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This Article is From Mar 14, 2013

एंटी रेप बिल कैबिनेट से पास, सहमति से सेक्स की उम्र 16 वर्ष हुई

नई दिल्ली: महिलाओं के साथ बलात्कार और अन्य अपराधों के लिए कडे दंड का प्रावधान करने वाले विधेयक को गुरुवार को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई। विधेयक में एसिड हमला, पीछा करने, घूरने और छिपकर ताकझांक करने को आपराधिक कृत्य माना गया है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में यहां हुई कैबिनेट की बैठक में विधेयक को मंजूरी दी गई। विधेयक में सहमति से सेक्स करने की आयु 18 से घटाकर 16 साल करने का प्रावधान है। अध्यादेश में यह आयु 18 साल थी।

बलात्कार की पीड़िता की मौत होने या उसके कोमा जैसी स्थिति में जाने पर दोषी को मौत की सज़ा दे सकने का इसमें प्रावधान किया गया है।

आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2013 में बलात्कार को लैंगिकता से जुड़ा विशिष्ट अपराध माना गया है यानी इसे महिला केन्द्रित बनाया गया है और इसके लिए केवल पुरुषों पर ही आरोप लगेगा।

महिलाओं पर अपराध को लेकर पिछले महीने जारी अध्यादेश की जगह यह विधेयक लेगा। अध्यादेश में यौन हमला शब्द का इस्तेमाल किया गया था जो लैंगिकता के लिहाज से अधिक तटस्थ था।

पहली बार घूरने, पीछा करने और छिपकर ताकझांक करने को आपराधिक कृत्य माना गया है। विधेयक के मुताबिक बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा 20 साल कारावास है जिसे बढ़ाकर आजीवन कारावास किया जा सकता है।

सहमति से सेक्स की आयु घटाने के मुद्दे पर मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में कई मंत्रियों को आपत्ति थी। मतभेद के बाद वित्तमंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता में मंत्रीसमूह बना और उसने मतभेद दूर करने के लिए दो बैठकें कीं। कैबिनेट ने मंत्रीसमूह की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया।

मंत्रीसमूह ने आम सहमति से सेक्स की उम्र 18 से घटाकर 16 साल करने की सिफारिश की और महिलाओं को घूरने, पीछा करने और छिपकर उनकी ताकझांक करने को गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखने का सुझाव दिया है।

उल्लेखनीय है कि 16 दिसंबर को दिल्ली में एक चलती बस में एक छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके बाद उसकी मौत से देशभर में गुस्सा फूटा। लोग सड़कों पर उतर आए और सरकार से बलात्कारियों के लिए कड़े कानून की मांग की गई।

इसी के बाद सरकार ने न्यायमूर्ति जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसने महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से कानूनों में किए जाने वाले बदलावों को लेकर अपने सुझाव दिए।

न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने हालांकि बलात्कारियों के लिए अधिकतम सजा आजीवन कारावास तय की थी लेकिन सरकार ने इस संबंध में जो अध्यादेश जारी किया, उसमें मौत की सजा का प्रावधान किया गया।

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