अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के 100 साल पूरे होने पर हो रहे समारोह को कल पीएम मोदी (PM Modi) ऑनलाइन संबोधित करेंगे. सन 1964 में लाल बहादुर शास्त्री के शामिल होने के 56 साल बाद कोई प्रधानमंत्री AMU के समारोह में शामिल होगा. सौ साल के जश्न के लिए जबरदस्त तैयारियां की गई हैं, लेकिन कुछ लोग सीएए आंदोलन में एएमयू छात्रों पर पुलिस कार्रवाई और एएमयू के माइनॉरिटी स्टेटस पर बीजेपी की सोच की वजह से इससे बहुत खुश नहीं हैं.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी रोशनी में नहाई हुई है. शताब्दी के जश्न की ज़बरदस्त तैयारियां हैं. सौ साल पहले 1920 में इस यूनिवर्सिटी का उद्घाटन हुआ था. यूनिवर्सिटी के आसपास का इलाका भी सजाया जा रहा है. इस मौक़े पर पीएम मोदी ऑनलाइन चीफ गेस्ट होंगे. एएमयू के जरिए मुसलमानों से संवाद का यह एक मौका होगा, जिस पर सबकी नज़र है.
यूनिवर्सिटी के जनसंपर्क विभाग के इंचार्ज शफी किदवई ने बताया कि ''वाइस चांसलर साहब ने प्राइम मिनिस्टर मोदी जी से संपर्क किया. वे 22 तारीख को हमारे ऑनलाइन समारोह को संबोधित करेंगे. और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने एक कॉमेमोरेटिव स्टंप, एक यादगारी टिकट भी जारी किया है जिसका प्रधानमंत्री जी विमोचन करेंगे.''
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र रही दो शख्सियतों खान अब्दुल गफ्फार खान और मौलाना आजाद को भारत रत्न मिला है. यूनिवर्सिटी के तमाम छात्र दुनिया के 108 मुल्कों में तमाम बड़े ओहदों पर काम कर रहे हैं. यह उनके लिए खुशी का मौक़ा है.
धर्मशास्त्र के प्रोफेसर रेहान अख़्तर कासमी ने कहा कि ''वेबिनर चल रही हैं, कॉन्फ्रेंस चल रही हैं, बहुत सी चीज़ें चल रही हैं. बिल्डिंग्स बन रही हैं. चूंकि ऑनलाइन सब चल रहा है, वर्चुअल चल रहा है तो वो 22 दिसेंबर को हमारा सेंटेनरी सेलिब्रेशन है. उसके मुख्य अतिथि देश के प्रधानमंत्री हैं. यह एक गर्व की बात है, खुशी की बात है.''
At 11 AM tomorrow, 22nd December, will be speaking at the centenary celebrations of the Aligarh Muslim University. @AMUofficialPRO https://t.co/hPkXBQuXGB
— Narendra Modi (@narendramodi) December 21, 2020
लेकिन पिछले दिनों सीएए के खिलाफ आंदोलन के दौरान एएमयू छात्रों पर पुलिस कार्रवाई से एएमयू से जुड़े लोग काफ़ी नाराज़ रहे हैं. एएमयू के माइनॉरिटी स्टेटस पर बीजेपी के रुख़ से भी वे खुश नहीं हैं. साथ ही संघ के इतिहास पुनर्लेखन अभियान को भी वे देश की बहु सांस्कृतिक परंपराओं के खिलाफ मानते हैं. इसलिए वे इससे बहुत खुश नहीं हैं.
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इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब कहते हैं कि ''ज़ाहिर है कि स्कॉलर्स आते हैं, यूनिवर्सिटी है. उसमें प्राइम मिनिस्टर आए या ना आएं उससे क्या फ़र्क़ दुनिया को पड़ता है. और खासकर ऐसे प्राइम मिनिस्टर आएं जो हिन्दुस्तान के पुराने कल्चर को मिसरीड कर रहे हैं. यह भी तो यूनिवर्सिटी के लिए इज़्ज़त की बात नहीं मालूम होती हमें.''
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