अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद भारत में पढ़ने वाले 2000 हजार अफगानिस्तान के छात्रों का अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा है. इस साल भारत सरकार ने 1000 फेलोशिप अफगानिस्तान के छात्रों को देने का ऐलान किया था. अफगानिस्तान में तालीबान के क़बिज होने के बाद भारत में पढ़ने वाले छात्र भी सहमें हैं. हमारी मुलाकात काबुल के रहने वाले एहसान और मजारे श़रीफ की रहने वाली दीवा से हुई. एहसान दिल्ली विश्वविद्यालय में BA अंतिम वर्ष के छात्र हैं. वो दिल्ली में हैं लेकिन परिवार काबुल में होने के चलते वो परेशान हैं. उनका इरादा भारत से पढ़ने के बाद अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक में नौकरी करने का था लेकिन अब वो अपने भविष्य के लिए चिंतित हैं.
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दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एहसान ने कहा कि सबसे गंभीर प्रभाव हमारे नैतिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है दूसरी दिक्कत ये है कि हम अगले कदम के बारे में कुछ नहीं जानते हैं अनिश्चितता का माहौल है. अभी कोई सिस्टम नहीं है कि हम छात्रों का प्रोग्राम कैसे आगे बढ़ेगा. मैं उम्मीद कर रहा था कि यहां से जाने के बाद अफगानिस्तान सरकार में अच्छी नौकरी करुंगा लेकिन दुर्भाग्य से मेरा सब कुछ चला गया.
दीवा साफ़ी के पिता मजारे शरीफ में फंसे हैं. वो JNU में इंटरनेशनल पॉलिटिक्स की छात्रा हैं. अफगानिस्तान की राजनायिक बनकर देश की सेवा करना चाहती हैं. लेकिन अब तालीबानी शासन में महिलाओं के लिए और परेशानी बढ़ने की आशंका उनको सता रही है. दीवा साफ़ी के मुताबिक, "अफगानिस्तान का माहौल बहुत डरावना है खासतौर पर महिलाओं के लिए. पहले ही मैं इस स्थिति में बहुत परेशान महसूस कर रही थी. वहां रहने वाली मैं ऐसे बहुत सारे अपने दोस्तों को जानती हूं जिनके लिए पहले ही बहुत दिक्कत थी. पहले के राज में महिलाओं को कोई अधिकार नहीं थे अब आने वाले दिनों में शायद ही कभी महिलाओं को कोई अधिकार मिले."
दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले साल अफगानिस्तान के 80 छात्रों का दाखिला हुआ था इस साल 200 छात्रों का दाखिला होने की उम्मीद थी. अब दिल्ली विश्वविद्यालय के विदेशी छात्र संकाय के डीन अमरजीत लोचन लगातार अफगानिस्तान के छात्रों से मिल रहे हैं. अमरजीत लोचन के मुताबिक, "जिस तेजी से हालात बदले हैं हमें उम्मीद नहीं थी. 2020 के दो छात्र थे उनको लाने की मुहिम DU मे छेड़ी थी तो ज्यादातर बच्चे आ गए थे. इंटरनेच की परेशानी और स्कालरशिप भारत में रहने पर मिलती है इसीसिए हमने बुला लिया था जो अच्छा निर्णय रहा." बहुत सारे छात्रों के परिवार अफगानिस्तान में फंसे हैं कईयों के परिवार के कई लोग मारे गए हैं. लेकिन पारिवारिक समस्याओं से अलग कई सारे स्टूडेंट के वीजे की मियाद और पैसे भी खत्म हो रहे हैं.
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अफगानिस्तान में सत्तर फीसदी युवा जनसंख्या है जिनके तमाम सपने थे लेकिन जिस तेजी से हालात बदले हैं ऐसे में मानवाअधिकार से लेकर महिलाओं के अधिकार तक पर तमाम सवालिया निशान खड़े हो गए हैं.
"हम वापस नहीं जाना चाहते", दिल्ली में पढ़ रहे अफगानिस्तान के छात्र बोले
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