इस बार भारत में ईद उल अजहा (Eid al- Adha) 29 जून को मनाया जाएगा, हालांकि सऊदी अरब में इसे 28 जून को मनाया जा रहा है. ईद दो तरह की होती है. रमजान के पवित्र माह के समाप्त होने पर ईद उल फितर मनाई जाती है और इसके दो माह दस दिन बाद दूसरी ईद यानी ईद उल अजहा या बकरीद (Bakra Eid) मनाई जाती है. इस्लामिक कैलेंडर (Islamic Calender) के आखिरी माह धुल्ल हिज की दस तारिख को ईद उल अजहा होती है. इस माह में दुनिया भर के मुस्लिम हज करने मक्का जाते हैं.
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ईद उल अजहा का महत्व
ईद उल अजहा का दिन फर्ज ए कुर्बानी का दिन होता है. इसके जरिए पैगाम दिया जाता है कि मुस्लिम अपने दिल के करीब रहने वाली वस्तु भी दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं. मुस्लिम धर्म में गरीबों और जरूरतमंदों का बहुत ध्यान रखने की परंपरा है. ईद उल अजहा के दिन कुर्बानी के गोश्त को गरीबों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है. गोश्त का तीन भाग किया जाता है इसमें एक हिस्सा स्वयं के लिए, एक हिस्सा पड़ोसियों और रिश्तेदारों के लिए और एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंद को बांट दिया जाता है.
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क्यों दी जाती है कुर्बानी
मुस्लिम धर्म में अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी दी जाती है. मान्यताओं के अनुसार हजरत ने एक दिन इब्राहिम के सपने में आकर अपनी प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी. इब्राहिम अपने बेटे को बहुत चाहते थे. उन्होंने बेटे की कुर्बानी देने का निश्चय किया. हालांकि कुर्बानी में भावनाएं बीच में न आ जाएं इसलिए आंखों पर पट्टी बांध दी. अल्लाह का हुक्म मानकर उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी दे दी लेकिन आंख खोलने पर उन्होंने पाया कि उनका बेटा सही सलामत है और एक दुम्बा (अरब में भेड़ के समान जानवर) पड़ा है. तब से बकरे की कुर्बानी देने प्रचलन शुरू हो गया.
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