Daal Bhigone Ka Sahi Samay: क्या आप जानते हैं भारत में दालें सबसे ज्यादा दालें उगाई और खाई जाती हैं. भारत में दालें हमारे रोज़मर्रा के खाने का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. पोषण से भरपूर, डाइजेशन-फ्रेंडली और हर उम्र के लिए फायदेमंद, दालें सच में सुपरफूड हैं. लेकिन कई बार गलत कुकिंग या गलत खाने की आदतें इन दालों के असली फायदों तक हमें पहुंचने नहीं देतीं. डॉक्टर हंसाजी ने बताया है वो गलतियां जो अमूमन लोग दाल बनाते समय करते हैं और उन्हें सुधारकर कैसे दालों का पूरा फायदा ले सकते हैं.
दाल खाने के प्रमुख फायदे
- कब्ज से राहत.
- कोलेस्ट्रॉल लेवल कम करने में मदद.
- विटामिन बी, फोलेट और मिनरल्स का अच्छा स्रोत.
- प्रोटीन और अमीनो एसिड से भरपूर.
- लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स, इसलिए डायबिटिक लोगों के लिए भी बेहतर.
इनके इतने फायदे होने के बावजूद कई छोटी गलतियां इन्हें डाइजेस्ट होने में दिक्कत पैदा करती हैं और इनके न्यूट्रिएंट्स कम हो जाते हैं. आइए जानते हैं दाल को बनाते वक्त की जाने वाली वो गलतियां जो अमूमन लोग करते हैं.
1. दाल को सही तरीके से न भिगोना
अगर दाल खाकर गैस, ब्लोटिंग, एसिडिटी या भारीपन महसूस होता है, तो इसकी वजह दालों में मौजूद एंटीन्यूट्रिएंट्स—जैसे फाइटिक एसिड और लेक्टिन—हो सकते हैं. ये डाइजेशन और न्यूट्रिएंट्स के अवशोषण में रुकावट डालते हैं.
सही भिगोने का समय
- छोले/राजमा: 8–12 घंटे
- तुअर/मसूर: 1–4 घंटे
- ब्लैक बीन्स: 6–8 घंटे
भिगोने के बाद पानी फेंक दें और दाल को एक बार साफ पानी से धो लें. इससे एंटीन्यूट्रिएंट्स कम होते हैं और दाल हल्की व आसानी से पचने योग्य बनती है.
2. दाल को कम या जरूरत से ज्यादा पकाना
कम पकी दाल हार्ड रहती है और पेट में गैस व अपच पैदा करती है.
ज्यादा पकाई हुई दाल में विटामिन बी, फोलेट और आयरन जैसे पोषक तत्व नष्ट हो सकते हैं.
सही कुकिंग तरीका
- प्रेशर कुकर का इस्तेमाल करें
- या स्लो-सिमरिंग तकनीक अपनाएं
- दाल को इतना पकाएं कि वह मुलायम हो जाए पर पूरी तरह टूटकर पेस्ट न बने
3. दाल और अनाज का गलत रेशियो में सेवन
दाल और अनाज का सही कॉम्बिनेशन आपके शरीर को कम्प्लीट प्रोटीन देता है. दाल और ग्रेन का 1.2 और 1.3 रेशियो होना चाहिए. एक पार्ट दाल के साथ 2 पार्ट ग्रेन या 2 पार्ट राइस लेना चाहिए. कई लोग दाल ज्यादा और ग्रेन कम लेते हैं वेट लॉस के लिए. लेकिन दाल में मेथ्योनाइन अमीनो एसिड नहीं होता और ग्रेनस में लाइसेन नहीं होता. जब आप दोनों को सही रेशियो में लेते हैं तो आपका अमीनो एसिड प्रोफाइल पूरा होता है.
क्यों जरूरी है यह?
दालों में मेथियोनाइन नहीं होता
अनाज में लाइसिन नहीं होता
दोनों साथ खाने पर अमीनो एसिड प्रोफाइल पूरा होता है. वेट-लॉस में भी संतुलित मात्रा फायदेमंद रहती है.
4. एक बार में बहुत ज्यादा दाल खाना
दाल में फाइबर और प्रोटीन दोनों अधिक होते हैं. पर शुरुआती लोगों के लिए यह भारी पड़ सकता है.
क्या करें?
- धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाएं
- दाल में अदरक, जीरा, अजवाइन, सौंफ जैसे मसाले डालें
- ये डाइजेशन आसान बनाते हैं और गैस कम करते हैं
5. दाल को गलत तरीके से स्टोर और पकाना
गलत स्टोरेज से दाल में कीड़े और नमी आ सकती है जिससे न्यूट्रिएंट्स कम होते हैं.
सही स्टोरेज टिप्स
- हमेशा दालें एयरटाइट कंटेनर में रखें
- कंटेनर को कूल और ड्राई जगह पर रखें
- पुराने और नए दानों को कभी न मिलाएं
कुकिंग में ये गलती न करें
- दाल पकते समय शुरुआत में नमक, टमाटर, इमली या किसी भी एसिडिक चीज को न डालें
- ये दाल को हार्ड कर देते हैं
- दाल पूरी तरह नरम होने के बाद ही इन्हें मिलाएं
दालें भारतीय रसोई का पोषण खजाना हैं, बस सही तरीके से बनाने की जरूरत है. सही भिगोना, सही पकाना, सही रेशियो और सही मसाले—ये छोटी-छोटी बातें दाल को न सिर्फ हेल्दी बनाती हैं, बल्कि इसे पचने में भी आसान बनाती हैं. इन सावधानियों के साथ तैयार की गई दाल आपको प्रोटीन, फाइबर और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का पूरा फायदा देती है—और आपका खाना बन जाता है परफेक्ट, हेल्दी और लाइट!
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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