सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2002 के गुजरात दंगों के दौरान औध नरसंहार मामले में 23 लोगों की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 14 लोगों को अंतरिम जमानत दे दी. साथ ही शर्त लगाई कि वो खुद को 'आध्यात्मिक और सामाजिक सेवा' में हफ्ते में 6 घंटे देंगे. चीफ जस्टिस शरद ए बोबड़े की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है कि वो सेमिनार में हिस्सा लेकर खुद को मानसिक रूप से ठीक कर सकते हैं. जमानत तब तक जारी रहेगी जब तक शीर्ष अदालत सजा के खिलाफ उनकी अपील का फैसला नहीं कर देती. दोषियों के इस दौरान गुजरात में जाने पर भी रोक रहेगी. बेंच ने पाया कि इन लोगों को एक या दो चश्मदीदों की गवाही के आधार पर दोषी ठहराया गया था. अदालत ने दोषियों को छह और आठ के दो समूहों में अलग कर दिया. भोपाल लीगल सर्विस अथॉरिटी दोषियों की जीविका के लिए काम तलाशेंगे. अथॉरिटी हर तीन महीने में रिपोर्ट सौंपेगी. उनमें से छह को एक चश्मदीद की गवाही के आधार पर दोषी ठहराया गया था. आठ को दो चश्मदीदों की गवाही पर. 6 दोषियों का ग्रुप इंदौर में रहेगा और आठ पुरुषों का समूह मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहेगा. बेंच ने उनकी उस दलील को मान लिया कि इन लोगों को पहले पैरोल, फरलो, आदि पर रिहा किया गया था
और इस दौरान कोई अपराध नहीं किया और वो हिरासत में लौट आए हैं.
दरअसल गुजरात उच्च न्यायालय ने औध हत्याकांड मामले में कुल 19 व्यक्तियों की सजा को बरकरार रखा था. मध्य गुजरात के आणंद जिले में एक अल्पसंख्यक समुदाय के 23 लोगों को दंगाइयों ने मार डाला. मई 2018 में गुजरात हाई कोर्ट ने गुजरात दंगे के 14 दोषियों और 4 अन्य लोगों की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था. ये सभी लोग गुजरात के औध जनसंहार काण्ड में दोषी पाए गए थे. इन लोगों ने गुजरात के आणंद जिले में साल 2002 में भड़के सांप्रदायिक दंगों में 23 लोगों को जिन्दा जला दिया था.
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विशेष ट्रायल कोर्ट ने 2012 में इस मामले में कुल 23 लोगों को दोषी पाया था. इनमें से 18 लोगों को उम्रकैद की सजा दी गई जबकि पांच अन्य को सात वर्ष के कारावास का दंड दिया गया. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस अकील कुरैशी कर रहे थे, सभी 23 दोषियों की अपील को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दंगे के मामलों की जांच के लिए नियुक्त की गई विशेष जांच टीम ने सजा कम करने की दोषियों की अपील के खिलाफ अपील की थी. टीम ने मांग की थी कि वह पांच आरोपी जिन्हें सात साल का कारावास दिया गया है, उनकी सजा बढ़ा दी जाए. वहीं जांच टीम ने हत्या के दोषी पाए गए सभी आरोपियों के लिए फांसी की सजा की मांग की थी. इस मामले में कुल 47 लोगों को आरोपी बनाया गया था. ये घटना एक मार्च 2002 को हुई थी. इसमें कुल 23 मुस्लिमों को जिंदा जला दिया गया था. ये घटना उस हादसे के दो दिन बाद हुई थी, जिसमें गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती ट्रेन की बोगी में सवार 58 कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया था.
शायद ये पहली बार हुआ है जब सुप्रीम कोर्ट ने समाज सेवा और आध्यातमिक सेवा के लिए जमानत दी है. गुजरात सरकार ने मेरिट पर जमानत का विरोध किया लेकिन कहा कि जेल में उनका व्यवहार अच्छा था.
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