अमिताभ बच्चन चर्चा में है। अपनी फिल्मों के लिए तो हमेशा ही रहते हैं लेकिन पिछले कुछ समय से पनामा पेपर्स ने उनकी रातों की नींद (शायद) उड़ा रखी है। इस बीच ख़बर आई कि मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर इंडिया गेट पर आयोजित कार्यक्रम के संचालन का जिम्मा अमिताभ के हाथों में है। हालांकि बच्चन ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन उनके बेटे अभिषेक ने साफ किया है कि वह कार्यक्रम में सिर्फ बेटी बचाओ अभियान से जुड़े एक हिस्से का संचालन करेंगे। इन सबके बीच कांग्रेस ने आपत्ति उठाई कि केंद्र सरकार अपने किसी कार्यक्रम में ऐसे किसी शख्स को कैसे हिस्सा बना सकती है जिसका नाम पनामा पेपर्स जैसे विवादास्पद मुद्दे से जुड़ा हुआ है। यह पूरा मसला देखने वाले के लिए इसलिए भी और दिलचस्प हो जाता है क्योंकि बच्चन और नेहरू-गांधी परिवार एक वक्त बहुत अच्छे मित्र हुआ करते थे। इन दोनों परिवारों के बीच की घनिष्ठता के बारे में अमिताभ के पिता हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा में पढ़ा जा सकता है।
गौरतलब है कि इलाहाबाद के वक्त से ही हरिवंश राय बच्चन और नेहरू परिवार के बीच अच्छी दोस्ती थी। पंडित नेहरू, बच्चन की साहित्य कृतियों के बहुत बड़े प्रशंसक थे और यह बात तो काफी प्रचलित भी है कि पहली बार सरोजिनी नायडू ने नेहरू और इंदिरा गांधी से बच्चन और तेजी की मुलाकात करवाई थी तो इनकी तारीफ में कहा था 'द पोएट एंड द पोयम (कवि और उनकी कविता)।' बाद में बच्चन करीब दस साल तक विदेश मंत्रालय में अंडर सेक्रेटेरी के रूप में दिल्ली में कार्यरत रहे थे जहां नेहरू उनके 'बॉस' हुआ करते थे।
तेजी बच्चन (बाएं) और इंदिरा गांधी (दाएं) अच्छी दोस्त हुआ करती थीं।
बच्चन ने अपनी आत्मकथा के चौथे हिस्से 'दशद्वार से सोपान तक' में कई बार राजीव-संजय और अमिताभ-अजिताभ का ज़िक्र किया। जैसे कि बच्चन बताते हैं कि किस तरह वह अपने दोनों बच्चों और पत्नी तेजी के साथ नेहरू और इंदिरा जी से मिलने जाया करते थे। पढ़िए उस किताब के कुछ चुने हुए अंश -
'दिल्ली आने के बाद एक दिन पंडितजी ने मुझसे पूछा था कि फैमिली को लाये? अब जब फैमिली आ गई है तो सोचा पंडितजी को इसकी सूचना दे दूं। दफ्तर में मि. मथाई ने मुझे फोन किया कि पंडितजी चाहते हैं कि कल सुबह आप सपरिवार नाश्ते पर आएं। हम लोग ठीक समय पर तीन मूर्ति भवन पहुंच गए। वहां भी बाल-सप्ताह मनाया जा रहा था, यानि इंदिराजी के दोनों बेटे - राजीव और संजय हफ्ता दस दिन में दून स्कूल जाने वाले थे। राजीव अमिताभ से कुछ महीने छोटे और संजय अजिताभ से कुछ महीने बड़े थे। उस दिन नाश्ते पर पंडितजी, इंदिराजी, राजीव-संजय और हम लोगों के अतिरिक्त वहां और कोई नहीं था। हमारे बच्चे वैसे तो शालीन और सुशील थे और थोड़ा बहुत 'टेबल मैनर्स' भी जानते थे लेकिन हम उनको बहुत सिखा-पढ़ाकर लिवा ले गए थे। पंडित जी को नमस्ते करना, इंदु आंटी को भी और खाने की मेज़ पर ऐसे बैठना, ऐसे चीज़ों को उठाना, और यह न करना और वह न करना वगैरह। पंडितजी ने बंटी और संजय को अपने दाहिने तरफ बिठलाया और अमित-राजीव को बाईं तरफ - जैसे उन्होंने भांप लिया कि बंटी के साथ संजय और अमित के साथ राजीव की जोड़ी ठीक रहेगी। नाश्ता खत्म हुआ तो पंडितजी बच्चों को लेकर पीछे के लॉन में चले गए। तेजी और मुझसे भी उस दिन पंडितजी ने कम ही बातें की। इसके बाद अमित-बंटी को राजीव-संजय साथ खेलने के लिए रोक लेते हैं। तेजी इंदुजी के पास रुक जाती है। पंडितजी दफ्तर चले जाते हैं। पीछे पीछे मैं भी जाता हूं।'
अमिताभ अपने माता-पिता के साथ (बाएं ), राजीव-संजय अपनी मां इंदिरा गांधी के साथ (दाएं)
दोनों परिवारों के बच्चों को समर्पित एक किताब
बच्चन ने माइकल ब्रीचर द्वारा नेहरू जी पर लिखी एक राजनीतिक जीवनी (Nehru : A political Biography) का हिंदी अनुवाद किया था जिसको उन्होंने दोनों परिवारों के बच्चों को समर्पित किया था। इस बारे में उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है 'मूल पुस्तक माइकल ब्रीचर ने अपने माता-पिता को समर्पित की थी। अनुवाद मैंने समर्पित किया था - राजीव-संजय, प्रभात, अमित-अजित की नई पीढ़ी को जिसे भावी भारत का निर्माण करना है।' बता दें कि प्रभात, हरिवंश राय बच्चन के छोटे भाई शालिग्राम के बेटे का नाम है।
बच्चन ने राजीव की पत्नी सोनिया गांधी का ज़िक्र किताब में कुछ इस तरह किया है '1968 की शुरुआत एक मंगल-कार्य से हुई। राजीव गांधी की मंगेतर सोनिया इटली से आई तो उसे हमारे घर में ठहराया गया, जहां रहते उसने भारतीय रहन-सहन, जीवन से कुछ परिचय प्राप्त किया। हमारे आत्मीयतापूर्ण व्यवहार से सोनिया इतनी प्रभावित हुई कि उसने तेजी से धर्म की मां और अमित-बंटी से धर्म के भाई का नाता जोड़ लिया। फरवरी में राजीव की शादी हुई। विवाह संबंधी कुछ रस्में 13 विलिंगडन क्रिसेंट (बच्चन का आवास) में ही हुई। बाद में जब तेजी बेटे बंटी (अजिताभ)के साथ पेरिस घूमने गईं तब सोनिया गांधी के मायके वालों ने तेजी की बड़ी आवभगत की और रोम देखने में उनकी मदद की।'
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