Mumbai:
1992 में पंजाब के छोटे से कस्बे में एयरफोर्स की चिठ्ठी का इंतजार कर रहे हैरी यानी शाहिद कपूर के साथ 'मौसम' की शुरुआत होती है। तभी कश्मीर से विस्थापित आयत यानी सोनम कपूर हैरी के कस्बे में पहुंचती है। थोड़ी आंख मिचौली के बाद हैरी आयत को चाहने लगता है जिसका एहसास आयत को भी है। लेकिन बाबरी मस्जिद गिरते ही दोनों प्रेमी बिछड़ जाते हैं और सात साल बाद स्कॉटलैंड में इनकी मुलाकात होती है। हैरी फाइटर पायलट बन चुका है और आयत म्यूज़िशियन। डायरेक्टर पंकज कपूर की 'मौसम' बताती है कि अयोध्या कांड, करगिल वॉर, 9/11 का हमला या गुजरात के दंगों के साथ जब-जब देश दुनिया में राजनीति का मौसम बदलता है तब-तब प्रेमियों की किस्मत पर चोट होती है लेकिन सच्चे प्रेमी दस साल एक-दूसरे का इंतजार करते हैं जो आज की जनरेशन को थोड़ा इमप्रेक्टिकल लग सकता है। फिल्म आगे बढ़ती है। पंजाब के हरे-भरे खेतों में मस्ती करते हैरी और उसके दोस्त, ताजगी भरे म्यूज़िक और गांव वालों के अच्छे कॉमिक मूमेन्ट्स के साथ। सोनम शाहिद की लव स्टोरी में कुछ कमाल के मूमेंट्स हैं। फर्स्ट हाफ ठीक है हालांकि इंटरवेल 1 घंटे 30 मिनट बाद हिट होता है। सेकेंड हाफ में कई शहरों में प्रेमियों के मिलने बिछुड़ने का सिलसिला फिर शुरू होता है जो खत्म होने का नाम नहीं लेता। शाहिद का एयरफोर्स अफेयर भी छोटा-सा है। इक्का दुक्का सीक्वेंस में वो फाइटर प्लेन उड़ाते हैं। बाकी जगह उन्हें पायलट दिखाने के लिए वर्दी पहना दी गई है। क्लाइमैक्स पर अपने हीरो बेटे को ग्लोरिफाय करने लिए पंकज कपूर ने शाहिद से ऐसे कारनामे करवाए जो यकीन से परे तो हैं ही साथ ही आर्ट और कमर्शियल सिनेमा जोड़ने की नाकाम कोशिश भी है। 2 घंटे 50 मिनट लंबी और स्लो फिल्म 'मौसम' ने मुझे थका दिया। कुदरत ने भी साल में तीन मौसम बनाए हैं जो 4− 4 महीने में चले जाते हैं लेकिन पंकज कपूर का एक ही 'मौसम' खत्म होने का नाम नहीं लेता। 'मौसम' के लिए मेरी रेटिंग है 2 स्टार।
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