'ओवैसी का आजमगढ़ एक्सपेरीमेंट', सपा के माई समीकरण के मुकाबले कितना सफल होगा 'एमडी' का फार्मूला

UP Polls 2022 : आजमगढ़ वो इलाका है, जहां समाजवादी पार्टी का एमवाई (मुस्लिम-दलित) समीकरण बेहद कामयाब हुआ था. वहीं ओवैसी ने एमडी समीकरण पर जोर लगाया है, जो मुस्लिमों और दलितों के वोट बैंक को साधने का है.

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Asaduddin Owaisi ने यूपी इलेक्शन में लगाया मुस्लिम-दलित समीकरण पर जोर

नई दिल्ली:

ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM Asaduddin Owaisi) बिहार की तरह यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में भी पूरा जोर लगाया है. ऐसे में जब उत्तर प्रदेश चुनाव में आखिरी चरण का मतदान नजदीक है तो सियासी विशेषज्ञों के बीच यह सवाल उठने लगा है कि ओवैसी का आजमगढ़ एक्सपेरीमेंट कितना सफल होगा. आजमगढ़ वो इलाका है, जहां समाजवादी पार्टी का एमवाई (मुस्लिम-दलित) समीकरण बेहद कामयाब हुआ था. वहीं ओवैसी ने एमडी समीकरण पर जोर लगाया है, जो मुस्लिमों और दलितों (Mulim Dalit) के वोट बैंक को साधने का है. ओवैसी अपनी चुनावी रैलियों में लगातार बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जिक्र करते हैं. ऐसी ही एक रैली में ओवैसी ने कहा, वो दलितों के साथ हर वक्त खड़े रहेंगे. अगर मुबारकपुर का दलित कहता है कि ओवैसी आ जाओ, अंबेडकर के संविधान को बचाना है, उनके मान-सम्मान को बचाना है, तो खुदा की कसम ओवैसी उस दलित परिवार के साथ खड़े होकर उसकी लड़ाई लड़ेगा.  इसीलिए जब 2019 में हैदराबाद की आवाम ने चौथी बार हमें सांसद बनाया तो हम जब शपथ लेने गए तो बीजेपी के 300 सांसदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया.

हमने संविधान और अल्लाह के नाम पर शपथ ली और उसके बाद हमने नारा लगाया-जय भीम. ये सुनकर बीजेपी के सांसद सन्नाटे में आ गए. उनकी बोलती बंद हो गई. बाद में बीजेपी के लोगों ने उनसे पूछा कि ये सब तुम्हारे दिमाग में कैसे आता है, तो मैंने कहा- हमारे दिमाग में बाबा अंबेडकर नहीं हैं, हमारे दिल में बाबा अंबेडकर हैं. 

एआईएमआईएम यूपी विधानसभा चुनाव में करीब 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. मुबारकपुर में मुस्लिम-दलित समीकरण के बदौलत ओवैसी बसपा के गढ़ में सेंध लगाने की पूरी जुगत की है. पूर्वांचल में अपनी चुनावी रैलियों के दौरान ओवैसी बीजेपी के साथ सपा-बसपा पर भी तीखा हमला बोल रहे हैं. ओवैसी की रैलियों में भीड़ भी उमड़ रही है, लेकिन यह कितने वोटों और सीटों में बदलेगी, ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा. ऐसे में चुनावी नतीजों की तारीख नजदीक आने के साथ यह सवाल कौंधने लगा है कि क्या जिस तरह बिहार मे ओवैसी की पार्टी की कामयाबी ने राजद-कांग्रेस को सत्ता की दहलीज से दूर कर दिया था, क्या ओवैसी की पार्टी वही नुकसान यूपी में तो विपक्षी दलों को नहीं पहुंचाएगी?

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