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अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में जारी पाबंदियों पर सुप्रीम कोर्ट की 7 खरी-खरी बातें

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र सरकार ने कई तरह की पाबंदियां लगा दी थीं. लेकिन पांच महीने के बाद भी राज्य में इंटरनेट सेवा बहाल नहीं की जा सकी.

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सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में जारी पांबदियों को समीक्षा करने के लिए कहा है.
नई दिल्ली:

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र सरकार ने कई तरह की पाबंदियां लगा दी थीं. लेकिन पांच महीने के बाद भी राज्य में इंटरनेट सेवा बहाल नहीं की जा सकी. हालांकि केंद्र सरकार का दावा है कि धारा-144 कई जगहों से हटा दिया गया है और सिर्फ कुछ ही जगहों पर यह प्रतिबंध जारी है. इन्हीं पाबंदियों के खिलाफ दी गई याचिकाओं पर आज जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई का संयुक्त बेंच ने सुनवाई की है. आपको बता दें कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर उसे दो केंद शासित राज्यों में बांट दिया गया था जम्मू-कश्मीर और लद्दाख तब से घाटी में इंटरनेट बंद है, सिर्फ़ ब्रॉडबैंड से ही संपर्क कायम है. सरकार ने लैंडलाइन फ़ोन और पोस्टपेड मोबाइल सेवा भी हाल में ही शुरू की है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहीं 7 बड़ी बातें

  1. सरकार जम्मू-कश्मीर में जारी सभी पाबंदियों को 7 दिनों के भीतर समीक्षा करे. 
  2. जहां इंटरनेट का दुरुपयोग कम है वहां सरकारी और स्थानीय निकाय में इंटरनेट की सेवा बहाल हो. व्यापार पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर है. 
  3. जम्मू कश्मीर में इंटरनेट प्रतिबंध की तत्काल प्रभाव से समीक्षा की जाए. इंटरनेट अभिव्यक्ति और व्यवसाय करने की आजादी का भी जरिया है. संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में इंटरनेट का अधिकार शामिल है.  
  4. इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता.  इंटरनेट पर प्रतिबंध की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए. 
  5. इंटरनेट और बुनियादी स्वतंत्रता का निलंबन शक्ति का एक मनमानी एक्सरसाइज नहीं हो सकती.
  6.  मजिस्ट्रेट को धारा 144 के तहत पाबंदियों के आदेश देते समय नागरिकों की स्वतंत्रता और सुरक्षा को खतरे की अनुपातिका को देखकर विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए. बार- बार एक ही तरीके के आदेश जारी करना उल्लंघन है.धारा 144 सीआरपीसी के तहत निषेधाज्ञा आदेश असंतोष जताने पर नहीं लगाया जा सकता. 
  7. जम्मू कश्मीर सरकार धारा 144 लगाने के फैसले को सार्वजनिक करे और चाहे तो प्रभावित व्यक्ति उसे चुनौती दे सकता है. 

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