बेला भाटिया ने कहा- वह धमकियों से नहीं डरतीं (फाइल फोटो)
बस्तर:
“मैं बस्तर में ही रहूंगी. बस्तर छोड़ने का कोई इरादा नहीं. मैं लगातार मिल रही धमकियों से नहीं डरी हूं." एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने कहा कि उन्हें पिछले कुछ सालों से लगातार डरा धमका कर बस्तर से भगाने की कोशिश हो रही है, लेकिन वह डटी रहेंगी. सोमवार को जगदलपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर परपा गांव में रह रही बेला भाटिया के मकान को करीब 30 लोगों ने घेर लिया. इनमें से कई लोग मुंह पर कपड़ा बांध कर भाटिया के खिलाफ नारे लगा रहे थे. बेला भाटिया मानवाधिकार आयोग की उस टीम की मदद कर रही हैं, जो इस वक्त बीजापुर के गांवों में आदिवासी महिलाओं के साथ कथित बलात्कार की शिकायत की जांच कर रही है. इसी साल 6 जनवरी को मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बीजापुर में 16 महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है और राज्य सरकार को इस बारे में नोटिस दिया गया था.
कुछ दिन पहले ही बेला भाटिया एक बार फिर से मानवाधिकार आयोग की टीम के साथ बीजापुर के उन गांवों में गई थीं. भाटिया का कहना है कि घेराव की पहली रात भी अंधेर में उनके घर पर आकर कुछ लोगों ने दस्तक दी लेकिन उस वक्त किसी को वह पहचान नहीं पाईं. भाटिया का कहना है सोमवार को दोपहर में करीब 30 लोगों ने आकर उन्हें घर खाली करने को कहा और उनके खिलाफ नक्सली समर्थक होने के नारे लगाए. पुलिस और सरपंच की मौजूदगी में बेला की मकान मालकिन और उनसे 24 घंटे में घर खाली कराने की बात सादे कागज पर लिखा ली गई.
भाटिया का कहना है कि उन्होंने जिलाधिकारी अमित कटारिया से कहा है कि उन्हें अपना सामान लेकर घर छोड़ना है और इसके लिए वह जगह चाहती हैं. “मैंने जिलाधिकारी से रहने के लिए जगह मांगी है. उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं गेस्ट हाउस में रह सकती हूं, लेकिन मुझे रहने के लिए घर चाहिए.
इस बारे में बस्तर के डीएम अमित कटारिया से संपर्क नहीं हो पाया है और एनडीटीवी इंडिया के अपने भेजे सवालों के जवाब का इंतज़ार है. लेकिन पुलिस ने अपने बयान में यह कहा कि बेला भाटिया को पर्याप्त सुरक्षा दी जा रही है.बस्तर सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को डराने धमकाने की बात नई नहीं है. इससे पहले कई पत्रकारों की गिरफ्तारी को लेकर विवाद हो चुका है और वेबसाइट स्क्रॉल की पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम को तो धमकियों के बाद बस्तर छोड़ना पड़ा था. जगदलपुर में लीगल एड की शालिनी गेरा और ईशा खंडेलवाल को भी बस्तर छोड़ने को कहा गया था, लेकिन बेला भाटिया ने साफ कहा है कि वह बस्तर नहीं रही हैं. मुझे घर खाली करने को कहा गया है. लोग यहां मेरे समर्थन में हैं. मैं गरीब आदिवासियों के मानवाधिकारों के लिए काम कर रही हूं. बस्तर छोड़ने का सवाल ही नहीं है.
कुछ दिन पहले ही बेला भाटिया एक बार फिर से मानवाधिकार आयोग की टीम के साथ बीजापुर के उन गांवों में गई थीं. भाटिया का कहना है कि घेराव की पहली रात भी अंधेर में उनके घर पर आकर कुछ लोगों ने दस्तक दी लेकिन उस वक्त किसी को वह पहचान नहीं पाईं. भाटिया का कहना है सोमवार को दोपहर में करीब 30 लोगों ने आकर उन्हें घर खाली करने को कहा और उनके खिलाफ नक्सली समर्थक होने के नारे लगाए. पुलिस और सरपंच की मौजूदगी में बेला की मकान मालकिन और उनसे 24 घंटे में घर खाली कराने की बात सादे कागज पर लिखा ली गई.
भाटिया का कहना है कि उन्होंने जिलाधिकारी अमित कटारिया से कहा है कि उन्हें अपना सामान लेकर घर छोड़ना है और इसके लिए वह जगह चाहती हैं. “मैंने जिलाधिकारी से रहने के लिए जगह मांगी है. उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं गेस्ट हाउस में रह सकती हूं, लेकिन मुझे रहने के लिए घर चाहिए.
इस बारे में बस्तर के डीएम अमित कटारिया से संपर्क नहीं हो पाया है और एनडीटीवी इंडिया के अपने भेजे सवालों के जवाब का इंतज़ार है. लेकिन पुलिस ने अपने बयान में यह कहा कि बेला भाटिया को पर्याप्त सुरक्षा दी जा रही है.बस्तर सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को डराने धमकाने की बात नई नहीं है. इससे पहले कई पत्रकारों की गिरफ्तारी को लेकर विवाद हो चुका है और वेबसाइट स्क्रॉल की पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम को तो धमकियों के बाद बस्तर छोड़ना पड़ा था. जगदलपुर में लीगल एड की शालिनी गेरा और ईशा खंडेलवाल को भी बस्तर छोड़ने को कहा गया था, लेकिन बेला भाटिया ने साफ कहा है कि वह बस्तर नहीं रही हैं. मुझे घर खाली करने को कहा गया है. लोग यहां मेरे समर्थन में हैं. मैं गरीब आदिवासियों के मानवाधिकारों के लिए काम कर रही हूं. बस्तर छोड़ने का सवाल ही नहीं है.
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