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मनाली में जहां से होता था तिब्बत तक व्यापार, क्या उजड़ जाएंगे ये दोनों गांव; ब्यास नदी कैसे बन रही काल

कुदरत की मार जब पड़ती है तब कुछ नहीं बचता, अब मनाली के दो ऐतिहासिक गांवों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है, जानिए क्या है वजह

मनाली में जहां से होता था तिब्बत तक व्यापार, क्या उजड़ जाएंगे ये दोनों गांव; ब्यास नदी कैसे बन रही काल
  • मनाली के दो ऐतिहासिक गांव भूस्खलन और ब्यास नदी की दिशा बदलने से गंभीर खतरे में हैं
  • सोलांग घाटी का सोलांग गांव लैंड स्लाइड की वजह से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है
  • बाहणू गांव को ब्यास नदी चारों तरफ से काट रही है, जिससे गांव के पुल टूट गए
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मनाली:

मनाली के दो ऐतिहासिक गांव भारी बाढ़ और ब्यास नदी की दिशा बदलने की वजह से संकट में है. अब हालात ये है कि इन गावों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है. कभी इन गांव के रास्ते ही तिब्बत तक का व्यापार होता था. मनाली, कियोंग काजा, लाहौल स्पीति के रास्ते तिब्बत तक व्यापार चलता था, इसलिए यहां सदियों से कई गांव आबाद है. यहां रोहतांग दर्रे के रास्ते तिब्बत से नमक आता था और बदले में मसाला, गेंहू और चावल जैसी चीजें जाती थी. यही वजह है कि इन रास्तों पर हजारों साल पुराने गांव आज भी आबाद हैं. मनाली से करीब 35 KM दूर सोलांग घाटी का नाम जिस ऐतिहासिक गांव के नाम पर पड़ा है वो है सोलांग गांव. रोहतांग दर्रे को मनाली से जोड़ने वाले सोलांग घाटी पर्यटकों का मनपसंद स्थान है.

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गांव के कई घरों को कराया खाली

सोलांग घाटी से ही लेह और पुराना तिब्बत से व्यापार का कभी रास्ता होता था. सदियों से बसे इन गांवों के अस्तित्व पर इस सदी का सबसे बढा ख़तरा मंडरा रहा है. लेकिन मनाली लेह राजमार्ग से करीब 600 मीटर ऊपर पहाड़ों में बसा सोलांग गांव अब सबसे ज्यादा ख़तरे की जद में है. यहां कई घरों को ख़ाली करवा दिया गया है, क्योंकि ऊपर के पहाड़ से लगातार लैंड स्लाइड हो रहा है. मनाली के तहसीलदार अनिल राना ने बताया कि सोलांग गांव सबसे ज़्यादा ख़तरे में है क्योंकि ऊपर से लैंड स्लाइड हो रहा है. कुछ परिवारों को राहत कैंपों में रखा है. यहां कई घरों के बाहर बारिश के कटान से बचने के लिए तिरपाल बिछा रखा है.

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बाहणू गांव के लोग डरे

मनाली से चार किमी पहले ऐतिहासिक बाहणू गांव सैकड़ों साल पुराना गांव है. यहां लगभग 250 परिवार सदियों से रहते आए हैं, लेकिन इस गांव को ब्यास नदी चारों तरफ से काट रही है. यहां 1995 में भी ब्यास नदी की वजह से लैंड स्लाइड हुआ था, इसके चलते चार घर बह गए थे. इस बार फिर से लगातार लैंड स्लाइड हो रहा है. ब्यास नदी का बहाव तेज होने से गांव को जोड़ने वाला पुल बह गया और गांव जिस पहाड़ पर बसा है, उसके तीन तरफ से व्यास नदी की लहरें टकरा रही है. यही वजह है कि गांव की महिलाएं रात रात भर जाग कर टार्च की मदद से तीनों दिशाओं में कटान को देती रहती है.

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रातभर सो नहीं पाते ग्रामीण

गांव की महिला सुनीता ठाकुर ने बताया कि दिन में तो ब्यास नदी दिखती है, लेकिन रात को बारिश और फिर नीचे नदी के तेज बहाव के डर की वजह से रात रात भर नींद तक नहीं आती है. उनका कहना है कि अगर सरकार उस जगह पर कंक्रीट की दीवार बनाए, जहां से ब्यास नदी की लहरें टकराती है तो तभी हमारा गांव बचेगा. बाहणू गांव की बुजुर्ग महिला धारा देवी बताती हैं कि पहले गांव के आसपास काफ़ी जंगल था, बड़े बड़े पेड़ थे लेकिन वक्त के साथ जंगल खत्म होता गया. गांव के नीचे कैंपिंग साइट बन गई. लेकिन ब्यास नदी में इस तरह का पानी पहली बार देखा है. वो कहती हैं व्यास नदी सांप की तरह चलती है तो हमारे गांव के तीन तरफ से होकर गुज़रती है यही वजह है कि डर का माहौल है.

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