नई दिल्ली:
अन्ना हजारे के सहयोगियों ने सोमवार को न्यायिक मानदंड एवं जवाबदेही विधेयक, 2010 वापस लेने की मांग की और दावा किया कि यह 'गुमराह' करने वाला है और इसमें भ्रष्ट न्यायाधीशों पर आरोप लगाने तथा उनके खिलाफ अभियोग की जांच का प्रावधान नहीं है। विधेयक को एक 'फरेब' बताते हुए अन्ना हजारे के सहयोगियों ने कहा कि इस विधेयक के प्रावधानों को जन लोकपाल विधेयक के दायरे में लाया जाना चाहिए जिसका मसौदा उन्होंने तैयार किया है। अन्ना हजारे के सहयोगी प्रशांत भूषण ने कहा, "न्यायिक मानदंड एवं जवाबदेही विधेयक के मौजूदा स्वरूप में न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों अथवा अभियोग की जांच का प्रावधान नहीं है। इसमें केवल न्यायाधीशों के गलत आचरण की शिकायतों से निपटने का प्रावधान है। यह विधेयक आम लोगों को गुमराह करने वाला है।" विधेयक तथा संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों से असहमति जताते हुए टीम अन्ना के क अन्य सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा, "इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण के लिए हम प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगे।" गौरतलब है कि टीम अन्ना सरकार के इस रुख से असहमत है कि विधेयक न्यायपालिक को अधिक जवाबदेह बनाएगा और न्यायाधीशों को लोकपाल के दायरे में लाने की जरूरत नहीं है। सामाजिक कार्यकतार्आओं ने कहा कि विधेयक और स्थायी समिति की रिपोर्ट कार्यपालिका और विधायिका से न्यायपालिका को स्वतंत्र रखने के संविधान के मूलभूत सिद्धांत को नजरअंदाज कर रही है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि दो संसद सदस्यों तथा महान्यायवादी को राष्ट्रीय न्यायिक निगरानी समिति में शामिल किया जाए। यह समिति किसी न्यायाधीश के खिलाफ आने वाली शिकायतों पर विचार करेगी। भूषण ने कहा, "जब मौजूदा न्यायाधीशों को एक अन्य सहकर्मी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत को देखने के लिए कहा जाएगा तब विवाद उत्पन्न होगा।" टीम अन्ना ने सुझाव दिया कि पांच सदस्यीय न्यायिक आचार आयोग गठित किया जाए जो न्यायपालिका और कार्यपालिका से स्वतंत्र हो। उन्होंने कहा कि इसमें पूर्णकालिक सदस्यों को शामिल किया जाना चाहिए, पूर्व अधिकारियों नहीं, जैसा कि विधेयक में प्रस्तावित है।
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