- लोग बेहतर कल के लिये थोड़े दिन की परेशानी सहने को तैयार हैं
- गांव के लोग सब्जियां एक दूसरे को लोग फ्री में दे देते हैं
- हालात ये हैं कि गांव में कोई बैंक नहीं है, एक डाकखाना है वो भी बंद
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कुराड़ गांव (हरियाणा):
नोटबंदी से जहां हर कोई परेशान है वहीं हरियाणा के कुराड़ गांव में लोग एक दूसरे की मदद कर नोटबंदी के इस दौर में परेशानियों का मुकाबला कर रहे हैं और प्रधानमंत्री के फैसले को सही बता रहे हैं.
दिल्ली से महज़ 55 किलोमीटर दूर सोनीपत के कुराड़ गांव में दिलबाग खेत की जुताई में जुटा है. नोटबंदी की वजह से कुछ दिन देरी हो गई लेकिन दिलबाग को इससे कोई परेशानी नहीं. दिलबाग का कहना है कि उसकी जुताई 3 दिन लेट हो रही है कि लेकिन इससे ज्यादा परेशानी नहीं है, वो प्रधानमंत्री के फैसले के साथ हैं.
इसी गांव के रतन सिंह बुआई की तैयारी कर रहे हैं. बीज में मिलाई गई खाद उधार लेकर आये हैं, लेकिन कहते हैं बेहतर कल के लिये थोड़े दिन की परेशानी सहने को तैयार हैं. हांलाकि खाद न मिलने से यहां कई किसान परेशान ज़रूर हैं.
गांव के खेतों में सब्जियां लहलहा रही हैं और घरों में अनाज की कमी नहीं. इसलिए नोटबंदी का यहां इन चीजों पर असर नहीं दिख रहा. गांव के संदीप का कहना है कि सब्जियां एक दूसरे को लोग फ्री में दे देते हैं. अन्नी ने हाल ही में करीब 40 हजार का धान बेचा है. मंडी में नये नोट न होने से आढ़ती ने नकद पैसे नहीं दिए, लेकिन कोई अफ़सोस नहीं. हालात ये हैं कि गांव में कोई बैंक नहीं है. एक डाकखाना है वो भी बंद मिला. फिर भी गांव के लोग नोटबंदी के इस दौर में एक दूसरे की मदद कर रहे हैं.
दिल्ली से महज़ 55 किलोमीटर दूर सोनीपत के कुराड़ गांव में दिलबाग खेत की जुताई में जुटा है. नोटबंदी की वजह से कुछ दिन देरी हो गई लेकिन दिलबाग को इससे कोई परेशानी नहीं. दिलबाग का कहना है कि उसकी जुताई 3 दिन लेट हो रही है कि लेकिन इससे ज्यादा परेशानी नहीं है, वो प्रधानमंत्री के फैसले के साथ हैं.
इसी गांव के रतन सिंह बुआई की तैयारी कर रहे हैं. बीज में मिलाई गई खाद उधार लेकर आये हैं, लेकिन कहते हैं बेहतर कल के लिये थोड़े दिन की परेशानी सहने को तैयार हैं. हांलाकि खाद न मिलने से यहां कई किसान परेशान ज़रूर हैं.
गांव के खेतों में सब्जियां लहलहा रही हैं और घरों में अनाज की कमी नहीं. इसलिए नोटबंदी का यहां इन चीजों पर असर नहीं दिख रहा. गांव के संदीप का कहना है कि सब्जियां एक दूसरे को लोग फ्री में दे देते हैं. अन्नी ने हाल ही में करीब 40 हजार का धान बेचा है. मंडी में नये नोट न होने से आढ़ती ने नकद पैसे नहीं दिए, लेकिन कोई अफ़सोस नहीं. हालात ये हैं कि गांव में कोई बैंक नहीं है. एक डाकखाना है वो भी बंद मिला. फिर भी गांव के लोग नोटबंदी के इस दौर में एक दूसरे की मदद कर रहे हैं.
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