
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल.
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संवैधानिक नैतिकता की संकल्पना अपनाने पर चिंता जताई
बोले- एक ही पीठ की दो अलग-अलग बातें खतरनाक
सबरीमला मामले में अपनाई थी संवैधानिक नैतिकता की संकल्पना
दूसरे ‘जे दादाचनजी' स्मारक संवाद में लोगों को संबोधित करते हुए वेणुगोपाल ने सबरीमला मामले में न्यायाधीश इंदू मल्होत्रा के बहुमत से अलग फैसले को ‘सूझ-बूझ' से भरा बताकर इसकी प्रशंसा की. उन्होंने कहा, ‘मैं यह सब इस डर के कारण कह रहा हूं कि संवैधानिक नैतिकता की इस नई संकल्पना का अब कानूनों को जांचने के उद्देश्य से इस्तेमाल किया जा सकता है.' तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 28 सितंबर को 4:1 के बहुमत से केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ किया था.
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वेणुगोपाल ने कहा, ‘सबरीमला मामले में, बहुमत से अलग फैसला देने वाली न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा ने संवैधानिक नैतिकता को माना और कहा कि हर व्यक्ति को अपने धर्म के पालन का अधिकार है और कोई इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता, अदालतें धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं.' सबरीमला मामले में चार न्यायाधीशों के बहुमत के फैसले के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उन्होंने संवैधानिक नैतिकता पर बहुत जोर दिया और कहा कि संवैधानिक नैतिकता ‘समानता और विधि के समक्ष समानता है जिसका मतलब यह है कि आप महिलाओं के एक वर्ग के खिलाफ भेदभाव नहीं कर सकते.'
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साथ ही उन्होंने कहा ‘अगर उच्चतम न्यायालय की एक पीठ दो अलग-अलग बातें करती है, एक अनुमति देती है जबकि दूसरी नहीं तो यह खतरनाक है. कोई नहीं जानता कि यह लड़ाई कहां जाएगी और इसलिए मुझे उम्मीद है कि संवैधानिक नैतिकता समाप्त हो जाएगी.'
(इनपुट- भाषा)
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