सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो.
नई दिल्ली:
व्यभिचार कानून की वैधता (Supreme Court verdict on Adultery under Section 497) पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी कानून महिला को उसकी गरिमा से विपरीत या भेदभाव करता है वो संविधान के कोप को आमंत्रित करता है. ऐसे प्रावधान असंवैंधानिक है. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को व्यभिचार की धारा IPC 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था. पीठ के सामने मसला उठा था कि आइपीसी की धारा 497 ध अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा- महिला का मास्टर नहीं होता है पति. जानिए दस बातें
व्यभिचार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़ी 10 बातें
- 157 साल पुराने व्यभिचार कानून को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं
- सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को बताया असंवैधानिक , कहा-चीन, जापान, ब्राजील में ये अपराध नहीं
- चीफ जस्टिस ने कहा-व्यभिचार कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है.
- चीफ जस्टिस ने कहा-इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, मगर यह अपराध नहीं हो सकता
- CJI बोले- भारतीय संविधान की खूबसूरती ये है कि ये I, me and U को शामिल करता है
- प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने 157 साल पुराने व्यभिचार कानून को बताया मनमना
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा-जो भी सिस्टम महिला की गरिमा से विपरीत या भेदभाव करता है वो संविधान के wrath को आमंत्रित करता है. जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है वो अंसवैंधानिक है
- पांच में से दो जज व्यभिचार कानून को रद्द करने को लेकर हुए एकमत. बहुमत से दिया फैसला
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा-यह पूर्णता निजता का मामला है, महिला को समाज की चाहत के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता.