मुंबई:
इस फिल्मी फ्राइडे रिलीज हुई है पत्रकार से फ़िल्मकार बने विनोद कापड़ी की 'मिस टनकपुर हाज़िर हो', जिसका विषय लिखा है खुद विनोद कापड़ी और अभिषेक शर्मा ने। स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले लिखा है विनोद कापड़ी और वरुण गौतम ने। फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं, राहुल बग्गा, ऋषिता भट्ट, अन्नु कपूर, रवि किशन, संजय मिश्रा और ओमपुरी ने।
'मिस टनकपुर हाज़िर हो' एक व्यंग्यात्मक फ़िल्म है, जिसमें क़ानून, समाज, धर्म और देश में महिलाओं की हालत पर कटाक्ष है। कहानी में गांव के एक लड़के को एक भैंस से बलात्कार के आरोप में फंसा दिया जाता है इसके बाद आप देखेंगे कि किस तरह वह कानून के कायदों में उलझता है। ये फ़िल्म कहानी और आइडिया के तौर पर बिलकुल कारगर है, जो आपको रोचक सफर पर ले जाएगी।
फिल्म के डायलॉग कई जगह हंसाएंगे। मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर की भाषा का तड़का मज़ेदार है, फ़िल्म कहीं-कहीं इस पटरी से उतरकर हरियाणा की पटरी पर दौड़ने लगती है।
अभिनय की बात की जाए तो ऋषिता भट्ट ने अच्छा काम किया है। वहीं राहुल बग्गा भी अपने क़िरदार में फ़िट हैं। मगर पूरी फ़िल्म देखने के बाद मुझे ऋषिता और रवि किशन का काम ज़्यादा अच्छा लगा। बाकी किरदारों की डायलॉग डिलीवरी में समानता नज़र आती है इसलिए वे पर्दे पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाते।
'मिस टनकपुरा हाज़िर हो' का फ़िल्मांकन मुझे ज़रा कमज़ोर लगा। एडिटिंग में कमी थी। अगर ये धारदार होती तो फ़िल्म पहले भाग में ज़्यादा धीमी नहीं पड़ती। मुझे लगता है फ़िल्म का स्क्रीनप्ले और कसा हुआ हो सकता था। पर अच्छी बात यह है कि निर्देशक विनोद कापड़ी ने समाज के गंभीर मुद्दों पर हंसाते हुए रोशनी डाल दी है। फिल्म अपने विषय से नहीं भटकती। कहानी के चरम पर पहुंचने के दौरान जो कड़ियां आती हैं वह थोड़ी लंबी दिखती हैं। ख़ैर, 'मिस टनकपुर हाज़िर हो' कुल मिलकार एक ऐसी फ़िल्म है, जो आपका मनोरंजन करने के साथ-साथ समाज को आईना दिखाती है। मेरी ओर से फ़िल्म को 3.5 स्टार्स।
'मिस टनकपुर हाज़िर हो' एक व्यंग्यात्मक फ़िल्म है, जिसमें क़ानून, समाज, धर्म और देश में महिलाओं की हालत पर कटाक्ष है। कहानी में गांव के एक लड़के को एक भैंस से बलात्कार के आरोप में फंसा दिया जाता है इसके बाद आप देखेंगे कि किस तरह वह कानून के कायदों में उलझता है। ये फ़िल्म कहानी और आइडिया के तौर पर बिलकुल कारगर है, जो आपको रोचक सफर पर ले जाएगी।
फिल्म के डायलॉग कई जगह हंसाएंगे। मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर की भाषा का तड़का मज़ेदार है, फ़िल्म कहीं-कहीं इस पटरी से उतरकर हरियाणा की पटरी पर दौड़ने लगती है।
अभिनय की बात की जाए तो ऋषिता भट्ट ने अच्छा काम किया है। वहीं राहुल बग्गा भी अपने क़िरदार में फ़िट हैं। मगर पूरी फ़िल्म देखने के बाद मुझे ऋषिता और रवि किशन का काम ज़्यादा अच्छा लगा। बाकी किरदारों की डायलॉग डिलीवरी में समानता नज़र आती है इसलिए वे पर्दे पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाते।
'मिस टनकपुरा हाज़िर हो' का फ़िल्मांकन मुझे ज़रा कमज़ोर लगा। एडिटिंग में कमी थी। अगर ये धारदार होती तो फ़िल्म पहले भाग में ज़्यादा धीमी नहीं पड़ती। मुझे लगता है फ़िल्म का स्क्रीनप्ले और कसा हुआ हो सकता था। पर अच्छी बात यह है कि निर्देशक विनोद कापड़ी ने समाज के गंभीर मुद्दों पर हंसाते हुए रोशनी डाल दी है। फिल्म अपने विषय से नहीं भटकती। कहानी के चरम पर पहुंचने के दौरान जो कड़ियां आती हैं वह थोड़ी लंबी दिखती हैं। ख़ैर, 'मिस टनकपुर हाज़िर हो' कुल मिलकार एक ऐसी फ़िल्म है, जो आपका मनोरंजन करने के साथ-साथ समाज को आईना दिखाती है। मेरी ओर से फ़िल्म को 3.5 स्टार्स।
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