मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के एक पंचायत के लोगों ने सरपंच या ग्राम प्रधान ( sarpanch or village head) को चुनने के लिए अनूठा तरीका अपनाया है. यहां पर सरपंच पद के उम्मीदवारों के चयन के लिए नीलामी में बोली लगी है. इसके पीछे ग्रामीणों का तर्क है कि उम्मीदवार वोट जीतने के लिए पैसे का इस्तेमाल गलत नहीं करेंगे. बोली से मिले पैसों से गांव का विकास होगा. साथ ही उम्मीदवारों के बीच चुनाव के लिए कोई प्रतिस्पर्धा और तनाव नहीं उत्पन्न होगा. मामला मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के भटौली ग्राम पंचायत का है. सरपंच पद के लिए चार दावेदार थे.
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उम्मीदवारों के चयन के लिए बोली 21 लाख रूपये के साथ शुरू हुई . इसके बाद यह बोली 43 तक पहुंची. बाद में 44 लाख रुपये की बोली लगाने के बाद एक उम्मीदवार को सरपंच मान लिया गया. उम्मीदवार का नाम सौभाग सिंह यादव है . हालांकि, स्थानीय अधिकारियों ने कहा है कि पद के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने सहित उचित चुनाव प्रक्रिया का पालन करना होगा. वहीं अब इस पंचायत में कोई दूसरा व्यक्ति सरपंच पद के लिए चुनाव नहीं लड़ेगा. सौभाग सिंह यादव को एक मंदिर में हुई बोली में सर्वसम्मति से "निर्वाचित" किया गया. ग्रामीणों ने उनका माला पहनाकर स्वागत किया और अपना नया सरपंच घोषित किया. यह भी तय किया होने वाले पंचायत चुनाव में उनके खिलाफ कोई भी नामांकन दाखिल नहीं करेगा.
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वहीं इस संबंध में बताया जा रहा है कि अगर बोली के तहत उम्मीदवार 44 लाख रुपये जमा करने में विफल रहता है, तो उसके निकटतम प्रतिद्वंद्वी पर पद के लिए विचार होगा, जो कि ग्राम समिति का हिस्सा थे. हालांकि, स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि इस प्रक्रिया को मान्यता नहीं दी जाएगी. एक अधिकारी ने कहा, "जो भी चुनाव लड़ेगा, उसे फॉर्म भरना होगा. अगर सरपंच के पद पर फॉर्म आता है और वह वैध पाया जाता है, तो वही व्यक्ति सरपंच चुना जाएगा. हालांकि हो सकता है कि इस प्रक्रिया के तहत बोली लगाने वाला शख्स भी सरपंच बन सकता है.
बता दें कि मध्य प्रदेश पंचायत चुनाव के लिए जनवरी से फरवरी के बीच तीन चरणों में मतदान होगा. कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि शिवराज सिंह चौहान सरकार ने राज्य में आगामी पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण रोटेशन मानदंडों का उल्लंघन किया है.
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