सीबीआई डायरेक्टर पद से आलोक वर्मा की छुट्टी कर दी गई है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहाल किये जाने के मात्र दो दिन बाद आलोक वर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली एक हाई पावर सेलेक्शन कमेटी ने ने गुरुवार को एक मैराथन बैठक के बाद एक अभूतपूर्व कदम के तहत भ्रष्टाचार और कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही के आरोपों में सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कल सेलेक्शन कमेटी की बैठक में 2:1 से ये फ़ैसला लिया गया. पैनल में मौजूद पीएम मोदी और चीफ़ जस्टिस के प्रतिनिधि के तौर पर मौजूद जस्टिस एके सीकरी वर्मा को हटाने के पक्ष में थे. वहीं पैनल के तीसरे सदस्य के तौर पर मौजूद लोकसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आलोक वर्मा को हटाने के विरोध में थे. उन्होंने समिति को विरोध की चिट्ठी भी सौंपी. पैनल ने पाया कि सीवीसी ने आलोक वर्मा पर गंभीर टिप्पणियां की हैं. पैनल को लगा कि आलोक वर्मा जिस तरह के संवेदनशील संस्था के प्रमुख थे, उन्होंने वैसा आचरण नहीं किया.
पैनल के मुताबिक सीवीसी को लगा है कि मोइन क़ुरैशी मामले में आलोक वर्मा की भूमिका संदेहास्पद है.. IRCTC केस में सीवीसी को ये लगा है कि जानबूझकर वर्मा ने एक नाम हटाया है. वहीं सीवीसी को कई दूसरे मामलों में भी शर्मा के खिलाफ सबूत मिले हैं... फ़िलहाल उन्हें डीजी फायर सर्विसेज़, सिविल डिफेंस और होमगार्ड का बनाया गया है..
सीबीआई के 55 वर्षों के इतिहास में इस तरह की कार्रवाई का सामना करने वाले जांच एजेंसी के वह पहले प्रमुख हैं. 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी वर्मा बुधवार को ड्यूटी पर लौटे थे. एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तो के साथ उनकी वापसी का मार्ग प्रशस्त किया था और सीबीआई प्रमुख का चयन करने वाली तीन सदस्यीय समिति से एक सप्ताह में उनके पद पर बने रहने के बारे में फैसला करने के लिए कहा था. उच्चतम न्यायालय ने सीवीसी की एक रिपोर्ट में उनके खिलाफ लगे आरोपों के आलोक में ऐसा किया था.
सेलेक्शन पेनल ने आलोक वर्मा का तबादला कर दिया है. उन्हें डीजी फायर सर्विसेज़, सिविल डिफेंस और होमगार्ड का बनाया गया है. आलोक वर्मा का दो वर्षों का निर्धारित कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त होने वाला था.
सीवीसी को इस बात के सबूत मिले हैं कि मोइन कुरैशी मामले को प्रभावित करने की कोशिश भी की गयी. वहीं 2 करोड़ रुपये रिश्वत लेने के भी सबूत मिले हैं. पैनल के मुताबिक सीवीसी को लगा है कि आलोक वर्मा की भूमिका संदेहास्पद है. आईआरसीटी कैस में सीवीसी को ये लगा है कि जानबूझकर वर्मा ने एक नाम हटाया है. वहीं सीवीसी को कई दूसरे मामलों में भी शर्मा के खिलाफ सबूत मिले हैं.
आलोक वर्मा को हटाए जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर पीएम मोदी पर हमला बोला है. राहुल ने लिखा है- 'मिस्टर मोदी के दिमाग़ में अब डर बैठ गया है. वह सो नहीं सकते.. आलोक वर्मा को CBI प्रमुख पद से लगातार दो बार हटाया जाना स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह अपने ही झूठ में फंस गए हैं. सत्यमेव जयते!'.
सीबीआई का प्रभार अतिरिक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को दिया गया है. सीवीसी की रिपोर्ट में वर्मा के खिलाफ आठ आरोप लगाए गए थे. यह रिपोर्ट उच्चाधिकार प्राप्त समिति के समक्ष रखी गई. अस्थाना और अन्य ने अपने खिलाफ रिश्वत के आरोपों को लेकर प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की है. वर्मा और अस्थाना ने एकदूसरे पर रिश्वत के आरोप लगाये थे और दोनों के बीच तकरार को देखते हुए केंद्र ने उनके अधिकार ले लिये थे और उन्हें 23 अक्टूबर की रात में जबरन छुट्टी पर भेज दिया था.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने असहमति जतायी और बैठक में कहा कि वर्मा को उनके खिलाफ सीवीसी रिपोर्ट में लगाये गए आरोपों पर अपना पक्ष समिति के समक्ष रखने का एक मौका दिया जाना चाहिए. सूत्रों के अनुसार उन्होंने यह भी कहा कि वर्मा को सजा नहीं दी जानी चाहिए और 77 दिन का विस्तार दिया जाना चाहिए क्योंकि पहले 77 दिनों तक पद पर काम करने की इजाजत नहीं दी गई. सूत्रों ने कहा कि यद्यपि प्रधानमंत्री और न्यायमूर्ति सिकरी ने खड़गे की इस दलील से असहमति जतायी जिससे वर्मा को पद से हटाने का रास्ता साफ हो गया.
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अगर वर्मा को हटाने का बहुमत का फैसला था, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि वर्मा को उनके खिलाफ आरोपों का जवाब देने के लिए क्यों नहीं कहा गया. केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को लेकर मेरी राय बहुत खराब है."
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री की भूमिका में 'हितों के टकराव' की बात कही क्योंकि प्रधानमंत्री उस तीन सदस्यीय समिति का हिस्सा हैं जिसने वर्मा को पद से हटाया है. इसमें लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सर्वोच्च न्यायालय के मनोनीत प्रतिनिधि प्रधान न्यायाधीश द्वारा नामित न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी हैं. उन्होंने कहा, "सीबीआई निदेशक के रूप में पदभार संभालने के एक दिन बाद, मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने फिर से आलोक वर्मा को बिना सुनवाई के जल्दबाजी में हटा दिया, क्योंकि उन्हें डर था कि राफेल घोटाले में मोदी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने की संभावना है. "उन्होंने कहा, "आलोक वर्मा का पक्ष सुने बिना समिति यह कैसे तय कर सकती है? यह सरकार की हताशा को दर्शाता है. इसमें प्रधानमंत्री के हितों का टकराव है. इतनी हताशा, किसी भी जांच को रोकने के लिए है,"
कांग्रेस नेता व वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्मा को आरोपों के आधार पर हटा दिया गया, जबकि सीवीसी की कोई विश्वसनीयता नहीं है. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री इस बात से आशंकित हैं कि उनके खिलाफ जांच होने पर कई सबूत सामने आएंगे"