नई दिल्ली:
फिल्म बॉर्डर( Border movie) में जिन बिग्रेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी (Brigadier Kuldip Singh Chandpuri) का रोल अभिनेता सनी देओल ने किया था, वह अब नहीं रहे. भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 की लोंगेवाला की ऐतिहासिक लड़ाई के नायक और महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी का मोहाली के एक निजी अस्पताल में शनिवार को निधन हो गया. उनके परिवार ने बताया कि वह 78 साल के थे. वह पिछले काफी समय से कैंसर से ग्रसित चल रहे थे. उनके परिवार में पत्नी और तीन बेटे हैं. भारत-पाकिस्तान की राजस्थान स्थित सीमा पर हुई लड़ाई पर बनी हिंदी फिल्म बॉर्डर वर्ष 1997 में रिलीज हुई थी. इस चर्चित फिल्म में सन्नी देओल ने ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी की भूमिका निभायी थी. इस भूमिका को तब काफी सराहना मिली थी. सेना में अपनी बहादुरी के चलेत ब्रिगेडियर चांदपुरी को महावीर चक्र जैसा सम्मान मिला था.
1971 में हुई लोंगेवाला की लड़ाई भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी सेक्टर में हुई पहली बड़ी लड़ाइयों में एक थी. यह राजस्थान के थार मरुस्थल में लोंगेवाल की भारतीय सीमा चौकी पर हमलावर पाकिस्तानी सैनिकों और भारतीय सैनिकों के बीच लड़ी गयी थी. भारतीय सेना की 23 वीं बटालियन में मेजर कुलदीप सिंह की कमान वाली पंजाब रेजीमेंट के पास दो विकल्प थे - या तो वह और जवानों के आने तक पाकिस्तानी दुश्मनों को रोकने की कोशिश करे या भाग जाए. मगर बहादुर जवानों से लैस इस रेजीमेंट ने पहला विकल्प चुना और चांदपुरी ने यह पक्का किया कि सैनिकों और साजो समान का अच्छे से अच्छा इस्तेमाल किया जाए. उन्होंने अपने मजबूत बचाव की स्थिति का अधिक इस्तेमाल किया तथा दुश्मन की गलतियों का फायदा उठाया. नतीजा यह निकला कि दुश्मन सेना के छक्के छूट गए. (इनपुट-भाषा से)
1971 में हुई लोंगेवाला की लड़ाई भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी सेक्टर में हुई पहली बड़ी लड़ाइयों में एक थी. यह राजस्थान के थार मरुस्थल में लोंगेवाल की भारतीय सीमा चौकी पर हमलावर पाकिस्तानी सैनिकों और भारतीय सैनिकों के बीच लड़ी गयी थी. भारतीय सेना की 23 वीं बटालियन में मेजर कुलदीप सिंह की कमान वाली पंजाब रेजीमेंट के पास दो विकल्प थे - या तो वह और जवानों के आने तक पाकिस्तानी दुश्मनों को रोकने की कोशिश करे या भाग जाए. मगर बहादुर जवानों से लैस इस रेजीमेंट ने पहला विकल्प चुना और चांदपुरी ने यह पक्का किया कि सैनिकों और साजो समान का अच्छे से अच्छा इस्तेमाल किया जाए. उन्होंने अपने मजबूत बचाव की स्थिति का अधिक इस्तेमाल किया तथा दुश्मन की गलतियों का फायदा उठाया. नतीजा यह निकला कि दुश्मन सेना के छक्के छूट गए. (इनपुट-भाषा से)
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