हमारे शरीर का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा पानी से बना होता है और यह पानी हमारे शरीर के लिए जरूरी कामों में योगदान देता है. पानी न सिर्फ शरीर के तापमान को कंट्रोल करता है, बल्कि यह पोषक तत्वों को सेल्स तक पहुंचाने, टॉक्सिन्स को बाहर निकालने और शरीर के अंदर सही ब्लड सर्कुलेशन बनाए रखने का काम करता है. हालांकि, जब पानी का संतुलन सही नहीं होता, तो यह हमारी किडनी और दूसरे अंगों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है. अमोनियम, सोडियम क्लोराइड वाले पानी का सेहत पर क्या असर होता है आइए जानते हैं प्रोफेसर अनूप कुमार गुप्ता से.
सेहत पर अमोनियम और सोडियम क्लोराइड वाले पानी का असर
दो तरह का पानी
एक्सपर्ट के अनुसार, इंसान के शरीर में दो तरह का पानी होता है एक एक्स्ट्रा सेलुलर दूसरा इंट्रा सेलुलर. इंट्रा सेलुलर 65 प्रतिशत होता है और एक्स्ट्रा सेलुलर 25 प्रतिशत और जो 35 प्रतिशत वाटर है. यही बॉडी के सर्कुलेशन को तय करता है. एक खास बात जिसे अक्सर अनदेखा किया जाता है, वह है पानी में मौजूद सोडियम और इसके शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव. जब हम सोडियम क्लोराइड वाले पानी का सेवन करते हैं, तो यह शरीर में पानी के बैलेंस को बिगाड़ सकता है. यह बहुत ज्यादा वाटर रिटेंशन कर सकता है, जिससे शरीर में कई समस्याएं पैदा होती हैं.
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वाटर रिटेंशन और किडनी पर इसका असर
वाटर रिटेंशन की स्थिति में सबसे पहले शरीर में ब्लड प्रेशर बढ़ने का खतरा रहता है. जब शरीर में पानी का लेवल बढ़ जाता है, तो ब्लड वेसेल्स पर दबाव बढ़ता है, जिससे ब्लड प्रेशर हाई हो सकता है. इसके अलावा, पानी की ज्यादा मात्रा किडनी पर भी दबाव डालती है, जो इसके फिल्टरिंग कैपेसिटी को कमजोर कर देती है. यह किडनी के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.
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कैल्शियम और स्टोन का संबंध
वाटर रिटेंशन के कारण शरीर में कैल्शियम का लेवल बढ़ सकता है. जब यूरिन में कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होती है, तो यह कैल्शियम ऑक्सलेट और फास्फोरस के साथ मिलकर किडनी स्टोन का निर्माण कर सकता है. भारत में, विशेष रूप से उत्तर भारत में, किडनी स्टोन एक आम समस्या बन चुकी है और इसका एक बड़ा कारण हमारे पानी में सोडियम की अधिक मात्रा है. दिल्ली, जयपुर और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में यह समस्या अधिक देखी जाती है.
किडनी की खराबी और लॉन्ग टर्म डिजीज
सोडियम की बहुत ज्यादा मात्रा का एक और गंभीर परिणाम यह हो सकता है कि यह किडनी में एक क्रॉनिक बीमारी का कारण बन सकता है, जिसमें किडनी धीरे धीरे काम करना बंद कर देती है. इसका असर किडनी की फिल्टरिंग कैपेसिटी पर पड़ता है और अगर यह समस्या समय रहते कंट्रोल नहीं की जाती है, तो यह अंत में एंड स्टेज रीनल डिजीज का कारण बन सकती है, जिसमें किडनी ट्रांसप्लांट की नौबत आ सकती है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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