बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने निराशा व्यक्त की है. दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना 'स्किन टू स्किन' कॉन्टैक्ट के छूना पोक्सो अधिनियम (POCSO Act) के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा. ओवैसी ने महाराष्ट्र सरकार से इस फैसले के खिलाफ अपील करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो यौन अपराधों से बच्चों की रक्षा के लिए किया जा रहा संघर्ष कमजोर पड़ जाएगा.
हैदराबाद के सांसद असुद्दीन ओवैसी ने रविवार को ट्वीट में कहा, "यह कहने के लिए बाध्य हूं कि यह कतई बेतुका और बेहद निराशाजनक है... यदि महाराष्ट्र राज्य सरकार इसके खिलाफ अपील नहीं करती है, और इन विचारों को खत्म कर देने (मिटा देने) की मांग नहीं करती है, तो इससे यौन अपराधों से बच्चों की रक्षा करने के लिए किया जा रहा संघर्ष कमज़ोर पड़ जाएगा... किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देना चाहिए..."
बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए ‘‘यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क (Skin to Skin Contact) होना'' जरूरी है. महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है.
न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया, जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी.
गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर उसने बच्ची का ब्रेस्ट छुआ और उसके कपड़े उतारने की कोशिश की
उच्च न्यायालय ने कहा, चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है. धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है.
(भाषा के इनपुट के साथ)
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