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This Article is From Apr 30, 2023

साल 2023 में नरसिम्हा जयंती मई की इस तारीख को मनाई जाएगी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

Narsimha Jayanti 2023 date : नरसिम्हा जयंती इस बार कब मनाई जाएगी, इससे जुड़ी सभी जानकारी हम इस लेख में बताने जा रहे हैं.

साल 2023 में नरसिम्हा जयंती मई की इस तारीख को मनाई जाएगी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
नरसिंह जयंती के दिन सुबह उठकर घर की साफ-सफाई की जाती है.

Narsimha Jayanti 2023 : हिन्दू पंचांग के अनुसार यह जयंती हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है. ऐसे में इस साल नरसिम्हा जयंती 4 मई दिन गुरुवार को मनाई जाएगी. यह दिन भारत में नरसिंह अवतार के रूप में मनाया जाता है. नरसिम्हा जयंती का प्रारंभ 3 मई दिन बुधवार को 11 :50 पर होगा जिसका समापन अगले दिन यानी 4 मई 2023 की रात को 11 :23 पर होगा. ये तो हो गई शुभ मुहूर्त की बात अब आते हैं इसकी पूजा विधि और कथा पर.

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नरसिम्हा जयंती पूजा विधी

नरसिम्हा जयंती के दिन सुबह उठकर घर की साफ-सफाई की जाती है. स्नान के बाद नरसिंह भगवान के चित्र का सामने घी का दीपक जलाया जाता है. इसके बाद उन्हें फूल और प्रसाद अर्पित किया जाता है. इसके बाद भगवान नरसिंह के मंत्रों का जाप किया जाता है. मध्य रात्रि में मंत्रों का जाप करना अच्छा माना गया है. व्रत के दिन फलाहार किया जा सकता है. अगले दिन जरुरतमंदों को अन्न और वस्त्र का दान कर व्रत का पारण किया जाता है. 

नरसिम्हा जयंती कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीनकाल में जब हिरण्याक्ष का वध हुआ तो उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुःखी हुआ और वह भगवान श्रीहरि विष्णु का विरोधी बन गया.  उसने कठोर तपस्या की.  जिसके बाद उसे देवता, मनुष्य या पशु आदि से ना मरने का वरदान मिला. 

कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप बहुत अत्याचारी और बहुत कठोर शासक था. देव-दानव सभी उसके सामने नतमस्तक रहते थे. हिरण्यकशिपु भगवान की पूजा-अर्चना करने वाले लोगों को बहुत कठोर दंड देता था.  उसके शासन से तीनों लोक घबरा गए. देवता गण कोई सहारा न पाकर वे भगवान की प्रार्थना करने लगे. जिसके बाद भगवान विष्णु ने देवताओं को हिरण्यकश्यप के वध का आश्वासन दिया. 

दैत्य हिरण्यकश्यप का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था. यहां तक कि वह अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह का कष्ट देने लगा. प्रह्लाद बचपन से ही खेल-कूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करता था. वह भगवान का परम भक्त था. 

प्रह्लाद  की भक्ति को जानकर हिरण्यकश्यक बहुत क्रोधित हुआ. उसने प्रह्लाद को दरबार में बुलाया. प्रह्लाद विनम्रता से दैत्यराज के सामने खड़ा हो गया. उसे देखकर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा- 'मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है. तूने किसके बल पर मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?

इस पर प्रह्लाद ने कहा कि पिताजी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है. वह परमेश्वर ही अपनी शक्तियों द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं. आप अपना यह भाव छोड़ अपने मन को सबके प्रति उदार बनाइए. 

प्रह्लाद की बात को सुनकर हिरण्यकश्यप क्रोध से कांपने लगा. उसने प्रहलाद से कहा- 'रे मंदबुद्धि! यदि तेरा भगवान हर जगह है तो इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?' यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा. उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक घूंसा मारा. उसी समय उस खंभे के भीतर से नृसिंह भगवान प्रकट हुए. उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था. क्षणमात्र में ही नृसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और उसकी जीवन-लीला समाप्त कर दी और इस प्रकार भक्त प्रह्लाद की रक्षा की. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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