एक नए अध्ययन में बताया गया है कि लैब में विकसित रेटिना घायल आंखों वाले रोगियों को उनकी आंखों की रोशनी वापस लाने में मदद कर सकता है, जिसे अंधेपन के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा सकता है. संयुक्त राज्य अमेरिका में विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि स्टेम सेल से डेवलप रेटिना सेल्स नाइबर्स के साथ जुड़ सकती हैं और एक "हैंडशेक" पूरा कर सकती हैं जो यह संकेत दे सकता है कि कोशिकाएं डिजनरेटिव आई की स्थिति वाले लोगों में टेस्ट के लिए तैयार हैं.
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विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार, एक दशक पहले, विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ग्रुप सेल्स बनाने का एक तरीका विकसित किया, जिसे ऑर्गेनोइड्स कहा जाता है, जो रेटिना के समान होता है और ये आंख के पीछे के प्रकाश के प्रति संवेदनशील टिश्यू होता है.
मैकफर्सन आई रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक और विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय में नेत्र विज्ञान के एक प्रोफेसर डेविड गैम के अनुसार, जिनकी प्रयोगशाला ने ऑर्गेनोइड्स का निर्माण किया, "हम उन ऑर्गेनोइड्स से कोशिकाओं का उपयोग उसी प्रकार की कोशिकाओं के रिप्लेसमेंट पार्ट्स के रूप में करना चाहते थे. जो रेटिनल रोगों के दौरान खो गए हैं."
साइंस अलर्ट नोट करता है कि फंक्शनलिटी सेल्स पर निर्भर करती है जो एक्सोन नामक एक्सटेंशन का उपयोग करके एक दूसरे के साथ जुड़ने में सक्षम होती हैं, जिसमें एक रासायनिक सिग्नल-बॉक्स होता है जिसे सिनैप्स कहा जाता है. ये एक जंक्शन बनाता है. टीम ने रेटिना कोशिकाओं के समूहों को अलग किया और उन्हें फिर से जुड़ते देखा.
फिर, एक रेबीज वायरस ट्रांसप्लांट किया गया था, और एक हफ्ते के दौरान, यह रेटिना कोशिकाओं के बीच घूमते हुए देखा गया था, यह दिखाते हुए कि अन्तर्ग्रथनी कनेक्शन बनाया गया है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं