फिल्म निर्देशक राजकुमार हिरानी (फाइल फोटो)
मुंबई:
हिन्दुस्तान के टॉप और कामयाब निर्देशक राजू हिरानी अब तक चार फिल्में डायरेक्ट कर चुके हैं और साथ ही कई फिल्मों में बतौर सह-निर्माता भी उनका नाम शुमार है। इसी कड़ी में नाम जुड़ रहा है एक और फिल्म का जिसका नाम है 'साला खड़ूस'। इस फिल्म को उन्होंने प्रोड्यूस किया है अभिनेता माधवन के साथ, जो इस फिल्म में अभिनय भी कर रहे हैं।
दस साल में सिर्फ चार फिल्में
बतौर निर्देशक राजू की पहली फिल्म थी 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' जो कि रिलीज़ हुई थी 2003 में। बतौर निर्देशक उनकी आखिरी फिल्म थी पीके और यह रिलीज़ हुई 2014 में। यानी दस साल में केवल चार फिल्में। इसका मतलब राजू हिरानी की काम करने की गति धीमी जरूर है पर काम काफी क्रिएटिव होता है, क्योंकि उनकी हर फिल्म बेजोड़ और कामयाब होती है।
फिल्मों हो जाती है तुलना
हालांकि राजू ने पहली बार माना कि इस धीमी गति से काम करने का उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। राजू के मुताबिक जब उन्होंने पीके बनानी शुरू की तो उन्होंने अपनी गति से काम किया, पर उनकी फिल्म से पहले 'ओह माई गॉड' आ गई और लोगों ने 'पीके' की तुलना 'ओह माई गॉड' से की। अब 'साला खड़ूस' से पहले 'मैरी कॉम' आ चुकी है जाहिर है कहीं न कहीं इसकी भी तुलना होगी। यूं तो राजू का कहना ठीक है क्योंकि जब तुलना होती है तो दर्शक कहते हैं कि ऐसी कहानी तो वे देख चुके हैं और इससे फिल्म की छवि या बिजनेस पर भी फर्क पड़ता है। तो कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि राजू को अपनी स्पीड बढ़ानी पड़ेगी।
दस साल में सिर्फ चार फिल्में
बतौर निर्देशक राजू की पहली फिल्म थी 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' जो कि रिलीज़ हुई थी 2003 में। बतौर निर्देशक उनकी आखिरी फिल्म थी पीके और यह रिलीज़ हुई 2014 में। यानी दस साल में केवल चार फिल्में। इसका मतलब राजू हिरानी की काम करने की गति धीमी जरूर है पर काम काफी क्रिएटिव होता है, क्योंकि उनकी हर फिल्म बेजोड़ और कामयाब होती है।
फिल्मों हो जाती है तुलना
हालांकि राजू ने पहली बार माना कि इस धीमी गति से काम करने का उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। राजू के मुताबिक जब उन्होंने पीके बनानी शुरू की तो उन्होंने अपनी गति से काम किया, पर उनकी फिल्म से पहले 'ओह माई गॉड' आ गई और लोगों ने 'पीके' की तुलना 'ओह माई गॉड' से की। अब 'साला खड़ूस' से पहले 'मैरी कॉम' आ चुकी है जाहिर है कहीं न कहीं इसकी भी तुलना होगी। यूं तो राजू का कहना ठीक है क्योंकि जब तुलना होती है तो दर्शक कहते हैं कि ऐसी कहानी तो वे देख चुके हैं और इससे फिल्म की छवि या बिजनेस पर भी फर्क पड़ता है। तो कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि राजू को अपनी स्पीड बढ़ानी पड़ेगी।
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