राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुखपत्र 'पांचजन्य' ने हरियाणा के नतीजों को भाजपा के लिए जनता की चेतावनी करार दिया है. मुखपत्र की वेबसाइट पर 25 अक्टूबर को 'हरियाणा में भाजपा को जनता की चेतावनी' शीर्षक से प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि "ऐसे परिणाम का सामान्य अर्थ यह होता है कि जनता सरकार से बहुत खुश तो नहीं है, लेकिन सरकार के खिलाफ भी नहीं है. ऐसे जनादेश को एक तरह से जनता की चेतावनी कहा जा सकता है." संघ के मुखपत्र में सवाल उठाया गया है कि 2019 के चुनाव में बढ़ा वोट प्रतिशत आखिर बढ़ी हुई सीटों में क्यों नहीं तब्दील हो पाया? लेख में भाजपा की कुछ कमजोरियों की तरफ इशारा करते हुए बहुमत से दूर रहने की वजहें बताई गई हैं.
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मुखपत्र ने लिखा है, "खट्टर सरकार के सात मंत्रियों का चुनाव हार जाना बताता है कि पहली बार सरकार चलाने में उनकी अनुभवहीनता आड़े आई. किसी मंत्री को अतीत में प्रशासनिक अनुभव नहीं था. वे जनता के मूड को समझने के बजाय आदर्शवादी कार्य करते रहे, जो जनता के भविष्य के लिहाज से तो ठीक थे, लेकिन जनता को उससे वर्तमान में फौरी राहत नहीं मिल रही थी." लेख में टिकट वितरण को लेकर भाजपा की चूक की तरफ इशारा करते हुए कहा गया है कि जो भाजपा नेता टिकट न मिलने पर बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे, उनमें से पांच जीत गए. पांचजन्य ने भाजपा के अति आत्मविश्वास को भी कमजोर प्रदर्शन की बड़ी वजह माना है. लेख में कहा गया है, "नीति शिक्षा कहती है कि प्रतिद्वंद्वी को कभी कमजोर न समझें. लेकिन अति-आत्मविश्वास की वजह से आखिरी वक्त तक सीट-दर-सीट के लिए भिन्न रणनीति बनाकर जुटे रहने में चूक हुई.
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एक कारण स्थानीय मुद्दों पर फोकस न होना भी कहा जा रहा है. भाजपा की ओर से राष्ट्रवाद के मुद्दे उठाए जा रहे थे, लेकिन कांग्रेस के स्थानीय सिपहसालार भूपेंदर सिंह हुड्डा ने भी अपना रुख राष्ट्रवादी मुद्दों के पक्ष में दिखाकर बचाव कर लिया." संघ ने कहा है कि दुष्यंत की मजबूती की थाह भी भाजपा पता लगाने में नाकाम रही. हालांकि लेख में भाजपा के प्रदर्शन को सहारा भी गया है. लेख में कहा गया है, "हरियाणा विधानसभा के लिए 1982 से अब तक हुए नौ चुनावों पर नजर डालें तो अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी सरकार को दोबारा जनादेश मिला हो. यह दूसरी बार हुआ है कि जब कोई सत्ताधारी पार्टी लगातार दूसरे चुनाव में बहुमत भले न प्राप्त कर सकी हो, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है."
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