जलियांवाला बाग : वह जगह, जहां 102 साल बाद भी मौजूद हैं निहत्थों पर बरसाई गई गोलियों के निशां, जानें 10 खास बातें

Jallianwala Bagh Massacre : आज जालियांवाला बाग की 102वीं बरसी है. देश जालियांवाला बाग की 102वीं बरसी पर शहीदों को याद कर रहा है. साल 1919 में अमृतसर में हुए इस नरसंहार में हजारों लोग मारे गए थे.

जलियांवाला बाग : वह जगह, जहां 102 साल बाद भी मौजूद हैं निहत्थों पर बरसाई गई गोलियों के निशां, जानें 10 खास बातें

जलियांवाला बाग: वह जगह, जहां 102 साल बाद भी मौजूद हैं निहत्थों पर बरसाई गई गोलियों के निशां

Jallianwala Bagh Massacre: आज जलियांवाला बाग नरसंहार की 102वीं बरसी है. देश जालियांवाला बाग की 102वीं बरसी पर शहीदों को याद कर रहा है. साल 1919 में अमृतसर में हुए इस नरसंहार में हजारों लोग मारे गए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार के आंकड़ें में सिर्फ 379 की हत्या दर्ज की गई है. जलियांवाला बाग नरसंहार ब्रिटिश भारत के इतिहास का काला अध्‍याय है. 13 अप्रैल, 1919 को अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में मौजूद निहत्‍थी भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थीं. इस नरसंहार में 1,000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे, जबकि 1,500 से भी ज़्यादा घायल हुए थे. जिस दिन यह क्रूरतम घटना हुई, उस दिन बैसाखी थी. इसी नरसंहार के बाद ब्रिटिश हुकूमत के अंत की शुरुआत हुई. इसी के बाद देश को ऊधम सिंह जैसा क्रांतिकारी मिला और भगत सिंह के दिलों में समेत कई युवाओं में देशभक्ति की लहर दौड़ गई. जानिए, जलियांवाला बाग नरसंहार से जुड़ी 10 खास बातें...

13 अप्रैल का इतिहास: जलियांवाला बाग की दुखद घटना का साक्षी है आज का दिन

जलियांवाला बाग नरसंहार की 102वीं बरसी: 10 खास बातें

1. अमृतसर के प्रसिद्ध् स्‍वर्ण मंदिर, यानी गोल्‍डन टेंपल से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को रॉलेट एक्‍ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी. उस दिन बैसाखी भी थी. जलियांवाला बाग में कई सालों से बैसाखी के दिन मेला भी लगता था, जिसमें शामिल होने के लिए उस दिन सैकड़ों लोग वहां पहुंचे थे.

2. तब उस समय की ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्‍ड डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया. सैनिकों ने बाग को घेरकर ब‍िना कोई चेतावनी दिए निहत्‍थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. वहां मौजूद लोगों ने बाहर निकलने की कोशिश भी की, लेकिन रास्‍ता बहुत संकरा था, और डायर के फौजी उसे रोककर खड़े थे. इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया और हिन्दुस्तानी जान बचाने में नाकाम रहे.

3. जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश आर्मी ने बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं. इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी. बताया जाता है कि सैनिकों के पास जब गोलियां खत्‍म हो गईं, तभी उनके हाथ रुके.

4. कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने कुएं में कूद गए थे, जिसे अब 'शहीदी कुआं' कहा जाता है. यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है और उन मासूमों की याद दिलाता है, जो अंग्रेज़ों के बुरे मंसूबों का श‍िकार हो गए थे.

5. ब्रिटिश सरकार के अनुसार इस फायरिंग में लगभग 379 लोगों की जान गई थी और 1,200 लोग ज़ख्‍मी हुए थे, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक उस दिन 1,000 से ज़्यादा लोग शहीद हुए थे, जिनमें से 120 की लाशें कुएं में से मिली थीं और 1,500 से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हुए थे.

6. जनरल डायर रॉलेट एक्‍ट का बहुत बड़ा समर्थक था, और उसे इसका विरोध मंज़ूर नहीं था. उसकी मंशा थी कि इस नरसंहार के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन इसके ठीक उलट ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरा देश आंदोलित हो उठा.

7. नरसंहार की पूरी दुनिया में आलोचना हुई. आखिरकार दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया. कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया.

8. हाउस ऑफ कॉमन्स ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया, लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने इस नरसंहार की तारीफ करते हुए उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया. बाद में दबाव में ब्रिटिश सकार ने उसका निंदा प्रस्‍ताव पारित किया. 1920 में डायर को इस्‍तीफा देना पड़ा.

9. जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940 को ऊधम सिंह लंदन गए. वहां उन्‍होंने कैक्सटन हॉल में डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया. ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया. उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर का नाम उन्‍हीं के नाम पर रखा गया है.

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

10. जलियांवाला बाग नरसंहार ने भगत सिंह को भीतर तक प्रभावित किया. बताया जाता है कि जब भगत सिंह को इस नरसंहार की सूचना मिली तो वह अपने स्‍कूल से 19 किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे.