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This Article is From Apr 06, 2017

शुंगलू रिपोर्ट पर बवाल: अजय माकन ने अरविंद केजरीवाल से मांगा इस्‍तीफा, कांग्रेस मनाएगी काला दिवस

शुंगलू रिपोर्ट पर बवाल: अजय माकन ने अरविंद केजरीवाल से मांगा इस्‍तीफा, कांग्रेस मनाएगी काला दिवस
अजय माकन ने अरविंद केजरीवाल पर लगाए आरोप.(फाइल फोटो)
नई दिल्ली: दिल्‍ली कांग्रेस के प्रमुख अजय माकन ने शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद आज एक प्रेस कांफ्रेंस में निशाना साधा. उन्‍होंने अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए कहा कि समिति के खुलासों से दिल्‍ली सरकार की अनियमितताओं के मामले उजागर हो गए हैं. केजरीवाल को अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहिए. उन्‍होंने मनमाने तरीके से लोगों की नियुक्तियां कीं. बिना एलजी की मंजूरी के मोटी तनख्‍वाह पर नियुक्तियां की गईं. एक शख्‍स के बारे में कहा गया कि उनको महज एक रुपये मासिक वेतन दिया जाएगा लेकिन बाद में उनको 80 हजार रुपये बिना एलजी की मंजूरी के दिया जाने लगा.

अजय माकन ने कहा कि जब अरुण जेटली डीडीसीए के प्रमुख थे, उस दौर में वहां व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार की जांच की मांग करते हैं लेकिन जिस तरह डीडीसीए में भाई-भतीजावाद हावी रहा है, शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद स्‍पष्‍ट हो गया है कि दिल्‍ली सरकार की नियुक्तियों में भी भाई-भतीजावाद हावी रहा है. अरविंद केजरीवाल के करीबियों के परिजनों को मोटी तनख्‍वाहों पर नौकरियां दी गई हैं. अजय माकन ने शुंगलू कमेटी के रिपोर्ट की पृष्‍ठभूमि में अरविंद केजरीवाल से नैतिकता के आधार पर इस्‍तीफा देने की मांग की.

अजय माकन ने यह भी कहा कि रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि बिना इजाजत आप सरकार के मंत्री विदेश दौरे पर गए. जब दिल्‍ली में चिकनगुनिया जैसी बीमारियां फैली थीं तब आप सरकार के मंत्री विदेश में घूम रहे थे. उन्‍होंने कहा कि इन सबके विरोध में कल कांग्रेस दिल्‍ली के सभी 272 म्‍युनिसिपल वार्डों में काला दिवस मनाएगी.

उल्‍लेखनीय है कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा प्रशासनिक फैसलों में संविधान और प्रक्रिया संबंधी नियमों के उल्लंघन की बात शुंगलू समिति ने अपनी रिपोर्ट में उजागर की है.

सितंबर 2016 में तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा केजरीवाल सरकार के फैसलों की समीक्षा के लिए गठित शुंगलू समिति ने सरकार के कुल 440 फैसलों से जुड़ी फाइलों को खंगाला. इनमें से 36 मामलों में फैसले लंबित होने के कारण इनकी फाइलें सरकार को लौटा दी गई थीं.

पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक वीके शुंगलू की अध्यक्षता वाली समिति ने केजरीवाल सरकार के फैसलों से जुड़ी 404 फाइलों की जांच कर इनमें संवैधानिक प्रावधानों के अलावा प्रशासनिक प्रक्रिया संबंधी नियमों की अनदेखी किये जाने का खुलासा किया है. इसके लिए समिति ने सरकार के मुख्य सचिव, विधि एवं वित्त सचिव सहित अन्य अहम विभागीय सचिवों को तलब कर सरकार के इन फैसलों में संबद्ध अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारियों ने समिति को बताया कि उन्होंने इस बाबत सरकार को अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण के बारे में समय-समय पर आगाह किया था. इसके लिए कानून के हवाले से दिल्ली में उपराज्यपाल के सक्षम प्राधिकारी होने की भी बात सरकार को बताई. इतना ही नहीं इसके गंभीर कानूनी परिणामों के प्रति भी सरकार को सहजभाव से आगाह किया.

रिपोर्ट में सभी फाइलों के अवलोकन के आधार पर कहा गया है कि सरकार ने अधिकारियों के परामर्श को दरकिनार कर संवैधानिक प्रावधानों, सामान्य प्रशासन से जुड़े कानून और प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन किया है. इसमें उपराज्यपाल से पूर्वानुमति लेने या फैसलों को लागू करने के बाद उपराज्यपाल की अनुमति लेने और सरकार द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसले करने जैसी अनियमितताएं शामिल हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, इतना ही नहीं दूसरी बार सत्ता में आने के बाद आप सरकार ने संविधान और अन्य कानूनों में वर्णित दिल्ली सरकार की विधायी शक्तियों को लेकर भी बिल्कुल अलग नजरिया अपनाया था. इसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के 25 फरवरी 2015 के उस बयान का भी हवाला दिया गया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कानून व्यवस्था, पुलिस और जमीन से जुड़े मामलों की फाइलें ही उपराज्यपाल की अनुमति के लिए वाया मुख्यमंत्री कार्यालय भेजी जाएंगी.

शुंगलू समिति ने अपनी रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार द्वारा शासकीय अधिकारों के दुरुपयोग के मामलों में अधिकारियों के तबादले, तैनाती और अपने करीबियों की तमाम पदों पर नियुक्ति करने का जिक्र किया है. इसमें कहा गया है कि तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली सरकार के क्षेत्राधिकार को लेकर महाधिवक्ता से परामर्श कर 15 अप्रैल 2015 को मुख्यमंत्री केजरीवाल को कानून के पालन की नसीहत दी थी. इसके उलट 29 अप्रैल को मुख्यमंत्री के सचिव की ओर से सभी विभागों को निर्देश जारी कर कहा गया कि जमीन, कानून-व्यवस्था और पुलिस से जुड़े मामलों को छोड़कर विधानसभा के विधायी क्षेत्राधिकार में आने वाले सभी मामलों पर सरकार बेबाकी से फैसले कर सकेगी, जबकि जमीन, कानून व्यवस्था और पुलिस से जुड़े मामलों में उपराज्यपाल की पूर्वानुमति से पहले संबद्ध फाइल को मुख्यमंत्री के मार्फत ही उपराज्यपाल के पास भेजा जाए.







 

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