प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका से लौटते हुए इजिप्ट के दौरे पर भी जा रहे हैं. वे वहां राजधानी कैरो में मौजूद 1000 साल पुराने मशहूर अल हकीम मस्जिद में भी जाएंगे. इस मस्जिद का भारतीय मुस्लिमों के एक समुदाय से खास कनेक्शन है. ये वो समुदाय है जिसका प्रधानमंत्री मोदी के साथ पुराने और गर्मजोशी भरे रिश्ते रहे हैं. आप समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं दाऊदी बोहरा समुदाय की.
इजिप्ट की सरकार के मुताबिक 11 वीं सदी के इस मस्जिद की मरम्मत का काम बीते छह सालों से चल रहा था. जिसमें दाऊदी बोहरा समुदाय का बड़ा रोल रहा है. सरकार का कहना है कि इस मरम्मत का उद्देश्य इजिप्ट में मौजूद इस्लामी जगहों पर टूरिज्म को बढ़ावा देना है. इस समुदाय को खुद PM मोदी देशभक्त और शांति के समर्थक बता चुके हैं.
कौन है दाऊदी बोहरा समुदाय ?
दाऊदी बोहरा समुदाय इस्लाम के फातिमी इस्लामी तैय्यबी विचारधारा को मानते हैं. उनकी समृद्ध विरासत इजिप्ट में ही पैदा हुई फिर यमन होते हुए वे 11 वीं सदी में भारत आकर बस गए. साल 1539 के बाद दाऊदी बोहरा समुदाय की भारत में संख्या बढ़ने लगी. जिसके बाद उन्होंने अपनी संप्रदाय की गद्दी को यमन से गुजरात के पाटन जिले में मौजूद सिद्धपुर में स्थानांतरित कर दिया. आज भी इस इलाके में उनकी पुश्तैनी हवेलियां मौजूद हैं. इस समुदाय के पुरुष सफेद कपड़े और सुनहरी टोपी पहनते हैं, जबकि महिलाएं रंगीन बुर्का पहनने के लिए जानी जाती हैं.
दाऊदी बोहरा समुदाय में शिया और सुन्नी दोनों मतों के लोग हैं. शिया समुदाय ज्यादातर कारोबार करता है तो वहीं सुन्नी बोहरा समुदाय प्रमुख तौर पर खेती करता है. पूरी दुनिया में दाऊदी बोहरा समुदाय की संख्या 10 लाख के करीब है जिसमें आधे यानी 5 लाख तो भारत में ही रह रहे हैं. बोहरा शब्द गुजराती भाषा वोहरू से आया है जिसका अर्थ है व्यापार करना. ये समुदाय भारत में गुजरात के अलावा महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी मौजूद है लेकिन उनकी सबसे बड़ी संख्या गुजरात के सूरत में ही है.
समुदाय के साथ मोदी है पुराना कनेक्शन
प्रधानमंत्री बनने से पहले ही नरेन्द्र मोदी का दाऊदी बोहरा समुदाय के साथ खास कनेक्शन रहा है. साल 2011 में बतौर मुख्यमंत्री वे इस समुदाय के धार्मिक प्रमुख सैयदना बुरहानुद्दीन के 100 वें जन्मदिन के जश्न में शामिल हुए थे. बाद में जब 2014 में धार्मिक प्रमुख की मौत हुई तो भी मोदी उन्हें अंतिम विदाई देने मुंबई गए थे. तब उन्होंने उनके बेटे और उत्तराधिकारी सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन से भी मुलाकात की थी. इसके बाद प्रधानमंत्री रहते हुए भी साल 2015 में उन्होंने सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन से मुलाकात की थी.
इसके बाद साल 2016 में मुंबई में सैफ़ी अकादमी के नए परिसर का भी मोदी ने उद्घाटन किया था. तब उन्होंने अपने भाषण में कहा था वे इस समुदाय को अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं. उन्होंने दाऊदी बोहरा धार्मिक प्रमुखों की चार पीढ़ियों के साथ अपने संबंधों को भी याद किया. मोदी के ही मुताबिक इस समुदाय ने समाज में कुपोषण से लड़ने और पानी की कमी को दूर करने के लिए काफी काम किया है. यहां तक की जब महात्मा गांधी दांडी मार्च से लौटे थे तब भी इस समुदाय ने उनकी मेजबानी की थी.
जब वे बांग्लादेश गए तो उन्होंने दाऊदी बोहरा समुदाय के एक प्रतिनिधिमंडल से भी मुलाकात की. 2018 में, उन्होंने इंदौर की सैफी मस्जिद में दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा आयोजित इमाम हुसैन की शहादत की स्मृति में आयोजित अशरा मुबारका को संबोधित किया, जहां समुदाय के एक लाख से अधिक सदस्यों ने भाग लिया था।
मोदी का समर्थक रहा है ये समुदाय
जब भी जरूरत हो दाऊदी बोहरा समुदाय हमेशा PM मोदी के साथ खड़ा रहा है. साल 2014 के बाद से जब भी PM मोदी विदेश में कार्यक्रम करते हैं तो इस समुदाय के लोग बड़ी संख्या में वहां पहुंचते हैं. न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन और सिडनी में ओलंपिक पार्क एरेना में हुए कार्यक्रम इसकी नजीर पेश करते हैं.
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