शहरों में बहुत से लोग कबूतरों को दाना डालते हैं. सुबह-शाम बालकनी, छत या पार्क में लोग बड़े प्यार से कबूतरों को दाना डालते हैं. कई लोग इसे धार्मिक आस्था से जोड़ते हैं, तो कुछ इसे जीवों के प्रति दया मानते हैं. लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि यही आदत आपकी सेहत के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है? हाल ही में एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में मशहूर चेस्ट सर्जन डॉक्टर अरविंद कुमार ने इस बारे में गंभीर चेतावनी दी है. उन्होंने बताया कि कबूतरों से जुड़ी एक बीमारी धीरे-धीरे फेफड़ों को इतना नुकसान पहुंचा सकती है कि मरीज की जान तक जा सकती है.
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कैसे फैलती है यह खतरनाक बीमारी?
डॉक्टर अरविंद कुमार के अनुसार, जब बहुत सारे कबूतर एक साथ उड़ते हैं और फिर किसी एक जगह जैसे बालकनी, छत या खिड़की के पास आकर बैठते हैं, तो वहां मौजूद कबूतरों की ड्रोपिंग (बीट) सूख जाती है. समय के साथ यह सूखी ड्रोपिंग बेहद बारीक कणों में बदल जाती है. जैसे ही कबूतर दोबारा उड़ते हैं या वहां हवा चलती है, ये कण हवा में फैल जाते हैं.
अगर उस समय कोई व्यक्ति उस जगह मौजूद होता है या रोजाना वहां आना-जाना करता है, तो ये कण सांस के साथ सीधे उसके फेफड़ों में चले जाते हैं. यहीं से बीमारी की शुरुआत होती है.
हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस क्या है?
डॉक्टर बताते हैं कि कबूतरों की ड्रोपिंग से फैलने वाले इन कणों के कारण हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस नाम की बीमारी हो सकती है. आसान भाषा में कहें तो यह फेफड़ों की एक गंभीर एलर्जिक सूजन है. इसमें शरीर का इम्यून सिस्टम जरूरत से ज्यादा रिएक्शन करने लगता है और पूरे लंग्स में सूजन फैल जाती है.
इस सूजन के कारण फेफड़ों में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का सही तरीके से आदान-प्रदान नहीं हो पाता. मरीज को सांस फूलने लगती है, लगातार खांसी रहती है, सीने में जकड़न महसूस होती है और थकान बढ़ जाती है.
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कैसे बनती है जानलेवा स्थिति?
अगर इस बीमारी को समय पर पहचाना न जाए और कबूतरों के संपर्क को बंद न किया जाए, तो सूजन धीरे-धीरे सिकुड़न (फाइब्रोसिस) में बदल जाती है. इसका मतलब है कि फेफड़े सख्त होने लगते हैं और उनकी काम करने की क्षमता कम हो जाती है. यह स्थिति आगे चलकर लंग फेलियर का कारण बन सकती है. गंभीर मामलों में मरीज को ऑक्सीजन पर निर्भर रहना पड़ता है और कुछ मामलों में मौत भी हो सकती है.
किन लोगों को ज्यादा खतरा है?
- जो लोग रोजाना कबूतरों को दाना डालते हैं.
- जिनके घर की बालकनी या छत पर कबूतरों का बसेरा है.
- बुजुर्ग, बच्चे और पहले से अस्थमा या एलर्जी से पीड़ित लोग.
बचाव ही सबसे बड़ा इलाज
डॉक्टरों की सलाह है कि घर के आसपास कबूतरों को दाना डालने से बचें. बालकनी और छत को साफ रखें, कबूतरों को वहां बैठने न दें और अगर सांस से जुड़ी कोई समस्या लंबे समय तक बनी रहे, तो तुरंत चेस्ट स्पेशलिस्ट से संपर्क करें.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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