
- हिमाचल प्रदेश सरकार ने घाटे में चल रहे हिमाचल पर्यटन निगम के 14 होटलों को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय लिया है.
- यह फैसला राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया गया, जिसका उद्देश्य निगम के घाटे को कम कर आर्थिक स्थिति में सुधार करना है.
- निजीकरण की प्रक्रिया जल्द पूरी करने के निर्देश निगम के प्रबंध निदेशक को दिए हैं. लेकिन इससे होटल कर्मचारियों का भविष्य संकट में है.
एक लाख करोड़ के कर्ज में डूबे हिमाचल प्रदेश ने अब प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए एक बड़ा निर्णय लिया है. हिमाचल पर्यटन निगम के 14 होटलों को अब निजी हाथों में सौंपने का फैसला लिया है. ये सभी होटल्स घाटे में चल रहे हैं. हालांकि एक याचिका पर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने भी सरकार को पहले ही हिमाचल पर्यटन निगम के घाटे में 18 होटल को निजी हाथों में देने के आदेश दिए, तब हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम ने कोर्ट से अपील की थी, थोड़ा वक्त दीजिए हम इन्हें उभारने का प्रयास करेंगे.
सरकार ने क्यों लिया ये फैसला
अब हिमाचल कैबिनेट ने 28 जून की बैठक में ये निर्णय लिया कि 14 को अब निजी हाथों में देंगे. जिससे घाटे में चल रहे हिमाचल टूरिज्म व सरकार की आर्थिक सेहत में सुधार होगा. हिमाचल प्रदेश सरकार ने घाटे में चल रहे हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के 14 होटलों को निजी हाथों में देने का बड़ा फैसला लिया है. प्रिंसिपल सैक्रेटरी टूरिज्म ने निगम के प्रबंध निदेशक को निर्देश दिए हैं. जल्द इन होटलों को ऑपरेशन और मेंटीनेंस के लिए निजी क्षेत्र को सौंपने की प्रक्रिया पूरी की जाए. वहीं सरकार के इस निर्णय से पर्यटन निगम के कर्मचारियों में भारी असंतोष फैल गया है.
हिमाचल पर्यटन निगम के हाेटल साैंपे जाएंगे निजी हाथों में -
- होटल हिल टॉप, स्वारघाट
- होटल लेकव्यू, बिलासपुर
- होटल भागल, दाड़लाघाट
- वेसाइड एमेनिटी, भराड़ीघाट
- होटल ममलेश्वर, चिंदी
- होटल एप्पल ब्लॉसम फागु
- होटल शिवालिक, परवाणू
- होटल गिरीगंगा, खड़ापत्थर
- होटल चांशल, रोहड़ू
- टूरिस्ट इन, राजगढ़
- होटल सरवरी, कुल्लू
- होटल ओल्ड रोसकॉमन, कसौली
- कश्मीर हाऊस, धर्मशाला
- होटल उहल, जोगिंद्रनगर
पर्यटन निगम के कर्मचारियों में हड़कंप
सरकार के इस आदेश के बाद पर्यटन निगम के कर्मचारियों में हड़कंप मच गया है. लंबे समय से इन सरकारी होटलों को निजी हाथों में सौंपने की चर्चा तो चल रही थी, लेकिन अब सरकार ने इसे अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. कर्मचारियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि इन होटलों में कार्यरत स्थायी और अनुबंध कर्मचारी भविष्य में क्या करेंगे? उनकी सेवा शर्तें क्या रहेंगी? इस पर अभी तक कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं मिले है. राज्य सरकार का यह फैसला ऐसे समय आया है, जब पर्यटन निगम की आय में सुधार देखा जा रहा है.
कैबिनेट की बैठक में हुआ फैसला
इसके बावजूद घाटे में चल रहे होटलों को निजी हाथों में देने का निर्णय कर्मचारियों को रास नहीं आ रहा. कर्मचारियों का कहना है कि यह निर्णय केवल सरकारी संपत्तियों को औने-पौने दामों पर निजी हाथों में सौंपने की मंशा दर्शाता है. पर्यटन विभाग के आदेशों के अनुसार, करोड़ों रुपये की लागत से बने 14 सरकारी होटलों को निजी ऑप्रेटर्स को सौंपा जाएगा. यह फैसला 28 जून को आयोजित राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया था. सरकार का तर्क है कि ये होटल लंबे समय से घाटे में चल रहे हैं और उन्हें बचाने के लिए कई प्रयास विफल रहे हैं.
पर्यटन निगम कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारी राज कुमार ने कहा कि सरकार के इस निर्णय का हर स्तर पर विरोध किया जाएगा. उन्होंने बताया कि यूनियन अभी सरकार के आदेशों का अध्ययन कर रही है और जल्द ही आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी संपत्ति को प्राइवेट हाथों में सौंपने की अनुमति नहीं दी जाएगी. पर्यटन निगम के निदेशक राजीव ने बताया कि यह निर्णय राज्य कैबिनेट का है. फिलहाल यह तय होना बाकी है कि होटलों को निजी क्षेत्र को किस प्रक्रिया के तहत सौंपा जाएगा. साथ ही कर्मचारियों की सेवा शर्तों को लेकर भी विस्तृत निर्णय लिया जाएगा.
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