
Tuesday and Saturday hanuman puja : हिन्दू धर्म में सप्ताह के सात दिन किसी न किसी भगवान की पूजा और व्रत के लिए समर्पित है. मंगलवार और शनिवार का दिन बजरंगबली की साधना और व्रत के लिए होता है. मान्यता है संकट मोचन हनुमान जी की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं और किसी भी काम में बाधा नहीं आती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है आखिर मंगलवार और शनिवार के दिन ही क्यों अंजनी पुत्र हनुमान की पूजा की जाती है? आइए जानते हैं साई परवीन शर्मा से मंगलवार और शनिवार का दिन हनुमान जी से कैसे जुड़ा हुआ है...
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा क्यों होती है
साई परवीन ने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो साझा की है जिसमें उन्होंने बताया है कि मंगलवार मंगल ग्रह से जुड़ा हुआ है. इसका दुष्प्रभाव हमारे अंदर अहम और गुस्से की भावना का बढ़ावा देता है. जिसके कारण हम गलत निर्णय लेते हैं और इससे हमारे रिश्ते भी खराब होते हैं.
वहीं, शनिवार शनि देव से संबंध रखता है, जिसके कारण हमारे पुराने कर्म सामने आते हैं और हमें अकेलापन महसूस होता है.ऐसे में फिर आपको हनुमान साधना करनी चाहिए. क्योंकि यह सुरक्षा कवच की तरह काम करता है.
आप मंगलवार और शनिवार में से कोई एक दिन चुन लीजिए. अगर आप मंगलवार चुन रहे हैं, तो फिर 21 मंगल के व्रत करिए और हनुमान चालीसा पढ़ें. साथ ही मंदिर जाकर तिल के तेल का दीया जलाएं और बजरंगबली को तिल अर्पित करिए.
अगर आप शनिवार का दिन चुन रहे हैं, तो 11 शनिवार का व्रत करिए और मंदिर जाकर तिल का दीया जलाएं और आखिरी दिन अन्न दान करके संकल्प को पूरा करें.
श्री हनुमान चालीसा - Shri Hanuman Chalisa Lyrics in Hindi
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुँचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
कांधे मूंज जनेउ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे।।
असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुह्मरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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