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दारा सिंह रंधावा उर्फ दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जिनमें कई बेहद चर्चित फिल्में हैं। उनकी फिल्मों में उनकी ताकत और डील डौल का खूब इस्तेमाल किया गया।
उन्होंने अपने फिल्मी सफर में ‘किंगकांग’, ‘फौलाद’, ‘रूस्तम ए बगदाद’, ‘सिकंदर-ए-आजम,’ ‘हम सब उस्ताद हैं,’ ‘मेरा नाम जोकर’, ‘ललकार’, ‘जहरीला इंसान’, ‘हम सब चोर हैं’, ‘मर्द’ जैसी कई चर्चित फिल्मों में काम किया और अपने अभिनय से दर्शकों को रोमांचिक किया। ‘किंग कांग’ फिल्म ने उन्हें अभिनय की दुनिया में स्थापित कर दिया और इसके बाद उन्हें एक से बढ़कर भूमिकाएं मिलीं जिसमें उन्हें अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन करने का मौका मिला।
दारा सिंह ने अभिनेत्री मुमताज के साथ 16 फिल्मों में काम किया। इस जोड़ी की अधिकतर फिल्में स्टंट और एक्शन प्रधान थीं। इन फिल्मों में ‘बॉक्सर’, ‘सैमसन’, ‘टारजन’, ‘किंग कांग’ आदि शामिल हैं।
रामानंद सागर के धारावाहिक ‘रामायण’ में हनुमान की भूमिका में लोगों ने उन्हें विशेष रूप से पसंद किया और उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया। अपने मजबूत कद काठी और प्रभावशाली भूमिकाओं के कारण फिल्मी दर्शकों को उनसे अलग किस्म की उम्मीद रहती थी। एक पीढ़ी के लिए तो वह जीवन में ही मिथक के समान हो गए थे और बलशाली लोगों की तुलना उनसे की जाती थी। पंजाब में अमृतसर में 19 नवंबर 1928 को सूरत सिंह रंधावा और बलवंत कौर के घर पैदा हुए दारा सिंह को शुरू से ही पहलवानी का शौक था और वह आसपास के जिलों में कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे। बाद में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों नामी पहलवानों को अखाड़े में चित्त किया और भारतीय स्टाइल के अलावा ‘फ्री स्टाइल’ कुश्ती में भी दुनिया के दिग्गज पहलवानों को धूल चटाई।
विदेशों में पहलवानों को पटखनी देने के बाद 1950 के दशक के बीच में वह भारत लौटे और चैंपियन बने। उन्होंने राष्ट्रमंडल देशों का भी दौरा किया और वहां के पहलवानों से अखाड़ों में मुकाबला करते हुए विजय हासिल की। उनकी सफलता से जलने वाले कई विदेशी पहलवानों ने उन्हें चुनौती दी लेकिन दारा सिंह ने सभी ऐसे पहलवानों को धूल चटा दी और अंतत: 1968 में विश्व चैंपियन बने।
कहा जाता है कि उनकी लोकप्रियता से कुश्ती को नया जीवन मिला और देश में बड़ी संख्या में युवा इस खेल के प्रति आकर्षित हुए। उनकी कुश्ती प्रतियोगिताओं को देखने के लिए लोगों में गजब का उत्साह होता था। विश्व चैंपियन बनने के बाद दारा सिंह ने हिन्दी फिल्म जगत की राह ली और यहां भी कामयाबी का नया अध्याय लिखा। उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी जो 1989 में प्रकाशित हुई थी।
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