इस हफ्ते रिलीज़ हुई 'क्या दिल्ली क्या लाहौर', जिसमें मुख्य भूमिका में हैं विजय राज़, मनु ऋषि, विश्वजीत प्रधान और राज जुत्शी... फिल्म की कहानी घटती है हिन्दुस्तान की आज़ादी और देश के बंटवारे के बाद, जहां हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की सरहद पर लड़ते-लड़ते दोनो ओर के सिपाहियों में से सिर्फ एक-एक सिपाही रह जाता है और फिर भूख और प्यास उन्हें बंदूक की भाषा छोड़कर इंसानियत की भाषा बोलने पर मजबूर कर देती है...
'क्या दिल्ली क्या लाहौर' का निर्माण किया है करण अरोड़ा ने, निर्देशक हैं खुद विजय राज़, और फिल्म के प्रस्तोता हैं दिग्गज लेखक−गीतकार गुलज़ार... यह फिल्म दोनों देशों की राजनीतिक सरगर्मी और उस रिश्ते की बात करती है, जिसे मिटाया नहीं जा सकता...
पूरी फिल्म करीब-करीब एक ही इलाके में शूट हुई है... लगभग पूरी फिल्म में दो ही किरदार नज़र आते हैं, लेकिन इसके बावजूद फिल्म कहीं भी अपनी रफ्तार नहीं खोती, और न ही फिल्म में किरदारों की कमी महसूस होती है... सबसे बड़ी बात यह है कि फिल्म बिना कोई ज्ञान दिए हंसाते हुए बड़ी आसानी से अपनी बात कह जाती है... अगर आपको संजीदा और अर्थपूर्ण सिनेमा देखने का शौक है तो इस फिल्म की कसी हुई स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले आपको हिलने का मौका नहीं देंगे...
'क्या दिल्ली क्या लाहौर' के कई डायलॉग आपको गुदगुदाएंगे और आप पर गहरा असर छोड़ जाएंगे... फिल्म की खूबसूरती है इसकी सादगी, विजय राज़ का बेहतरीन अभिनय और निर्देशन... मनु ऋषि का काम भी अच्छा है, लेकिन कहीं-कहीं डायलॉग बोलने का जो तरीका उन्होंने पकड़ा है, वह कुछ खलता है... राज जुत्शी और विश्वजीत प्रधान के किरदार छोटे हैं, लेकिन दोनों ने अच्छा काम किया है...
फिल्म का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर कहानी में अपना योगदान बखूबी करते हैं... थोड़ी-सी तकनीकी बारीकियों पर ध्यान देने की और ज़रूरत थी... मसलन, कुछ सीन्स में बैकग्राउंड म्यूज़िक की कमी और थोड़ा एडिट का मसाला, लेकिन शायद दर्शकों को यह न खले... कुल मिलाकर 'क्या दिल्ली क्या लाहौर' आपका मनोरंजन करते हुए दिल तक पहुंच जाएगी... इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है - 4 स्टार...
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