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This Article is From Mar 27, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : क्‍या आधार अनिवार्य होने से भ्रष्टाचार पर लगेगी लगाम?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 27, 2017 21:42 pm IST
    • Published On मार्च 27, 2017 21:36 pm IST
    • Last Updated On मार्च 27, 2017 21:42 pm IST
1 फरवरी को लोकसभा में वित्त मंत्री ने वित्त विधेयक 2017 पेश किया था जिसपर 21 मार्च और 22 मार्च को चर्चा हुई और इसमें सुझाए गए संशोधनों और प्रावधानों को कानूनी रूप दिया गया. इसके तहत जो संशोधन पास हुए हैं उसे लेकर संसद से बाहर सवाल किया जा रहा है. dailiyo.in एक वेबसाइट है, इस पर मेघनाथ एस नाम के रिसर्चर ने लिखा कि किस तरह मीडिया ने आम जनता से जुड़े इस महत्वपूर्ण विधेयक के बारे में ठीक से रिपोर्टिंग नहीं की. संसद की रिपोर्टिंग करने वालों ने भी ज़रूरी नहीं समझा कि इसके बारे में लोगों तक सूचना पहुंचाई जाए. मेघनाथ ने एक दिलचस्प वाकया सुनाया. 21 मार्च को जब वित्त विधेयक पर चर्चा चल रही थी, चर्चा में शामिल कई दलों के 9 सांसद बोल चुके थे. इस वक्त तक किसी भी टीवी चैनल ने इस चर्चा के किसी भी अंश को दिखाना ज़रूरी नहीं समझा.

मेघनाथ लिखते हैं कि जैसे ही वित्त विधेयक पर ही बोलने के लिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी उठे, चैनलों ने उस भाषण को दिखाना शुरू कर दिया. जिस वक्त बोल रहे थे उसी वक्त लोकसभा टीवी पर नीचे की पट्टी में सूचना चल रही थी कि वित्त विधेयक पर चर्चा चल रही है. मुख्यमंत्री ने अपने भाषण की शुरूआत ही इस बात से की कि अध्यक्ष जी मैं आपका आभारी हूं, आपने मुझे वित्त विधेयक पर दो शब्द कहने का अवसर प्रदान किया है. लेकिन उनके भाषण को आप भी लोकसभा की वेबसाइट पर जाकर देखिये. तभी आप जान पायेंगे कि उनके भाषण का कौन सा हिस्सा वित्त विधेयक के प्रावधानों से संबंधित है. मुझे तो एक भी हिस्सा नहीं लगा फिर भी आपको खुद से भी देखना चाहिए. जिस विषय पर योगी जी को बोलना था, उस विषय पर उन्होंने क्या बोला इसकी कोई रिपोर्टिंग नहीं हुई. उनसे पहले नौ सांसद और योगी जी के बाद छह सांसदों ने बोला इस पर भी नहीं हुई. उस रात आप याद करें टीवी पर योगी जी ही छाये हुए थे. मेघनाथ के लेख का मसौदा यही है कि मीडिया ने आखिर कैसे इतने बड़े मसले को योगी जी के भाषण से कम महत्वपूर्ण समझा.

इस वित्त विधेयक में कई संशोधन आख़िरी वक्त में पेश किये गए जिनका संबंध राजनीतिक चंदों और उनकी पारदर्शिता से है, तमाम विभागों के विवादों के निपटारे के लिए बने ट्राइब्यूनल और उनकी नियुक्ति प्रक्रिया से है. इसी के तहत नगदी लेन देन को तीन लाख से घटाकर दो लाख कर दिया गया है. इन सब पर अलग से चर्चा होनी चाहिए मगर हम आज के विषय को आधार से संबंधित ही रखना चाहेंगे.

एक जुलाई 2017 से आयकर रिटर्न भरने और पैन नंबर के लिए आधार नंबर देना अनिवार्य हो जाएगा. बिना आधार के अब आयकर रिटर्न नहीं भरा जा सकेगा. जिस किसी के पास पैन कार्ड है उसे एक जुलाई तक आधार नंबर देना होगा. अगर ऐसा नहीं करेंगे तो पैन कार्ड अवैध हो जाएगा. माना जाएगा कि आपके पास पैन कार्ड या पैन नंबर नहीं है.

आयकर फार्म और पैन नंबर में आधार को अनिवार्य किये जाने से कई सवाल फिर से उठे हैं. 2009 से लेकर 2017 के बीच आधार के इस्तमाल को लेकर, इसके लीक होने से लेकर अनिवार्य किये जाने के ख़तरे को लेकर कई बहसें सुनी, पचासों लेख पढ़े. दूसरी तरफ हमने समाज में देखा कि आधार को लेकर ग़ज़ब का उत्साह है. ज़्यादातर राजनीतिक दल के कार्यकर्ता आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्र की तरह बनवाने में जुटे रहते हैं. अक्सर कहा जाता है कि इससे हमारी आपकी प्राइवेसी को ख़तरा है. याद कीजिए, जब आप आधार कार्ड बनाने गए तब क्या किसी ने आपको बताया था कि इसे कैसे संभाल कर रखना है, किसे देना है किसे नहीं देना है, अगर यह लीक हो गया तो क्या होगा. क्या आपने पूछा था. मैं गलत हो सकता हूं मगर फिर भी आपसे कुछ सवाल हैं.

क्या आप प्राइवेसी यानी निजता का मतलब समझते हैं? क्या आप समझते हैं कि इसकी गोपनीयता बनी रहनी चाहिए? क्या आप समझते हैं कि आपकी हर बात सरकार जाने? क्या आप समझते हैं कि आपका आधार नंबर प्राइवेट कंपनियों के पास भी हो? क्या आप जानते हैं कि आधार नंबर लीक हो गया तो क्या होगा?

लोकतंत्र को ख़तरा तो तब भी है जब आधार नहीं है, आधार होने के बाद इसकी सूचना किसी राजनीतिक दल, कंपनी के पास जाने के बाद आपको किस तरह का ख़तरा हो सकता है क्या आप इस सवाल को महत्व देते हैं? मुझे लगता है आधार को लेकर आपमें से ज़्यादातर बिल्कुल परेशान नहीं हैं. तभी तो 112 करोड़ भारतीयों ने पूरे उत्साह के साथ आधार कार्ड बनवाया. ऐसा नहीं कि इसकी आलोचना या खतरे को लेकर अखबारों में लेख नहीं छपे. टीवी पर कम ही सही मगर थोड़ी बहुत चर्चा तो हुई है. आधार को अनिवार्य बनाये जाने के आलोचकों की एक बात के लिए तारीफ करना चाहता हूं. ये तब भी आलोचना कर रहे थे जब आधार का आगमन हो रहा था और अब भी कर रहे हैं जब सौ करोड़ से अधिक भारतीयों ने आधार नंबर ले लिये हैं. दूसरी तरफ सरकार हमेशा आधार को लेकर आश्वस्त नज़र आती है. अगर आलोचकों की बात में दम है तो क्यों नहीं तमाम राजनीतिक दल इसके खिलाफ बोलते हैं. संसद में ही क्यों बोलते हैं. संसद से बाहर आपके बीच आकर क्यों नहीं बोलते हैं. एक सवाल खुद से और आम लोगों से है. क्या हमें पहचान के नाम पर कोई भी दस्तावेज़ मनोवैज्ञानिक सुरक्षा देता है और अपनी इस सुरक्षा के लिए हम वो सुरक्षा भी गंवाने के लिए तैयार है जिसका अहसास हमें नहीं है, किसी और को है. पैन कार्ड, राशन कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस, जाति प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र ,मतदाता पहचान पत्र आदि इत्यादि पहचानों के अनेक पत्रों वाले इस देश के नागरिकों को आधार नंबर में ऐसा क्या दिखा.

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि आधार को अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए. मगर सरकार इसे कफ सिरप के रूप में तमाम योजनाओं में शामिल करती जा रही है. पेंशन, स्कॉलरशिप, ईपीएफओ, राशन कार्ड, ड्राईविंग लाइसेंस, मोबाइल नंबर, मिड डे मिल, पैन नंबर, आयकर रिटर्न, ज़मीन ख़रीद बिक्री. क्या वाकई जहां जहां आधार पहुंचा है वहां वहां से भ्रष्टाचार खत्म हुआ है. यूपीए जब इसकी तारीफ कर रही थी तब बीजेपी इसे जनता से किया जा रहा धोखा बता रही थी. अब बीजेपी इसे कई चीज़ों में अनिवार्य कर रही है तो सदन के भीतर कांग्रेस आधार के ख़तरे उठा रही है. ड्राइविंग लाइसेंस, मोबाइल नंबर, पैन कार्ड, आयकर रिटर्न सबमें आधार अनिवार्य है.

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